चिदंबरम और सियासी रेखाओं का जाल
देश के गृह और वित्त विभागों के कर्ताधर्ता रह चुके पलनिअप्पन चिदंबरम इस वक्त केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की गिरफ्त में हैं। सिर्फ वही नहीं, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा, देश...
देश के गृह और वित्त विभागों के कर्ताधर्ता रह चुके पलनिअप्पन चिदंबरम इस वक्त केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की गिरफ्त में हैं। सिर्फ वही नहीं, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा, देश के वरिष्ठतम नेताओं में शुमार शरद पवार, महाराष्ट्र के धुआंधार नेता राज ठाकरे, पवार के करीबी प्रफुल्ल पटेल और पक्ष-विपक्ष के तमाम नेताओं पर भी भ्रष्टाचार के आरोप हैं। इन लोगों पर जिन आपराधिक मामलों में छानबीन चल रही है, उसमें जेलयात्रा की समस्त संभावनाएं निहित हैं। क्या यह अपराध और दंड का काव्यात्मक विधान भर है?
राजनीति के विशारद कहते हैं कि मामला सियासतदां का हो, तो आप उसे सरल और सहज समझने की भूल न करें। यह ऋजु रेखाओं का ऐसा जटिल जाल होता है, जिसे सुलझाने में ज्यामिती-शास्त्र के विद्वान तक असफल हो जाएं।
पहले चिदंबरम की बात। चिदंबरम के बेटे कार्ति चिदंबरम ‘मनी लॉन्डरिंग’ में पहले ही जेल की हवा खा चुके हैं। सियासी फिजां में चर्चा थी कि पी चिदंबरम पर सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय का शिकंजा धीमे-धीमे कस रहा है। निचली अदालत से अभयदान पाए हुए पूर्व मंत्री के लिए तिहाड़ का रास्ता तब पूरी तरह बाधारहित हो गया, जब दिल्ली उच्च न्यायालय ने उन पर तीखी टिप्पणी कर दी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट से भी चिदंबरम को कोई राहत नहीं मिली। सीबीआई और ईडी की टीमें उन्हें तलाश रही थीं, पर चिदंबरम ने उनके साथ समूचे देश को चौंका दिया। एक तरफ टेलीविजन स्क्रीन पर मोटे अक्षरों में उभर रहा था कि चिदंबरम के खिलाफ ‘लुकआउट नोटिस’ जारी और दूसरी तरफ, अकबर रोड स्थित कांग्रेस मुख्यालय में एक प्रेस कांफ्रेस की तैयारी हो रही थी। पत्रकारों को मालूम न था कि वे कुछ ही देर में चिदंबरम से रूबरू होने वाले हैं। पत्रकार वार्ता के लिए मंच सज चुका था। कांग्रेस के संगठन मंत्री के साथ तमाम वरिष्ठ वकील और पार्टी के नेता मंचासीन थे, तभी यकायक चिदंबरम प्रकट हुए। उन्होंने हॉरवर्ड शैली की सधी अंग्रेजी में एक वक्तव्य पढ़ा। उनका आशय था कि उन्हें कानून से भागने वाला बताया जा रहा है, जबकि वह तो कानून से संरक्षण मांग रहे हैं।
इस संक्षिप्त बयान के बाद वह पत्रकारों के सवाल सुने बिना गाड़ी में बैठे और रवाना हो गए। उधर, पार्टी मुख्यालय के बाहर आक्रोश से उबलते कार्यकर्ताओं की भीड़ बढ़ रही थी। इसी बीच सीबीआई टीम वहां आ पहुंची, पर उसके हाथ कुछ नहीं लगना था। कुछ ही मिनटों में खबर आई कि वह जोरबाग स्थित अपने आवास पर पहुंच चुके हैं। सीबीआई और ईडी के अधिकारी भी वहां पहुंचे, पर दरवाजे बंद थे। कुछ सीबीआई कर्मियों ने चारदीवारी फलांगकर मुख्य द्वार खोला और लगभग घंटे भर की जद्दोजहद के बाद चिदंबरम उनके साथ बाहर निकले। इतिहास ने सियासी भ्रष्टाचार, धींगा-मुश्ती और सत्ता परिवर्तन के साथ सत्ता की बदलती छटाओं की नई इबारत दर्ज कर ली।
