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खुशनुमा सोच और शानदार जिंदगी

हार न मानना ही जिंदगी है। कुछ लोग मुसीबत के बारे में सोचते ही हार मान लेते हैं, तो कुछ मंजिल की ओर चलते हुए घुटने टेकते हैं और ज्यादातर लोग तब हार मानते हैं, जब जीत उनसे कुछ ही कदम दूर रह जाती है।...

खुशनुमा सोच और शानदार जिंदगी
केन तनाका, 118 वर्षीय बुजुर्गSat, 01 Jan 2022 09:06 PM
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हार न मानना ही जिंदगी है। कुछ लोग मुसीबत के बारे में सोचते ही हार मान लेते हैं, तो कुछ मंजिल की ओर चलते हुए घुटने टेकते हैं और ज्यादातर लोग तब हार मानते हैं, जब जीत उनसे कुछ ही कदम दूर रह जाती है। हालांकि, चंद लोग ऐसे भी होते हैं, जो कभी हार नहीं मानते। कभी हार न मानने वाले ही दुनिया में दूसरों के लिए लकीरें खींचते हैं। यह कहानी तब की है, जब चिकित्सा सेवा तरक्की के पायदान पर बहुत नीचे थी। ज्यादातर बीमारियों के सामने लोग ही नहीं, अच्छे-अच्छे डॉक्टर भी हथियार डाल देते थे। ऐसे में, उस 45 वर्षीय महिला को डॉक्टरों ने अग्नाशय कैंसर बता दिया था। कह दिया कि शल्य चिकित्सा के बगैर कोई उपाय नहीं है। उसमें भी मरीज को अपने ही जोखिम पर इलाज करवाना है। क्या होगा, कैसे होगा, शल्य चिकित्सा से जिंदगी को और कितने दिन नसीब होंगे? तब दुनिया में शल्य चिकित्सा पर लोगों का बहुत भरोसा नहीं था, इसलिए जब जान बच जाती थी, तो लोग डॉक्टर को भगवान से कम नहीं मानते थे। मुसीबत गले पड़ी, तो उस महिला ने भी तरह-तरह से सोचा और फिर यह तय किया कि बेहतर यही है कि ज्यादा न सोचा जाए। ज्यादा सोचने का मतलब है ज्यादा तनाव लेना। ज्यादा तनाव का मतलब है दिमाग पर दबाव और तेज धड़कनें। दिल की धड़कन तेज चले, तो हृदय पर दबाव बढ़ता है। कुल मिलाकर, ज्यादा सोचने से दिमाग भी खराब हो सकता है और दिल भी। 
तब दुनिया में लोगों की औसत आयु 47 साल ही थी, अत: उस महिला को लगता था कि अब जो जिंदगी मिलेगी, उसे पूरी तरह खुशनुमा बनाकर जीना है। एक दिन मरना तो है ही, लेकिन जब तक जीना है, पूरी हंसी-खुशी जीना है। जिंदगी में तनाव कम नहीं था, एक बेटा सेना में था, जिसे साइबेरिया में कैद कर दिया गया था, वह लौटेगा या नहीं, यह तनाव भी  बना रहता था। बताते हैं कि इस तनाव ने भी उनकी बीमारी को बढ़ाया। बेटा कैद से लौट आया, लेकिन शरीर में बीमारी घर कर गई। तो इलाज कराना ही पड़ेगा, क्योंकि हार मानने की गुंजाइश कहां है? अभी जीवन में देखा ही क्या है, कुछ और नाती-पोते देखने हैं। कई और खुशियां झोली में गिरनी हैं। बीमारी के बारे में सुनकर लोग दुखी हो जा रहे हैं, लेकिन अभी मेरी उम्र ही क्या हुई है?
बीमारी और उसे हराने के जुनून ने सोच का कायाकल्प कर दिया था। अस्पताल में गंभीर बीमारी का इलाज कराने आई उस महिला का अंदाज ही निराला हो गया। डॉक्टरों ने तय दिन शल्य चिकित्सा को अंजाम दिया और चिकित्सा सोलह आना सफल हुई। चिकित्सक भी चकित थे। न जाने कहां से अचानक जीने का सही सलीका आ गया था? न जाने कहां से अच्छी सेहत का संचार हो रहा था? 
वह अपने जीवन में स्पेनिश फ्लू का आतंक झेल चुकी थीं। 35 की उम्र में पैराटाइफाइड बुखार से संक्रमित हुई थीं। 45 की उम्र में अग्नाशय कैंसर को परास्त किया था। फलसफा यही था कि ज्यादा सोचना नहीं है। परिवार में मौत और बीमारियों का सिलसिला हमेशा बना रहा है, बना रहेगा। ऐसा भी नहीं है कि घर धन से भरा हो। चावल की सफाई करना और फिर उसके केक बनाकर बेचना, यही मुख्य रोजगार था। पति 71 वर्ष साथ निभाने के बाद दुनिया छोड़ गए, लेकिन अकेले पड़ने के बावजूद जीने का अंदाज नहीं बदला। हार न मानने वाली इस महिला को लोग पिछली सदी में ही केन तनाका के नाम से पहचानने लगे थे। उन्होंने शानदार अंदाज में उम्र का शतक पूरा किया, लेकिन उम्र जब 103वें मुकाम पर पहुंची, तो कैंसर ने फिर हमला बोल दिया। डॉक्टर चिंतित थे कि शल्य चिकित्सा कैसे करेंगे, लेकिन तनाका तैयार थीं कि जो मुसीबत गुजरना चाहती है, फटाफट गुजर जाए। इस बार भी मुकम्मल इलाज से मुसीबत ढेर हुई। 
114 साल की उम्र में केन तनाका ने बताया था कि वह 120 साल की उम्र तक जीना चाहती हैं और लंबी उम्र का श्रेय वह भगवान, परिवार, नींद, आशा, अच्छा भोजन और गणित के अभ्यास को देती हैं। बीते ओलंपिक में उन्हें मशाल उठाने वालों में शामिल किया गया था, लेकिन कोरोना फैल गया, तो 100 साल या उससे ज्यादा उम्र के 80,000 से भी ज्यादा अपने बुजुर्गों की सेवा को समर्पित जापान सरकार ने कदम पीछे खींच लिए। साल 1903 में जन्मी केन तनाका 9 मार्च, 2019 से ही आधिकारिक तौर पर दुनिया की सबसे उम्रदराज जीवित इंसान के रूप में गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज हैं। वह एक नर्सिंग होम में आराम से रहती हैं। वह अतीत में नहीं, वर्तमान में बिंदास जीती हैं। पिछले दिनों एक आयोजन में जब उनसे पूछा गया कि आपको सबसे ज्यादा खुशी कब हुई, तो उन्होंने मुस्कराते हुए जवाब दिया था, अभी। 
    प्रस्तुति : ज्ञानेश उपाध्याय 

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