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किताब ने शिखर पर पहुंचा दिया

कहते हैं, यह कमाल की किताब है, जिसे वह लड़का पढ़ रहा है। 468 पेज का एक उपन्यास, उडेल का वह प्रिंटर। जिसे हेरोल्ड बेल राइट ने 1903 में लिखा था। उपन्यास शुरू में ही उस लड़के को रिझा गया, क्योंकि उसमें एक...

किताब ने शिखर पर पहुंचा दिया
रोनाल्ड रीगन, अमेरिका के 40वें राष्ट्रपति Sat, 05 Feb 2022 08:50 PM
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कहते हैं, यह कमाल की किताब है, जिसे वह लड़का पढ़ रहा है। 468 पेज का एक उपन्यास, उडेल का वह प्रिंटर। जिसे हेरोल्ड बेल राइट ने 1903 में लिखा था। उपन्यास शुरू में ही उस लड़के को रिझा गया, क्योंकि उसमें एक लड़के डिक की कहानी है। डिक की मां के आखिरी शब्दों के साथ कहानी शुरू होती है। मां यह कहती हुई दुनिया से विदा लेती है, ‘हे भगवान, डिक की रक्षा करना, तुम्हारी शरण में छोडे़ जा रही हूं।’ डिक के पिता शराबी हैं, जिनके साथ रहना मुश्किल है, तो डिक घर से भाग खड़ा होता है। उसे पता चलता है कि शहर तो ठगों और मक्कारों से अटा पड़ा है। अंतत: उसे एक चर्च में जगह मिलती है और प्रिंटर के रूप में नौकरी भी। डिक अपना खाली समय नाइट स्कूल में खुद को सुधारने में बिताता है। समाज की सेवा के लिए हमेशा तत्पर। वंचित लोगों की मदद में हमेशा आगे। समाजसेवा के सिलसिले में ही वह हत्या के एक मामले को सुलझाता है। एक लड़की को वेश्यालय के नरक में गिरने से बचाता है। चर्च में जब वह बोलने के लिए खड़ा होता है, तो खुद-ब-खुद उसके काम बोलने लगते हैं। समाज और देश के प्रति गर्व व प्रेम के शब्दों से भरपूर उसके भाषण लोगों को बहुत लुभाने लगते हैं। लोग आगे बढ़कर बोलने लगते हैं कि तुम्हें तो संसद में होना चाहिए। 
डिक की यह शानदार कहानी उस लड़के के दिल में बस गई। डिक किसी भी मजबूरी या मुसीबत के सामने घुटने नहीं टेकता। धर्म के प्रति निष्ठा से सराबोर है। वह चर्च के कर्मकांडों में नहीं उलझता, वह शुद्ध व्यावहारिकता के सहारे आगे बढ़ता है। यह किताब पढ़ने के बाद मां से चर्चा हुई, तो मां ने कहा, तुम्हें भी डिक की तरह बनना चाहिए, दूसरों की मदद करने वाला, समाज के लिए सजग। उस लड़के को यह बात जंच गई। उसने भी चर्च की सेवा शुरू कर दी। उस आयु में ही उसे पता चल गया कि आम लोग चर्च का अनुसरण करते हैं, धर्म या ईसा मसीह का नहीं। मजहब के मूल भावों और संदेशों का अनुसरण ही जीवन को सही दिशा में बनाए रख सकता है। वह लड़का मजहब को व्यावहारिकता में निभाने लगता है। अंधविश्वास से परे वह समाज की सेवा में हर तरह के काम करने लगता है। सोचने लगता है कि धर्म भी बेहतर नागरिक बना सकता है। बुराइयों से बचते हुए धर्म की अच्छी बातों का प्रचार जरूरी है। धर्म सिर्फ संकीर्ण नहीं है। धर्म का काम है, साझा कल्याण के बारे में सोचना। उस उपन्यास के अंत में एक ट्रैवलिंग सेल्समैन ट्रेन की खिड़की से बाहर देखता है और शहर में हो रहे अच्छे बदलावों पर टिप्पणी करता है,‘मुझे यकीन है, लोग अच्छे, सामान्य ज्ञान वाले धर्म से प्रभावित हैं। चोरों और वेश्याओं को अन्य काम मिल गए हैं, संगीतकारों ने अश्लील कार्यक्रम बंद कर दिए हैं। धर्मस्थल बढ़ रहे हैं, लेकिन स्कूल-कॉलेजों में उपस्थिति चौगुनी हो गई है, बेरोजगारों को काम मिल गया है। सड़कें और उद्यान पहले से काफी सुंदर व साफ-सुथरे हो गए हैं।’ 
धर्म से बहुत बढ़कर है व्यावहारिक धर्म। वह लड़का उस किताब या उपन्यास की रोशनी में बढ़ने लगा। वह तमाम तरह की सामाजिक गतिविधियों में आगे रहता था। वह अपने जीवन को कैसे दूसरों के लिए उपयोगी बनाए, कैसे दूसरों के काम आए, इसी दिशा में सोचते हुए उसने एक नदी तट पर लाइफगार्ड के रूप में पहली नौकरी की। छह साल तक लोगों को वह डूबने से बचाता रहा, करीब 77 लोगों की उसने जान बचाई। जरूरत पड़ी, तो सेना में भर्ती हो गया। धीरे-धीरे शहर के लोग उसे जानने लगे। वह असल जिंदगी में नायक था, तो उसे परदे पर आने और छाने में भी ज्यादा वक्त नहीं लगा। पचास से ज्यादा फिल्मों में अपने जीवन से मिलती-जुलती भूमिका निभाने वाले रोनाल्ड रीगन को सब जानने लगे थे। लोग अपने नायक को राजनीति में ले आए। वह पहले अपने राज्य के गवर्नर हुए और उसके बाद आठ साल देश के राष्ट्रपति रहे। 
राष्ट्रपति रहते उन पर जानलेवा हमला हुआ था। जब उन्हें शूटर का नाम पता चला, तब उन्होंने यही कहा कि वह गोली चलाने वाले के लिए प्रार्थना करेंगे और कोशिश करेंगे कि स्वयं और बेहतर इंसान बन सकें। अमेरिका के सबसे अच्छे, सबसे प्रिय राष्ट्रपतियों में शुमार रोनाल्ड रीगन आजीवन इस कोशिश में लगे रहे कि मजहब के सही सेवा संकल्प को अपने जीवन में साकार कर सकें। 6 फरवरी को जन्मे रोनाल्ड रीगन अक्सर ईसा मसीह की एक टिप्पणी को बहुत प्यार से दोहराते थे, ‘तुम जगत की ज्योति हो। पहाड़ी पर बसा शहर छिपाया नहीं जा सकता।’ रीगन ने भी पहाड़ी पर चमकते अपने देश को और चमकदार बनाने में अपना जीवन लगा दिया। 
    प्रस्तुति : ज्ञानेश उपाध्याय 

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