यह सब कुछ दूसरे तरीके से भी रचा जा सकता था। हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से उम्मीद के अनुरूप फैसला न आने के बाद चिदंबरम चाहते, तो खुद सीबीआई-ईडी के अफसरों को आमंत्रित कर सकते थे। वह उनके दफ्तर में जाकर भी कह सकते थे कि मैं हाजिर हूं; आप चाहें, तो मुझे गिरफ्तार कर सकते हैं। यह तरीका भी यही साबित करता कि वह एक गंभीर राजनीतिज्ञ और कानून का पालन करने वाले नागरिक हैं। उन्हें कानून से भागने की नहीं, बल्कि उसके निर्वाह की फिक्र है, पर उन्होंने दूसरा रास्ता चुना।
पार्टी मुख्यालय में वरिष्ठतम नेताओं के बीच बैठे चिदंबरम जब सधी हुई भाषा में अपनी बात कह रहे थे, तब साफ था कि वह गिरफ्तारी से बच नहीं रहे, बल्कि उसे आमंत्रित कर रहे हैं। इस आमंत्रण और फलितार्थ के बीच के लम्हों को वह अपने पक्ष में जनमत जुटाने के लिए इस्तेमाल करना चाहते थे। पार्टी का साथ उन्हें संबल प्रदान कर रहा था। यह तरीका कितना कारगर रहा, इसकी मुनादी तो आने वाला वक्त करेगा, पर यहां भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर चर्चा कर लेना मुनासिब होगा। हुड्डा ने इसके लिए दूसरा रास्ता अपनाया। उन्होंने हफ्ता भर पहले रोहतक में महापरिवर्तन रैली कर कांग्रेस से सुरक्षित दूरी अपनाने के संकेत दिए थे। क्या वह असम के हेमंत बिश्वशर्मा, पश्चिम बंगाल के मुकुल राय और महाराष्ट्र के नारायण राणे के रास्ते पर हैं, या वह इस अवसर का इस्तेमाल अपनी ही पार्टी में महत्वपूर्ण दर्जा पाने के लिए करना चाहते हैं?
अब आते हैं राज ठाकरे पर। ठाकरे पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान सत्तारूढ़ गठबंधन के खिलाफ धुआंधार बोलते नजर आ रहे थे। वह अब तक चुनावी राजनीति में भले ही बहुत सफल न हुए हों, पर उन्हें महाराष्ट्र की वैकल्पिक राजनीति का उभरता हुआ सितारा माना जाता है। भ्रष्टाचार का आरोप उनकी संभावनाओं को धूमिल कर सकता है। इसके साथ ढलते-उलझते शरद पवार सत्तारूढ़ गठबंधन के लिए सुखद हालात बना रहे हैं। ऐसे में, विपक्ष के पास इस पूरी कार्रवाई को ‘राजनीतिक प्रतिशोध’ बताने के अलावा कोई चारा नहीं है।
रही अपराध और दंड-विधान की बात। तो यह जान लीजिए कि सीबीआई और ईडी जैसी संस्थाओं का गठन ही ‘हाई प्रोफाइल’ मामलों की जांच के लिए किया गया था। उन्हें अपने कर्तव्य के पालन हेतु रसूखदार लोगों पर ही हाथ डालना होता है। वे अपने कर्तव्य का पालन कर सकें, इसके लिए उन्हें ‘दबाव मुक्त’ बनाना होगा। ये हो कैसे? इस सवाल का एकमात्र जवाब यह है कि हमारे सियासतदां कम से कम इस मुद्दे पर एकराय हों कि पद के दुरुपयोग के मामले में हम ‘जीरो टॉलरेंस’ की नीति अपनाएंगे। जब सभी दल और उनके नेता विपक्ष में रहते हुए इन संस्थाओं पर आरोपों की बौछारें कर चुके हों, तो इसके अलावा चारा भी क्या है?
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