फोटो गैलरी

Hindi News ओपिनियन आजकलसितारों से आगे जहां और भी हैं

सितारों से आगे जहां और भी हैं

आज से सौ साल बाद यदि कोई शोध छात्र 21वीं शताब्दी के कोरोनाग्रस्त भारत पर शोध करना चाहेगा, तो उसे अद्भुत आश्चर्य का सामना करना पडे़गा। मौजूदा वक्त के न्यूज वीडियो देखकर उसे लगेगा कि भारत के सामने 2020...

सितारों से आगे जहां और भी हैं
शशि शेखरSat, 26 Sep 2020 10:26 PM
ऐप पर पढ़ें

आज से सौ साल बाद यदि कोई शोध छात्र 21वीं शताब्दी के कोरोनाग्रस्त भारत पर शोध करना चाहेगा, तो उसे अद्भुत आश्चर्य का सामना करना पडे़गा। मौजूदा वक्त के न्यूज वीडियो देखकर उसे लगेगा कि भारत के सामने 2020 के उत्तराद्र्ध में सबसे बड़ी समस्या कुछ फिल्मी सितारों की नशाखोरी ही थी। कोरोना, चीनी सेना का अतिक्रमण और आर्थिक बदहाली उसे सिर्फ समाचार चैनलों के अबूझप्राय टिकर पर चलती दिखाई देगी। यह मीडिया की ताकत और त्रासदी, दोनों है कि वह अनजाने ही इतिहास की चालू व्याख्या रचता चलता है, बिना जाने-समझे कि इसके असर कितने दूरगामी होंगे। 
काश! हमारा टीवी मीडिया संतुलन स्थापित करना जानता।
यहां यह मत मान बैठिएगा कि मैं युवा पीढ़ी में नशे की समस्या को कमतर आंक रहा हूं। यह एक ऐसी महामारी है, जिससे सिर्फ भारत नहीं, बल्कि दुनिया भर की सरकारें पिछली शताब्दी से जूझ रही हैं। अमेरिकी सत्ता-सदन को जोशीले राष्ट्रवाद से अपनी मुट्ठी में करने वाले रोनाल्ड रीगन ने तो इसे अनौपचारिक तौर पर राष्ट्रीय समस्या तक घोषित कर दिया था। उन्होंने एक विशेष कार्यदल का गठन किया, जिसका काम कोलंबिया के ड्रग-लॉर्ड पाब्लो एस्कोबार को मार गिराना था। उस समय अमेरिका ने उसके खात्मे के लिए लगभग उतने ही संसाधन झोंक दिए थे, जितने कि लैटिन अमेरिकी देशों में क्रांति की अलख जगाने वाले चे ग्वेरा के लिए कभी झोंके थे। कुछ लोगों को पाब्लो एस्कोबार से चे ग्वेरा की तुलना नागवार गुजर सकती है, पर सत्ता-नीति के समीकरण ऐसे ही बनते हैं। आप चाहें, तो इस पर रंज प्रकट कर सकते हैं।
सवाल उठता है कि पाब्लो एस्कोबार के वध के बाद क्या अमेरिका में नशे का अवैध कारोबार खत्म हो गया? यकीनन नहीं। कभी हॉलीवुड की स्टंट फिल्मों के नायक रह चुके रोनाल्ड रीगन ने बीमार का इलाज किया था, बीमारी का नहीं, इसीलिए मरीज चला गया, पर मर्ज यथावत है। पाब्लो तो बस इसलिए निशाने पर आ गया था, क्योंकि उसने पुराने ड्रग-लॉड्र्स की तरह गुमनाम जिंदगी बसर करने की बजाय अपने लिए लुभावने ग्लैमर का निर्माण कर लिया था। उसकी शाही जिंदगी फैशन पत्रिकाओं के कवर पर होती और उन्हें देखकर खुद पर मोहित होता हुआ पाब्लो कोलंबिया के राष्ट्रपति निवास में काबिज होने की व्यूह-रचना में  लग गया था।
हमारे देश में भी कुछ लोग आरोप लगा रहे हैं कि जिन फिल्मी सितारों को निशाने पर लिया गया है, वे नशे के नहीं, सियासत के शिकार हैं। ऐसे लोगों का प्रिय जुमला है- ‘इंडस्ट्री में कौन नशे का लती नहीं है?’ यह समस्या के सरलीकरण का नापाक प्रयास है। मैं इससे असहमति व्यक्त करता हूं, क्योंकि इन सितारों को देखकर युवा पीढ़ी के लोग प्रेरणा ग्रहण करते आए हैं। हम जब छोटे थे, तब अक्सर किसी लड़की के बाल छोटे होने पर कहा जाता कि उसने सिने तारिका साधना से प्रेरणा ग्रहण की है। इसी तरह, बड़े बाल रखने वाली नूतन कहलाती। गोल चेहरे वाली को मीना कुमारी, तो बड़ी आंखों वाली को आगे चलकर रेखा या हेमा मालिनी का दर्जा दिया जाता था। गबरू युवा धर्मेंद्र और सजीले बांके नौजवान देव आनंद जैसे कहे जाते।
