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पाकिस्तान की संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था इमरान खान की सोच से ज्यादा चोट पहुंचा रही है

कोविड-19 महामारी दुनिया भर में लगभग तीस लाख मामलों के साथ सुर्खियों में बनी हुई है. ऐसे हालात में भी इस महामारी के प्रकोप द्वारा पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था प्रभावित होने की संभावना पर लगभग हर रोज़ कई...

पाकिस्तान की संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था इमरान खान की सोच से ज्यादा चोट पहुंचा रही है
शिशिर गुप्ता, हिन्दुस्तान टाइम्स,नई दिल्ली।Wed, 29 Apr 2020 12:17 AM
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कोविड-19 महामारी दुनिया भर में लगभग तीस लाख मामलों के साथ सुर्खियों में बनी हुई है. ऐसे हालात में भी इस महामारी के प्रकोप द्वारा पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था प्रभावित होने की संभावना पर लगभग हर रोज़ कई खबरें सामने आ रही हैं. इनके अनुसार, तालाबंदी से बहुत पहले से ही पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था चरमराई हुई थी और दशकों से ऐसा ही है. इससे लोगों को ताकत मिल सकती है. नकारात्मकता के लिए बहुत गुंजाइश नहीं है, क्योंकि यह पहले से ही हर प्रकार की कमियों से जूझ रहा है. जहां तक ​​आम लोगों के जीवन यापन की लागत और गुणवत्ता की बात है, ये थोड़े खराब हो सकते हैं. पर ये कोई नई बात नहीं है और लोगों को पहले से ही इसकी आदत है. पाकिस्तान शायद इस क्षेत्र के सबसे गरीब देशों में से एक है और यदि इसे बेलआउट और रियायती क़र्ज़ नहीं मिले होते, तो यह वर्षों पहले बिखर गया होता.

कोरोनो वायरस बीमारी के दुनिया को ग्रसित करने के पहले, पाकिस्तान की जीडीपी वृद्धि दर 2020 के लिए 3.3% और 2021 के लिए 2.4% अनुमानित थी, जो एक दशक में सबसे कम थी. अब, विश्व बैंक द्वारा 2020 के लिए पाकिस्तान की वास्तविक विकास दर को अनुमानित किया गया है. इसके अनुसार, पाकिस्तान की वास्तविक विकास दर नकारात्मक रहेगी. यह -1.3 प्रतिशत और -2.2 प्रतिशत के बीच अनुमानित है.

2017 में पाकिस्तान की कुल जीडीपी लगभग 305 बिलियन डॉलर थी, जो ईरान (454 बिलियन डॉलर) से कम थी, और इसके 2020 में 340 बिलियन डॉलर तक बढ़ने की उम्मीद थी. आर्थिक प्रतिबंधों से संघर्ष कर रहे ईरान की तुलना में 2018 में पाकिस्तान का प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद 1,565 डॉलर था. ईरान की तुलना में बहुत कम है, जहां प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद 5,417 डॉलर है. इसने अपने ऋण से जीडीपी के अनुपात में ईरान की तुलना में काफी अधिक अंक प्राप्त किए. पाकिस्तान का ऋण से जीडीपी का अनुपात 71.69% और ईरान का 32.18% था. 2018 में इसका रक्षा खर्च अपने बजट का 18.5% था, जो कि अपने प्रतिद्वंद्वी पड़ोसी भारत के 8.74% के रक्षा बजट की तुलना में काफी अधिक है.

दोहरे अंक की महंगाई दर - लगभग 13% और लगभग 9% के बजट घाटे के साथ संघर्ष करते हुए, पाकिस्तान को हालात संभालने के लिए दोहरे अंकों में विकास करने की आवश्यकता होगी. यह होने की संभावना ना के बराबर है. सामान्य शब्दों में, अपने खर्चों को पूरा करने के लिए अधिक से अधिक क़र्ज़ लेने के साथ यह देश क़र्ज़ में और भी अधिक डूबता जाएगा और गरीब होता जाएगा. उच्च गैर-विकास व्यय के साथ संयुक्त राजस्व के कम स्रोत लंबे समय से पाकिस्तान की समस्या रहे हैं और कोविड-19 के साथ या इसके बिना, हालत ऐसे ही बने रहेंगे. दिलचस्प बात यह है कि पाकिस्तान का कर से जीडीपी का अनुपात (1%) बेहद काम रहा है. इसका अर्थ है कि मूल रूप से ये गरीब लोग ही हैं जो अप्रत्यक्ष करों के माध्यम से कर का बोझ उठाते हैं और इस प्रकार गरीबी के चक्र में फंसते जाते हैं.

