जब सामने मैदान में उतर आया विमान
बांग्लादेश से इराक तक सत्तर से ज्यादा जगहें ऐसी हैं, जिन्हें हैदराबाद कहा जाता है। एक प्रसिद्ध हैदराबाद महानगर भारत के दक्षिण में बसा है, तो एक पाकिस्तान के सिंध क्षेत्र में गुलजार है। हालांकि...

बांग्लादेश से इराक तक सत्तर से ज्यादा जगहें ऐसी हैं, जिन्हें हैदराबाद कहा जाता है। एक प्रसिद्ध हैदराबाद महानगर भारत के दक्षिण में बसा है, तो एक पाकिस्तान के सिंध क्षेत्र में गुलजार है। हालांकि, यह कहानी तब शुरू होती है, जब पाकिस्तान नाम भी चर्चा में नहीं था और ये दोनों हैदराबाद भारत की शान थे। एक से दूसरे हैदराबाद तक जाना मुमकिन था, रेल पटरी बिछ चुकी थी और रेल विभाग में ही उस पारसी बच्चे के पिता अफसर थे। बड़े बंगले में रहते थे, सामने रेसकोर्स मैदान था। सपाट, हरा-भरा, संुदर व शांत, पर एक दिन शांत मैदान पर हलचल दिखी। दूर से एक विमान थोड़ा लहराते उड़ा चला आ रहा था, मानो इसी मैदान की तलाश में चला आ रहा हो। सात साल का वह पारसी बच्चा बड़ी-बड़ी आंखों के साथ अचंभित खड़ा देख रहा था।
ठीक उसके सामने मैदान में वह विमान जमीन पर उतरा और कुछ दौड़कर थम गया। यह भी क्या अजीब चीज है, बिल्कुल किसी बड़ी चिड़िया की तरह, जिसे इंसान ही उड़ा ले जाता है और फिर उतार लाता है। वह अंग्रेज विमान चालक थे, जिन्हेें आपातकालीन लैंडिंग करनी पड़ी थी। कोई उन्हें पहचानता नहीं था, पर सभी ने स्वागत किया। बाकी मेहमान पैदल, तांगे या रेल से आते हैं, पर यह मेहमान उड़कर आया है, सारे मेजबान अपनी मेजबानी का नया इतिहास लिखने उमड़ आए थे।
बच्चे के आश्चर्य का ठिकाना न था। मैदान में एक बार उतरा विमान उसके मन-मस्तिष्क में बार-बार उतर रहा था। विमान और उसकी उड़ान पर प्यार हर बार बढ़ता जा रहा था। बहरहाल, दूसरे ही दिन बहुत धूमधाम से वह विमान फिर आकाश में जा चढ़ा और कराची की ओर उड़ गया। बच्चा पूरी तरह मोहित हो गया था। उतरने से भी ज्यादा मजेदार था, कुछ दूर दौड़ते हुए आसमान में उड़ जाना। मन में विमान के उतरने-चढ़ने के बीच सवालों का बवंडर भी उमड़ता था। उड़ते हुए कैसा लगता होगा? खुशी मिलती होगी या डर लगता होगा? नीचे जब पहाड़ दिखते होंगे, नदी या जंगल गुजरते होंगे, तब कैसा लगता होगा? बच्चे का मन थमने का नाम नहीं लेता था कि काश! किसी दिन बंगले की छत पर ही विमान उतर आए, इतनी बड़ी छत है, वहां नहीं, तो स्कूल की छत पर ही उतर आए! उसने तय कर लिया और लोगों को बता दिया कि वह एक दिन जरूर विमान उड़ाएगा।
विमान के प्रति बेटे की ऐसी दीवानगी ने अधिकारी पिता को भी भीतर तक छू लिया। वह भी इंतजार करने लगे थे कि बेटा कुछ बड़ा हो जाए, तो विमानों से भरी उसकी खयाली दुनिया को साकार कर दिया जाए। खैर, खुशी का वह दिन भी आया, जब 15 दिसंबर, 1929 को अपने सबसे बड़े बेटे असपी इंजीनियर को 17वें जन्मदिन पर रेलवे अधिकारी मेहरवान इंजीनियर ने एक सेकंड-हैंड जिप्सी मोथ विमान उपहार में दिया। दो सीटों वाला, खुली कॉक-पिट, 30 फीट के पंखों वाला, लकड़ी और कपड़े से बना चार सिलेंडर, 100 एचपी इंजन वाला विमान। फिर क्या था, सुबह से शाम तक बस विमान ही सारा जहान। महज तीन महीने लगे विमान चलाना सीखने में और लाइसेंस भी मिल गया। उन्हीं दिनों एक बड़ी प्रतियोगिता घोषित हुई, एक महीने के समय में कराची से लंदन या लंदन से कराची विमान उड़ाकर लाना था। असपी भी तैयार हो गए। पिता रोक न पाए। एक अन्य पायलट आरएन चावला भी साथ हो लिए।
पिता ने ही पुत्र के ख्वाब पर खर्च किया और 3 मार्च,1930 को कराची से लंदन के लिए सफर शुरू हुआ। जहां-तहां रुकते-रुकाते दोनों भारतीय पायलट 21 मार्च को लंदन में उतरे। वहां पहुंचकर असपी ने फैसला किया कि वापसी अकेले करूंगा। करीब 5,000 मील की उड़ान 25 अप्रैल, 1930 की सुबह शुरू हुई। गजब का दौर था, रास्ते में एक जगह विमान खराब हुआ, तो 26 वर्षीय पायलट जे आर डी टाटा से भेंट हुई। विमान उड़ाते लंदन जा रहे टाटा ने अपना स्पार्क प्लग असपी को दिया और बदले में असपी ने अपनी लाइफ जैकेट टाटा को भेंट कर दी। अंतत: 11 मई, 1930 की शाम 4.10 बजे कराची में असपी ने अपना विमान उतारा। प्रतियोगिता में वह विजेता घोषित किए गए और टाटा महज 20 घंटे पीछे रह गए। किशोर असपी ने न जाने कितने रिकॉर्ड तोड़े-बनाए और प्रसिद्ध हो गए।
कराची में जश्न मनाया गया। वहां एक पत्रकार ने असपी से पूछा कि ‘वह भविष्य में क्या करेंगे’, तो जवाब मिला, ‘मुझे वायु सेना में अपने देश की सेवा का मौका बहुत पसंद आएगा।’ जल्दी ही उनकी इच्छा पूरी हुई। बाद में वह आजाद भारत के दूसरे वायुसेना प्रमुख बने। जब भी 8 अक्टूबर को वायुसेना दिवस मनाया जाता है, वह पायलट असपी इंजीनियर जरूर याद आते हैं, जो विमान को कहीं भी उतारने का जिगर रखते थे।
प्रस्तुति : ज्ञानेश उपाध्याय
