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नहीं पता था गति का दूसरा नियम

स्कूल के दिन यूं भी हर बच्चे के लिए अच्छे होते हैं, फिर मैं तो बहुत ही मस्त और पढ़ाई में अच्छा बच्चा था। लड़कियों से कभी घबराना नहीं सीखा। स्कूली दोस्त-यार मुझसे बहुत घबराते थे। शरारतें होती थीं, सब...

नहीं पता था गति का दूसरा नियम
अन्नु कपूर, फिल्म अभिनेताSat, 31 Mar 2018 09:23 PM
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स्कूल के दिन यूं भी हर बच्चे के लिए अच्छे होते हैं, फिर मैं तो बहुत ही मस्त और पढ़ाई में अच्छा बच्चा था। लड़कियों से कभी घबराना नहीं सीखा। स्कूली दोस्त-यार मुझसे बहुत घबराते थे। शरारतें होती थीं, सब कुछ होता था, मगर एक टीचर का जो आदर होता है, वह हमेशा बना रहा। मुंबई में ‘सेटल’ होने के बाद भी मैं अपने दो-तीन टीचरों से मिला करता था। मैं जिस आदर के साथ उनसे मिला, उतना ही प्यार उन्होंने मुझे दिया। वे लोग आज भी मुझे याद करते हैं। वह  जमाना बिल्कुल अलग था। गुरु और शिष्य के बीच एक व्यक्तिगत रिश्ता हुआ करता था। मेरे समय तक ट्यूशन का ट्रेंड शुरू नहीं हुआ था। हमारे एक टीचर थे सैफुद्दीन साहब। एक बार मैं उनसे फिजिक्स का कुछ सीखने गया था। जहां तक मुझे याद है, इलेक्ट्रोमैग्नेटिक जैसा कुछ चैप्टर था। मैं उनके पास गया, तो उन्होंने मुझे वह चैप्टर बाकायदा ‘एक्सप्लेन’ किया। उनकी पत्नी गल्र्स स्कूल में केमिस्ट्री पढ़ाती थीं। उन्होंने उस दिन मुझे खाना खिलाया। मेरी पैंट कुछ फटी हुई थी। उन्होंने मुझे टॉवेल दिया और फिर पैंट लेकर उसे अच्छे से रफू कर दिया। जब मैं चलने लगा, तो मैंने सिर्फ इतना कहा, सर। वह समझ गए कि मैं कुछ पैसे की बात करने जा रहा हूं। उन्होंने कहा- भाग यहां से। काहे का ट्यूशन? कौन सा ट्यूशन?  

एक और टीचर थे, जो हमें संस्कृत पढ़ाया करते थे। जब भी मुझे देखते, तो कहते- ओ पंजाबी के छोरे। जब भी कोई सवाल होता, तो वह कहते थे कि पंजाबी का छोरा बताएगा। अपने सारे टीचर याद हैं मुझे। शिवचरण जी थे, चंपालाल जी थे, सीएल गुप्ता जी थे, रंजीत जी थे, मेहर सिंह जी थे, सारे के सारे बहुत बढ़िया से याद हैं मुझे। हम गरीब थे तो क्या हुआ, हमारे टीचरों ने हमें बहुत ध्यान से पढ़ाया। एक दिन फिजिक्स की क्लास में आइजक न्यूटन के ‘गति के नियम’ पूछे गए। सभी ने पहला और तीसरा नियम बताया। हम हिंदी मीडियम में पढ़ने वाले लोग थे। हमारे सर ने सभी बच्चों को खड़ा कर दिया। करीब 35 बच्चे थे क्लास में, सभी खड़े कर दिए गए। सिर्फ मैं बैठा हुआ था। उसके बाद उन्होंने बड़े विश्वास के साथ कहा- अब अनिल बताएगा। आप लोगों को बता दूं कि मेरा असली नाम अनिल है। मैं खड़ा हुआ और यह दुर्भाग्य था कि मैंने भी पहला और तीसरा नियम ही बताया। दूसरा नियम मैं भी नहीं बता पाया। सर इतना गुस्सा हो गए कि आगे बढ़कर आए और उन्होंने मुझे तमाचा जड़ दिया।  मेरी आंखों से आंसू निकल पड़े। लेकिन  गुरु का वह तमाचा काम कर गया। मुझे याद है कि उन्होंने गुस्से में मुझसे दो दिन तक बात नहीं की। फिर तीसरे दिन जाकर मैंने उनके पैर छुए। उन्होंने कहा- तूने मेरा विश्वास तोड़ दिया। मुझे कितना विश्वास था तुम्हारे ऊपर? मैंने सारे बच्चों के सामने कहा कि अब अनिल बताएगा और तूने मेरा विश्वास तोड़ दिया! यह करीब 50 साल पुरानी बात होगी, आप लोग ताज्जुब करेंगे कि तब से लेकर अब तक मुझे न्यूटन की गति का तीनों नियम याद है। पहला नियम है कि अगर कोई वस्तु गिराव में है, तो गिराव में ही रहेगी। गति में है, तो गति में ही रहेगी, जब तक कि उसमें कोई बाहरी बल न लगाया जाए। तीसरा है कि हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है। अभी दूसरा नियम बहुत अहम है। संवेद परिवर्तन की दर उस पर लगाए हुए बल के समानुपाती होती है और परिवर्तन उसी दिशा में होता है, जिस दिशा में बल लगाया जाता है। यह मैंने अपने गुरु की आंखों में जो अपने लिए निराशा देखी, उसकी वजह से न्यूटन का दूसरा नियम अब चिता तक मेरे साथ जाएगा। फिर वह वक्त आया, जब आर्थिक स्थिति की वजह से मुझे अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी। मुझे बहुत अफसोस हुआ। मेरे टीचरों को बहुत अफसोस हुआ। मेरे दोस्त बहुत दुखी हुए।  

इसके बाद मैंने पिताजी की थिएटर कंपनी ज्वॉइन कर ली। उस बीच मैंने लॉटरी के टिकट बेचे। चूरन वाले नोट बेचे। मैंने चाय की दुकान भी चलाई। इसमें कोई बुराई नहीं है। मैं बहुत बढ़िया चाय बनाता था। ऊपर से मलाई डालकर देता था। शुद्ध दूध की चाय। चाय बनाना बुरी बात नहीं है, असली बात है अच्छी चाय बनाकर ग्राहक को अच्छी तरह से उस चाय को पिलाना। यह 1972-73 के आसपास की बात है। उसके बाद मैंने 1974 से पिताजी की थिएटर कंपनी ‘रेगूलर ज्वॉइन’ कर ली थी। मध्य प्रदेश के अशोक नगर में मैंने पहली बार स्टेज पर परफॉर्मेंस दी थी। पहली परफॉर्मेंस पर ही मुझे पांच रुपये का इनाम भी मिला था। वहां से जीवन की गाड़ी चलती जा रही है। जारी...

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