भ्रष्टाचार, कुशासन और गलत प्राथमिकताओं के बीच, एक चीज़ जिसने पाकिस्तान को बचाए रखा है वह है कर्ज़े - घरेलू के साथ-साथ विदेशी. महामारी का मुकाबला करने के लिए आईएमएफ के एक तीव्र वित्तपोषण साधन के तहत इसे 1.39 बिलियन डॉलर प्राप्त हुआ है. पाकिस्तान इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स ने आर्थिक कूटनीतिक संस्थाओं को अन्य द्विपक्षीय कर्ज़ों को 24 बिलियन डॉलर तक करने की सलाह दी है.

भले ही चीनियों ने इस्लामाबाद द्वारा क़र्ज़ पुनर्निर्धारित करने के अनुरोध पर उसके पक्ष में विचार करने की अपनी इच्छा प्रकट की हो, लेकिन संख्याएं बहुत सुंदर तस्वीर नहीं दिखातीं. क़र्ज़ से जीडीपी का अनुपात 85% है और नकारात्मक जीडीपी वृद्धि और पिछले वर्ष (8.9%) की तुलना में अधिक बजट घाटे के साथ इसके 90% तक बढ़ने की उम्मीद है. पाकिस्तान का कुल विदेशी क़र्ज़ 111 बिलियन डॉलर है. जब तक पुनर्निर्धारित नहीं किया जाता है, 2020 के लिए इसका क़र्ज़ दायित्व 29 बिलियन डॉलर से अधिक है. संख्याएं बढ़ती जा रही हैं क्योंकि पाकिस्तान अपने कर्ज़ों के दायित्वों को पूरा करने और आयात के लिए भुगतान करने के लिए और भी क़र्ज़ ले रहा है और एक कालजयी कर्ज़े के जाल में फंसता जा रहा है. अपने 11 बिलियन डॉलर से कम के विदेशी मुद्रा भंडार से यह मुश्किल से साढ़े तीन महीने ही अपने आयातों को चला सकता है.

जबकि पाकिस्तान को पेरिस क्लब को 11.3 बिलियन डॉलर, बहुपक्षीय क़र्ज़दाताओं को 27 बिलियन डॉलर, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष को 5.765 बिलियन डॉलर और यूरोबॉन्ड और सूकुक जैसे अंतरराष्ट्रीय बॉन्डों को 12 बिलियन डॉलर का भुगतान करना है. सबसे बड़ा हिस्सा, 22 बिलियन डॉलर से अधिक, चीन का बकाया है. बड़े पैमाने पर यह चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपेक) का नतीजा है. 2014 में जब यह परियोजना लॉन्च की गई थी, तब इसकी लागत 46 बिलियन डॉलर थी. 2019 तक, यह आंकड़ा 62 बिलियन डॉलर हो गया था, जिसने बहुत ही कम समय में चीन के प्रति पाकिस्तान की कर्ज़दारी बढ़ा दी. इसके अलावा, यह कर्ज़दारी ऐसे समय में आई है, जब देश पहले से ही अपने क्षमता से परे जी रहा है.

अस्थिर स्थिति पाकिस्तान को और अधिक क़र्ज़ लेने के लिए प्रेरित करती रहती है, जिसमें आईएमएफ का क़र्ज़ भी शामिल है. संरचनात्मक परिवर्तनों को लागू करने में एक दर्जन बार विफल होने के बावजूद, पिछले साल पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को "फिर से स्थापित" करने के लिए सशर्त रूप से 6 बिलियन डॉलर का क़र्ज़ देने के लिए आईएमएफ सहमत हुआ था. परिणाम की भविष्यवाणी करने के लिए किसी को रॉकेट वैज्ञानिक होने की आवश्यकता नहीं है. पहले के मामलों की तरह, हालिया निर्णय भी वजह से अधिक आशावाद पर आधारित है.

सीपेक परियोजना के पूरा होने में लंबी देरी और लागत से अधिक खर्च होने के साथ, इसकी प्रबल संभावना है कि क़र्ज़ की पूरी रकम चुकाए जाने से पहले पाकिस्तान को अपने क़र्ज़ को कई बार पुनर्निर्धारित करना होगा या इसकी अवधि बदलनी पड़ेगी. यह श्रीलंका के समान पैटर्न का अनुसरण कर रहा है. श्रीलंका ऐसे ही क़र्ज़ के जाल में फंस गया था और आखिरकार इक्विटी और क़र्ज़ की अदला-बदली करनी पड़ी और चीन को एक रणनीतिक संसाधन का नियंत्रण सौंपना पड़ा. सीपेक का भविष्य उसी दिशा में आगे बढ़ रहा है. पर्यवेक्षकों की बार-बार की चेतावनी को पाकिस्तान नकारता रहा है. इसके पीछे की वजह पाकिस्तान यह बताता है कि यह उसके हर मौसम के साथी चीन के साथ उसके संबंध खराब करने के लिए किया गया दुष्प्रचार है.

जब तक पाकिस्तान को इस बात का अहसास होगा कि चीन उसका आदर्शवादी अंतरंग मित्र नहीं है और उसने केवल निर्भरता के रिश्ते को प्रोत्साहित किया है, तब तक बहुत देर हो सकती है.

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