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पहलवानों को गुस्सा क्यों आया?

हुकूमत और समाज अगर खिलाड़ियों के हितों को न पोस सके, तो यह गलत है, पर स्टार खिलाड़ी यदि अपने स्टारडम का दुरुपयोग करें, तो इसे गर्हित कृत्य के सिवा कुछ नहीं कहा जा सकता। भारतीय कुश्ती महासंघ का...

पहलवानों को गुस्सा क्यों आया?
Amitesh Pandeyशशि शेखरSat, 21 Jan 2023 09:10 PM
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जनार्दन ग्यानोबा नवले का नाम सुना है आपने? नवले ने क्रिकेट के ‘मक्का’ लॉर्ड्स में इंग्लैंड के खिलाफ पहले टेस्ट में पहली गेंद का सामना किया था। उन्होंने दो टेस्ट और 65 प्रथम श्रेणी के मैच खेले थे। सन 1950 में क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद उन्हें कोई ढंग का काम नहीं मिला। 7 सितंबर, 1979 को आखिरी सांस लेते वक्त वह बॉम्बे-पूणे रोड पर भीख मांग रहे थे। इतिहास के खुशनुमा मोड़ से करियर शुरू करने वाले कभी-कभी किस मुकाम पर गुम हो जाते हैं! 
दुर्भाग्य से वह अकेले नहीं हैं। वीनू मांकड़, सूते बनर्जी जैसे तमाम दिग्गजों को आर्थिक दिक्कतों का सामना करना पड़ा था। क्रिकेट की दुनिया में कैरी पैकर की दस्तक से पहले अधिकांश क्रिकेटरों के यही हालात थे। पैकर ने उनकी आमदनी के दरवाजे खोले और हालात बदलते चले गए। अब तो सयाने अपने बच्चों को पेशेवर क्रिकेटर बनाना चाहते हैं, ताकि वे नाम और दाम, दोनों कमा सकें। 
यह बात अलग है कि कुछ खेलों को छोड़ दें, तो देश में खिलाड़ियों के लिए गौरव और प्रतिष्ठा अभी भी कहीं दूर टिमटिमाता एक तारा भर है। ऐसा न होता, तो दिल्ली के दिल जंतर-मंतर पर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के तमाम पहलवानों को गुजरे सप्ताह तीन दिन तक धरने पर न बैठना पड़ता। आपको तफसील से समूची बात बताता हूं। 
गए बुधवार की शाम उस वक्त अचानक सनसनी फैल गई, जब ओलंपियन विनेश फोगाट का बयान वायरल हो चला कि भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष तरह-तरह के अनाचार के अलावा महिला खिलाड़ियों और प्रशिक्षकों के साथ यौन प्रताड़ना भी करते आए हैं। विनेश कोई राह चलती बाला नहीं हैं। उन्होंने राष्ट्रमंडल खेलों में लगातार तीन स्वर्ण पदक जीत देश का नाम रोशन किया है। उनके साथ साक्षी मलिक और बजरंग पूनिया भी खासे मुखर थे। घिनौने आरोप की जद में आए महासंघ के अध्यक्ष कौन साहब हैं? 
यह हैं स्वनामधन्य बृजभूषण शरण सिंह। 
बृजभूषण शरण सिंह भारतीय जनता पार्टी के टिकट से लोकसभा में चुनकर आए हैं। वह कुलजमा छह बार चुनाव जीते हैं। माननीय सांसद पर लगे इन आरोपों से खलबली मचनी थी, सो मची। उसी समय यह बात फिर उभरी कि माननीय पर कई आपराधिक मुकदमे चल चुके हैं और 1990 के दशक में वह ‘टाडा’ के तहत जेल में भी रहे थे। उन पर दाऊद इब्राहिम के सहयोगियों को नेपाल भागने के लिए ‘सेफ पैसेज’ मुहैया कराने का आरोप था, जो अदालत में साबित नहीं हो सका था। वह एक पहलवान को सरेमंच पीट भी चुके हैं।
सांसद महोदय ने विनेश फोगाट के आरोपों के खंडन में पल भर की देरी न की। उनका कहना था- ‘मैं खिलाड़ियों से बात करूंगा। मैं किसी भी तरह की जांच के लिए तैयार हूं। यौन उत्पीड़न कभी नहीं हुआ। अगर एक भी एथलीट सामने आया और यह साबित कर दिया, तो मैं खुद फांसी पर लटकने के लिए तैयार हूं। न खिलाड़ी ट्रायल देंगे, न नेशनल लेवल पर लडे़ंगे। दिक्कत तब होती है, जब फेडरेशन नियम बनाता है। ये खिलाड़ी, जो आज धरने पर बैठे हैं, उनमें से एक ने भी नेशनल नहीं लड़ा है।’
