महामारी से महामारी की तरह जूझिए
नोएडा के जिस संभ्रांत इलाके में मैं रहता हूं, दो हफ्ते पहले तक वहां सिर्फ वाहनों की कर्कश आवाज सुनाई पड़ती थी, पर अब अक्सर मोर की पीहू-पीहू सुनने को भी मिलती है। कभी कोयल कूकती है, तो कभी रात के चौथे...
नोएडा के जिस संभ्रांत इलाके में मैं रहता हूं, दो हफ्ते पहले तक वहां सिर्फ वाहनों की कर्कश आवाज सुनाई पड़ती थी, पर अब अक्सर मोर की पीहू-पीहू सुनने को भी मिलती है। कभी कोयल कूकती है, तो कभी रात के चौथे पहर किसी चिड़िया की चहचहाहट कानों से टकराती है। यह सब कुछ कितना अच्छा होता, अगर हम सामान्य दिनों से गुजर रहे होते, मगर कोविड-19 ने दुनिया को एक ऐसी ढलान पर ला खड़ा किया है, जहां मानवता के कदम फिसलते चले जा रहे हैं। दिन-ब-दिन मौतों का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है और बीमारों की संख्या भी। ऐसे में, मोर की पीहू-पीहू, कोयल की कू-कू या किसी चिड़िया की चहचहाहट वेदना के अलावा कुछ याद नहीं दिलाती।
वैज्ञानिकों का मानना है कि यह महामारी पुरानी दारुण महाद्वीपीय बीमारियों को पीछे छोड़ जाएगी। यही वजह है कि स्वीडन को छोड़कर समूची दुनिया की सरकारें ऐसे में लोगों के आवागमन पर रोक लगा रही हैं। भारत पिछले 12 दिनों से लॉकडाउन में है। ज्यादातर लोग खुद ही पाबंदियों का पालन कर रहे हैं, पर कुछ ऐसे जाहिल भी हैं, जो इस महामारी की मारक क्षमता को मानने के लिए तैयार नहीं। ऐसे लोग मानव बम से कम खतरनाक नहीं हैं।
कुछ उदाहरण। शुक्रवार को कन्नौज शहर में जुमे की नमाज पढ़ने के लिए दर्जनों लोग इकट्ठा होने लगे। पुलिस और प्रशासन के लोगों ने उन्हें समझाना चाहा कि ऐसा करना उचित नहीं है। देवबंद, फिरंगी महल और बरेली के उलेमाओं के साथ ही तमाम मुस्लिम विद्वान भी कह चुके हैं कि संकट के इन दिनों में घर पर ही नमाज पढ़ना उचित होगा, मगर भीड़ नहीं मानी। माहौल की गरमी बढ़ती गई और नमाजियों ने पुलिस बल पर हमला बोल दिया। उन्होंने न केवल पुलिसकर्मियों को पीटा, बल्कि पुलिस चौकी में आग भी लगा दी। बाद में बड़ी संख्या में पहुंचे सशस्त्र बलों ने उन्हें खदेड़ा।
यह अकेली घटना नहीं है। इससे पहले भी तमाम स्थानों पर पुलिस अथवा स्वास्थ्य विभाग की टीमों पर हमले हो चुके थे। ये कौन लोग हैं? किसके भड़कावे पर ऐसा कर रहे हैं? क्या उन्हें नहीं लगता कि उनकी इस हरकत से न केवल उनका, बल्कि अन्य लोगों का जीवन भी खतरे में पड़ रहा है? इंदौर की घटना पर तो वरिष्ठ शायर राहत इंदौरी द्रवित हो उठे थे। उनका कहना था कि ‘मुझे बताओ कि वह घर किसका था, जहां डॉक्टरों पर थूका गया, ताकि मैं उनके पैर पकड़कर, माथा रगड़कर उनसे कहूं कि खुद पर, अपनी बिरादरी पर, और अपने मुल्क पर रहम खाएं।’