आज भी नौजवानों की चाल-ढाल, बोल-चाल पर इन सितारों का असर पड़ता है। अमिताभ बच्चन के तमाम संवाद बरसों बीत जाने के बावजूद लोगों की जुबान पर ताजा स्वाद की भांति कायम हैं। सलमान का शारीरिक सौष्ठव जिम संचालकों की रोजी-रोटी चलाता है, तो आमिर या शाहरुख के नए लुक के लिए हेयर डे्रसर इंतजार करते हैं। मुंबई में जो लोग धर-पकड़ के दायरे में हैं, वे सिर्फ इसलिए निशाने पर आए, क्योंकि एक सिने स्टार ने आत्महत्या कर ली थी। अगर फिल्मी सितारे इतने असरकारी हैं, तो क्या आपको नहीं लगता कि उनकी नशेबाजी भी नौजवानों को उकसाने का कारण बनती होगी? एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें तमाम सिने-स्टार नशे में ‘टल्ली’ दिखाए गए थे। उन्होंने नशीले पदार्थों का सेवन इतनी अधिक मात्रा में कर रखा था कि उनकी आंखें भौंहों से जा मिली लगती थीं और चेहरे विकृत हो गए थे। मुझे यकीन है कि कोई एजेंसी अगर  ऐसे वीडियो के दुष्परिणाम का सर्वे करे, तो आश्चर्यजनक नतीजों का खुलासा हो सकता है।
हो सकता है कि स्वापक नियंत्रण ब्यूरो (एनसीबी) के अधिकारियों ने अति-उत्साह का परिचय दिया हो, लेकिन नशीले पदार्थों के खिलाफ किसी भी कार्रवाई का समर्थन किया जाना चाहिए। यह मानवता के लिए कोरोना से बड़ा खतरा है।
फटाफट खबरों की आपाधापी ने हमारी स्मृतियों को कुंद करना शुरू कर दिया है। यही वजह है कि हम भूल गए, 2017 में पंजाब का चुनाव नशे के मुद्दे पर लड़ा गया था। आम आदमी पार्टी ने इसे शुरुआत में उठाया था, पर अमरिंदर सिंह इसे ले उडे़। आज वह पंजाब के मुख्यमंत्री हैं। यह समस्या कितनी गंभीर है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पिछले साल 25 जून को लोकसभा में जो आंकडे़ पेश किए गए, उनके अनुसार 2017 में नशीले पदार्थों की तस्करी के 47,344 मामले दर्ज किए गए थे। इनमें सबसे ज्यादा पंजाब में 12,439, केरल में 8,440 और उत्तर प्रदेश में 6,693 मामले सामने आए थे। लेकिन एनसीआरबी के मुताबिक, उसी वर्ष नशीले पदार्थों के निजी सेवन के सर्वाधिक मामले महाराष्ट्र में दर्ज किए गए थे। 14,634 मामलों में से 96 प्रतिशत निजी इस्तेमाल से जुड़े थे। इसके बाद पंजाब का स्थान था।
नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो  के अनुसार, महाराष्ट्र अगर निजी नशाखोरी के मामले में पहले नंबर पर है, तो मुंबई में जो धर-पकड़ हो रही है, वह सही कदम है, पर इसे लोग तभी अच्छा कहेंगे, जब ब्यूरो के अधिकारी अपने दायरे को बड़ा करेंगे। ड्रग्स के खिलाफ देश भर में लंबा अभियान चलना चाहिए। उम्मीद है कि यह अभियान माया नगरी के चंद सितारों तक सीमित होकर नहीं रह जाएगा। अगर ऐसा हुआ, तो इसे इतिहास का दर्दनाक दोहराव कहा जाएगा, जहां ग्लैमर का अवतार पाब्लो मारा जाता है, पर उसका कारोबार बदस्तूर जारी रहता है।

Twitter Handle: @shekharkahin 
शशि शेखर के फेसबुक पेज से जुड़ें

shashi.shekhar@livehindustan.com

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें
अगला लेख पढ़ें