एक बार फिर चक दे इंडिया
सेमीफाइनल ने सिर्फ हमें हमारा शमी नहीं लौटाया, बल्कि विराट की नई विराटता के दर्शन भी करवाए। भारत यह विश्व कप जीते, जरूर जीते, पर सेमीफाइनल तक ही इस प्रतियोगिता ने अपना अवदान दे दिया है। यह विश्व कप...

सुप्रीम कोर्ट की मनाही के बावजूद दिवाली की रात देर तक फूटते पटाखों ने इस बरस भी पर्यावरण के प्रति संवेदनशील लोगों का दिल जमकर दुखाया। उनकी वेदना अकारण नहीं थी। प्रदूषण मापने वाली कुछ एजेंसियों के अनुसार, दिल्ली और एनसीआर का वायु गुणवत्ता सूचकांक 999 तक जा पहुंचा था, लेकिन आधिकारिक आंकडे़ कुछ और कह रहे थे।
अपनी सांसें जब भारी लगने लगें, तो आंकड़ों के भ्रमजाल में भला कौन फंसना चाहेगा?
दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के बेचैन लोगों को दीप पर्व से दो दिन पहले अचानक उमडे़ मेघों ने राहत दी। इस आंधी-पानी ने प्रदूषण की कमर तोड़ दी, पर दिवाली की रात पटाखों की तरज-गरज से वातावरण फिर से धुआं-धुआं हो उठा। प्रदूषण से परेशान लोगों की शिकायत थी कि दूषित हवा की मार तो सब पर पड़ रही है, फिर पटाखों को धार्मिक मुद्दा क्यों बनाया जा रहा है? इस मुद्दे पर सोशल मीडिया में छिड़ी बहस त्योहार की मिठास को कड़वाहट में तब्दील किए जा रही थी। तब क्या पता था कि अगले हफ्ते एक ऐसा चमत्कार होने जा रहा है, जो प्रमाद फैलाने वालों के मुंह पर ताला लगा देगा।
जी, मैं क्रिकेट की बात कर रहा हूं। बुधवार को भारत और न्यूजीलैंड के बीच हुए सेमीफाइनल मुकाबले में मोहम्मद शमी ने सात विकेट चटकाकर हिन्दुस्तान की जीत पुख्ता कर दी। यह वही मोहम्मद शमी हैं, जिनके खिलाफ दो साल पहले टी-20 विश्व कप में पाकिस्तान से मिली हाहाकारी हार ने वैचारिक प्रदूषण फैलाने वालों के लिए नए दरवाजे खोल दिए थे। कोई उन्हें पाकिस्तान जाने की सलाह दे रहा था, तो किसी को उनमें पाकिस्तानी एजेंट के दीदार हो रहे थे।
उत्तर प्रदेश के अमरोहा में जन्मे इस खिलाड़ी पर उस वक्त किस्मत ने कहर बरपा रखा था। सन् 2018 से उनकी पत्नी उन पर तरह-तरह के इल्जाम लगा रही थीं। शमी की पत्नी हसीन जहां, जो कभी चीयर लीडर हुआ करती थीं, अब अपने अबला होने की मुनादी कर रही थीं। छोटे परदे के खोखले खबरनवीसों को हसीन ने सुनहरा मौका मुहैया करवा दिया था। शमी इतना टूट गए थे कि 2020 में उन्होंने कप्तान रोहित शर्मा के साथ इंस्टाग्राम चैट में खुलासा किया कि अवसाद के गहन क्षणों में वह आत्महत्या तक की सोचने लगे थे। शुरुआती तूफान गुजरने के बाद उन्होंने मजहब को आधार बनाकर हंगामा खड़ा करने वालों को जवाब दिया था- जो लोग धर्म को लेकर किसी को ट्रोल करते हैं, वे न असली फैन हो सकते हैं और न ही सच्चे हिन्दुस्तानी! उस समय के कप्तान विराट कोहली ने भी पत्रकार-वार्ता आयोजित कर कहा था- ‘किसी के ऊपर उसके धर्म के आधार पर हमला करना एक इंसान के तौर पर सबसे दयनीय बात है... हम 200 प्रतिशत उनके साथ खड़े हैं। टीम इंडिया में हमारे भाईचारे को नहीं हिलाया जा सकता।’
त्रासदियां लंबी कितनी भी खिचें, पर उनकी अपनी सीमा होती है। शमी इसके अपवाद नहीं हैं।
