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एक हाथ में बेटी दूसरे में अवॉर्ड

यह 1993 के आस-पास की बात है। सुभाष घई की फिल्म आई थी- खलनायक। इस फिल्म के एक गाने को लेकर काफी विवाद हुआ। मुझे लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की तरफ से यह गाना ऑफर किया गया था। मैं रिहर्सल के लिए गई और जब...

एक हाथ में बेटी दूसरे में अवॉर्ड
अलका याग्निक, प्रसिद्ध गायिकाSat, 10 Nov 2018 09:16 PM
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यह 1993 के आस-पास की बात है। सुभाष घई की फिल्म आई थी- खलनायक। इस फिल्म के एक गाने को लेकर काफी विवाद हुआ। मुझे लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की तरफ से यह गाना ऑफर किया गया था। मैं रिहर्सल के लिए गई और जब मैंने गाना सुना, तो पहले इला दी की लाइनें आती हैं और फिर मेरी लाइन आती है। मुझे मेरी लाइन गाने के लिए दी गई थी। गाने में जो मेरी लाइन थी वो थी चोली में दिल है मेरा, चुनरी में दिल है मेरा, ये दिल मैं दूंगी मेरे यार को...। चोली के पीछे क्या है, यह मेरी लाइन नहीं थी। यह इलाजी की लाइन थी। गाने के लिए हां करते समय मैंने वह लाइन सुनी ही नहीं थी। वो तो जब हम फाइनल रिकॉर्डिंग में गए, तब मैंने सुना कि यह लाइन क्या है? मुझे उसी वक्त लग गया कि यह तो थोड़ा ‘नॉटी’ गाना है। लेकिन तब तक सब तय हो गया था। इसके अलावा, जिस फिल्म में यह गाना आ रहा था और जो लोग इस गाने को ‘हैंडल’ कर रहे थे, मतलब लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल का म्यूजिक, आनंद बक्षी के बोल, सुभाष घई की फिल्म, माधुरी दीक्षित पर फिल्माया जाने वाला गाना, यानी जिन सब लोगों के हाथ में यह गाना था, वे सब के सब जिम्मेदार लोग थे। अपनी-अपनी जगह पर सब बड़ी हस्ती थे। इसलिए मुझे इस बात का भरोसा था कि फिल्म में ‘एस्थेटिकली’ गाने को बहुत अच्छे से ट्रीट किया जाएगा। वह गाना निश्चित तौर पर थोड़ा शरारती था, लेकिन गाना बहुत प्यारा था। लेकिन इस गाने को लेकर अच्छा-खासा बतंगड़ बनाया गया। गाना जबर्दस्त हिट हुआ। हां, मैं यह जरूर मानती हूं कि इस गाने के बाद इसके ट्रेंड को फॉलो करते हुए कुछ गाने ऐसे भी बने, जो ज्यादा अश्लील हो गए। 

वह मेरे करियर की शुरुआत ही थी। उस वक्त हम ज्यादा सेलेक्टिव नहीं हो सकते थे। उसे तो खैर बहुत अच्छे से प्रेजेंट किया गया था, लेकिन उसके बाद मैंने कुछ गाने गाए, जो अच्छे नहीं थे। सच्चाई यह है कि उस समय मुझे समझ ही नहीं आया था कि उन गानों में क्या गलत है। बाद में लोगों ने बताया कि यह द्विअर्थी है। मुझे लोगों ने एहसास कराया कि जो मैं गा रही हूं, उसमें कुछ शब्द ठीक नहीं हैं और यह गड़बड़ी है। इसके बाद मैंने बहुत ध्यान रखना शुरू कर दिया। हालत यह थी कि अगर कोई मुझे सीधा-साधा ढंग का गाना भी देता, तो मुझे लगता था कि इसमें कुछ गड़बड़ है। काफी समय के बाद मुझे जब समझ में आया कि मुझसे ‘अंडरलाइन मीनिंग’ के गाने गवाए जा रहे हैं, तो फिर मैंने मना करना शुरू कर दिया।

मैंने कहना शुरू किया कि यह गाना मुझे ठीक नहीं लग रहा है, मैं नहीं गाऊंगी। पहले मैंने कई गाने बिना समझे, गा दिए। इस सबके दौरान एक और गाना मैंने गाया था, जिसके बोल थे- एक दो तीन।  इस गाने के बनने की कहानी भी दिलचस्प है। जब मैंने पहली बार यह गाना सुना, तो मुझे लगा कि ये है क्या, गिनती है या गाना? लेकिन जब मैंने पूरा गाना सुना और तेरह के आगे गाना बढ़ा कि चौदह को ये हुआ, पंद्रह को वो हुआ, तो इसकी गहराई समझ आई...अंतरे कमाल के लिखे जावेद अख्तर साहब ने। बहुत ‘इंटरेस्टिंग’ था। आइटम सांग होते हुए भी उसमें कहीं अश्लीलता जैसा कुछ नहीं था। बहुत स्वीट गाना था। उस गाने का संगीत भी कमाल का था। सब कुछ ‘हैंड इन ग्लव्स’ चल रहा था। एक-दो-तीन  को गाते हुए बड़ा मजा आया। वह एक माइलस्टोन गाना था। बहुत सी माएं बाद में आकर मुझसे कहती थीं कि उनके बच्चे गिनती नहीं सीख रहे थे। उन्होंने इस गाने के जरिए गिनती सीखी। अगर हम गाना गाकर सिखाएं, तो वे खुशी से सीख लेते हैं। वह निश्चित तौर पर ‘ट्रेंडसेटर’ गाना था। मेरे जीवन का अब तक का सबसे मशहूर और ‘माइलस्टोन’ गाना है। इसके लिए मुझे पहला फिल्म फेयर अवॉर्ड भी मिला था।

हालांकि मैंने तब तक कभी ऐसा सोचा नहीं था कि मुझे यह अवॉर्ड मिलना चाहिए या वह मिलना चाहिए। जब भी कोई गाना मिलता, तो उसको ‘इंजॉय’ करती थी। दिल से गाती थी। कभी नहीं सोचा था कि मैं गाऊंगी, तो मुझे इतना पैसा मिलेगा या यह अवॉर्ड मिल जाएगा। बहरहाल, उसी वक्त दिसंबर 1989 में मेरी बेटी पैदा हुई थी। हम लोग 40 दिन तक घर से बाहर नहीं निकलते। उसके बाद जब मैंने पहला कार्यक्रम अटेंड किया, तो वह फिल्म फेयर नाइट ही था, जहां मुझे एक दो तीन  गाने के लिए फिल्म फेयर अनाउंस किया गया। मेरे लिए तो यह डबल अवॉर्ड था। एक हाथ में मेरी बेटी थी और दूसरे हाथ में फिल्म फेयर अवॉर्ड था। मेरे लिए वो डबल डिलाइट था।                
(जारी...) 

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