बृजभूषण शरण सिंह ने बाद में यह भी कहा कि मैं यहां किसी की दया से नहीं बैठा हूं। मैंने अगर मुंह खोला, तो सुनामी आ जाएगी। माननीय सांसद जब गोंडा में यह दंभ दिखा रहे थे, तब दिल्ली में पहलवानों के समर्थन में सुनामी आ रही थी। इस बीच खेल मंत्री अनुराग ठाकुर की अगुवाई में सरकारी नुमाइंदों ने हल खोजने की कड़ी मशक्कत की। ठाकुर ने अधिकारियों, खिलाड़ियों और संबंधित लोगों से अथक मैराथन बैठकें कीं। अंत में पहलवान ‘सात सदस्यीय जांच समिति’ के गठन के फैसले पर राजी हो गए। यह समिति शारीरिक शोषण, आर्थिक और प्रशासनिक अनियमितताओं के साथ सभी शिकायती मुद्दों पर जांच कर चार सप्ताह में अपनी रिपोर्ट देगी। इस दौरान कुश्ती महासंघ का प्रशासन भी यही समिति देखेगी। तब तक बृजभूषण शरण सिंह खुद को महासंघ के कामकाज से दूर रखेंगे। इसे आप उनकी विदाई की पटकथा का प्रारंभिक अध्याय भी मान सकते हैं। 
तय है, मामला फौरी तौर पर सुलझ गया है, मगर स्थिति जटिल है। पेरिस ओलंपिक में सिर्फ डेढ़ साल रह बचा है। वहां भारत को अपने पहलवानों से पदक जिताने की उम्मीद है। हिन्दुस्तान के ये जांबाज अब तक सात ओलंपिक पदक देश के खाते में जमा कर चुके हैं। आजादी के 75 वर्षों में हमने जो 35 ओलंपिक पदक जीते हैं, उनमें हॉकी के बाद कुश्ती की सर्वाधिक हिस्सेदारी है। 
बताने की जरूरत नहीं कि अंतरराष्ट्रीय स्तर के हर खिलाड़ी का एक-एक लम्हा बेहद महत्वपूर्ण होता है। पहलवानों की इस क्षति की भरपायी कैसे होगी? इन हालात के साथ भारत भला कैसे खेल महाशक्ति बन सकता है?
दरअसल, इस साल की शुरुआत ही खेलों के लिए दुखद खबरों के साथ हुई थी। वर्ष के पहले दिन हरियाणा के खेल मंत्री और भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कप्तान संदीप सिंह पर चंडीगढ़ पुलिस ने एक महिला कोच की शिकायत के मद्देनजर यौन प्रताड़ना और डराने-धमकाने के आरोप दर्ज किए थे। संदीप को इसके बाद इस्तीफा देना पड़ गया था। कुल 18 दिनों में यह दूसरा मौका था, जब ऐसे अफसोसनाक आरोपों से हम दो-चार हो रहे थे।  
इस वाकये से साबित होता है कि राजनेता और नौकरशाहों के साथ खिलाड़ी भी खिलाड़ियों का शोषण करने के मामले में पीछे नहीं हैं। 
आप याद करें, ओलंपियन भारोत्तोलक कर्णम मल्लेश्वरी ने भी कुछ ऐसी ही परिस्थितियों का जिक्र करते हुए चिंता जताई थी। इसके बाद कोच रमेश मल्होत्रा को निलंबित कर दिया गया था और उनका नाम द्रोणाचार्य अवॉर्ड की प्रस्तावित सूची से भी वापस ले लिया गया था। यहां एक दुखद तथ्य की ओर भी आपका ध्यान दिलाना चाहूंगा। देश में कुलजमा 56 मान्यता प्राप्त खेल महासंघों में से 47 फीसदी के मुखिया राजनेता हैं, लेकिन सारी बला राजनेताओं के सिर डाल देना उचित नहीं। संदीप सिंह और रमेश मल्होत्रा जैसों की सूची लंबी है, पर दुर्भाग्य देखिए। कुछ लोग तो इससे भी दो 
कदम आगे बढ़ गए। दो ओलंपिक पदक जीतने वाले पहलवान सुशील कुमार आज हत्या के जुर्म में सलाखों के पीछे हैं। क्रिकेटर, राजनीतिज्ञ, हंसोड़ और न जाने क्या-क्या, नवजोत सिंह सिद्धू भी गैर-इरादतन हत्या के मामले में सजा काट रहे हैं। 
हुकूमत और समाज अगर खिलाड़ियों के हितों को न पोस सके, तो यह गलत है, पर स्टार खिलाड़ी यदि अपने स्टारडम का दुरुपयोग करें, तो इसे गर्हित कृत्य के सिवा कुछ नहीं कहा जा सकता। भारतीय कुश्ती महासंघ का महासंग्राम इस कड़वे सच की मुनादी करता है कि व्यापक खेल सुधारों का वक्त आ गया है। हमें इस बार चूकना नहीं चाहिए। 

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