दरअसल, दिल्ली के निजामुद्दीन में तबलीगी जमात के मरकज में शामिल होने आए 1,500 से अधिक लोगों को जब से रेस्क्यू किया गया है, तब से माहौल बिगाड़ने की कोशिशें लगातार जारी हैं। खुद जमात के जो लोग क्वारंटीन में रखे गए थे, उन्होंने भी ऐसी निंदनीय हरकतें कीं, जिसकी उम्मीद किसी भी धार्मिक व्यक्ति से नहीं की जा सकती। गाजियाबाद के सरकारी अस्पताल में तो उन्होंने नर्सों के साथ ऐसा अभद्र व्यवहार किया, जो अकल्पनीय था। आगरा में उनके संगी-साथियों ने खाना खाने से इनकार कर दिया। उन्हें भैंसे की बिरियानी चाहिए थी। परहेज का खाना उन्हें एक बडे़ षड्यंत्र का हिस्सा लग रहा था। इससे पहले उनमें से कुछ लोग जांच के लिए ही तैयार नहीं थे। वे इसे अपने मजहब के खिलाफ बता रहे थे। देश में पहली बार ऐसा हो रहा है, जब खुद को किसी धार्मिक संगठन का हिस्सा बताने वाले लोग जन-स्वास्थ्य जैसे संवेदनशील मुद्दे पर ऐसी हरकतें करते पाए जा रहे हैं।
स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, इस जमात में शामिल हुए लोगों में से 1,023 लोग शनिवार की शाम तक कोरोना पॉजिटिव पाए जा चुके थे। देश के 30 फीसदी मामलों के लिए अकेले जमात जिम्मेदार है। मंत्रालय का यह भी दावा है कि लॉकडाउन के लाभ पर इन लोगों ने पानी फेर दिया है। बहुत से लोगों को यह दावा रास नहीं आएगा, लेकिन एक बात तय है कि इस तरह की जाहिलाना हरकत अन्य धर्मों के कट्टरपंथियों को बल देती है। भरोसा न हो, तो सोशल मीडिया पर जारी तू-तू, मैं-मैं को देख लीजिए, सब कुछ साफ हो जाएगा। इक्कीसवीं शताब्दी का वह भारत, जिसके पास संसार में स्नातकों की सर्वाधिक आबादी है, वहां इस तरह की घटनाएं शर्मसार करती हैं। हम डिग्रियां लेकर आगे बढ़ रहे हैं या मदमत्त मध्य युग में लौट रहे हैं?
इसमें कोई दो राय नहीं कि समय रहते लॉकडाउन लागू करने से भारत में कोविड-19 का प्रसार सीमित चल रहा था। सरकार को पर्याप्त तैयारी का वक्त मिल गया था और कुछ आशावादी यह उम्मीद पालने लगे थे कि हम तीसरे दौर में प्रवेश से बच जाएंगे। लेकिन पहले महानगरों से पलायन और फिर जमात के संक्रमण-ग्रस्त लोगों का देश के सतरह राज्यों में उन्मुक्त भ्रमण नई आशंकाएं पैदा कर रहा है।
क्या सरकार को 14 अप्रैल के बाद भी लॉकडाउन बढ़ाना होगा?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज रात नौ बजे पूरे देश से नौ मिनट के लिए अपने घरों की बत्तियां बुझाकर घर के दरवाजे या बालकनी में निकलने की अपील की है। वह चाहते हैं कि देशवासी इस दौरान मोमबत्ती, दीये, टॉर्च अथवा मोबाइल फोन की फ्लैश लाइटों से रोशनी कर इस महामारी से लड़ाई में अपनी एकजुटता जाहिर करें। गई 22 मार्च को जब उन्होंने शाम पांच बजे जरूरी सेवाओं में जुटे लोगों की हौसला-अफजाई के लिए तालियां और थालियां बजाने का आह्वान किया था, तब लोगों ने इसे हाथों-हाथ लिया था। हालांकि, सोशल मीडिया और सियासत के महारथियों ने तब भी सवाल उठाए थे, आज भी सवाल उठा रहे हैं। ऐसे में, एक बात तय है कि यह आह्वान तभी सफल माना जाएगा, जब हिन्दुस्तान के सवा सौ करोड़ लोग कम से कम यह तो मान ही लें कि कोरोना एक महामारी है और उससे वैसे ही निपटना है, जैसे महामारियों से निपटा जाता है।
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