इसी विश्व कप प्रतियोगिता में उनको अंतिम-ग्यारह में जगह तक नहीं मिली, पर हार्दिक पांड्या के चोटिल हो जाने के बाद उन्हें मैदान में उतरने का मौका मिला। मौजूदा प्रतियोगिता में वह अब तक सिर्फ छह मैच खेल सके, लेकिन उन्होंने 23 विकेट लेकर साबित कर दिया है कि खिलाड़ी वही, जो अंतिम दम तक हार न माने। न्यूजीलैंड के मैच के बाद समूचे देश ने जिस तरह उनकी तारीफ के पुल बांधे, उसने यकीनन शमी के जख्मों पर शीतल फाहा रखा होगा। तरोताजा शमी को आज होने वाले फाइनल मैच में नए चमत्कार की शुभकामना दी जानी चाहिए।
इस सेमीफाइनल ने सिर्फ हमें हमारा शमी नहीं लौटाया, बल्कि विराट की नई विराटता के दर्शन भी करवाए। एकदिवसीय मैचों में 50वां शतक ठोककर उन्होंने ‘क्रिकेट के भगवान’ सचिन के कीर्तिमान को पीछे छोड़ दिया है। भारत यह विश्व कप जीते, जरूर जीते, पर सेमीफाइनल तक ही इस प्रतियोगिता ने अपना अवदान दे दिया है। यह विश्व कप हार-जीत के आंकड़ों से कहीं अधिक क्रिकेट के भाव तत्व के लिए जाना जाएगा।
विराट नए भारत के उभरते जोश का प्रतीक हैं। आज 35 बरस की उम्र में वह जिस दमखम से खेल रहे हैं, इसे भारतीयों की बढ़ती जिजीविषा की जीवंत झांकी माना जाना चाहिए। हमारे बचपन में जब सुनील गावस्कर और जवानी में सचिन सेंचुरी लगाया करते थे, तब वे एक गरीब देश की उम्मीद हुआ करते थे। अपनी युवावस्था से बेहतर और चुस्त-दुरुस्त दिखने वाले विराट उभरते भारत की नई उमंग का प्रतीक हैं। पहले हमारे खिलाड़ी 30 साल के आस-पास और आम हिन्दुस्तानी 50 वर्ष की आयु में स्वयं को वानप्रस्थ की राह पर छोड़ देते थे, लेकिन नए भारत में उम्र और उत्पादकता के समीकरण बदल गए हैं।
विराट कोहली अगर इस नए भारत के ब्रांड एंबेसडर हैं, तो मोहम्मद शमी हिन्दुस्तानी भाईचारे के पोस्टर ब्वॉय!
इन दोनों ने सिर्फ कुछ घंटों में वह काम कर दिखाया, जिसे खत्म करने के लिए नफरत के बाजीगरों ने महीनों कड़ी मशक्कत की थी।
ऐसा नहीं है कि सिर्फ क्रिकेट में ऐसा हो रहा है। भारतीय सिनेमा भी भारतीयता की शाश्वतता के संदेश दे रहा है। आपको याद होगा, इसी साल की शुरुआत में जब पठान आई थी, तो शाहरुख खान के मजहब की वजह से वितंडावाद खड़ा करने की कोशिश की गई थी, लेकिन बॉक्स ऑफिस ने साबित कर दिया था कि सिनेमा के तलबगार मुल्क के सामने मजहबी हथकंडों को कोई तरजीह नहीं देते। पिछले दिनों शाहरुख की दूसरी फिल्म रिलीज हुई- जवान। उसने तो पठान का भी कीर्तिमान ध्वस्त कर दिया। दिवाली के दिन रुपहले परदे पर आई सलमान खान की टाइगर-3 भी अच्छी चल रही है।
सलमान खान की इस फिल्म के लिए पहले के मुकाबले बहिष्कार की अपीलें भी नहीं हुईं। क्या सोशल मीडिया के अदृश्य सुपारी किलर हताश हो गए हैं? ऐसा मानना भूल होगी। रक्तबीज की तरह इन पर जितने प्रहार होंगे, ये मजबूत होते जाएंगे। अपने जीने-खाने के लिए नए बहाने तलाश लेना इनकी खासियत है। सुकून बस इतना है कि हिन्दुस्तानी अपनी हिन्दुस्तानियत इनके बहकावे में आकर नहीं छोड़ रहे।
यहां एक और तथ्य गौरतलब है। सिनेमा अब पहले की तरह भाषायी और सूबाई सीमाओं का बंधक नहीं है। नई तकनीक की आमद से भाषायी सिनेमा ओटीटी के जरिये हमारे-आपके घरों में दाखिल हो चुका है। पहले हमलोग एमजी रामचंद्रन या जेमिनी गणेशन का महज नाम सुनते थे, उनके काम को परखने का जरिया हमारे पास नहीं था। आज दक्षिण के मोहनलाल, मामुट्टी, विजय, महेश बाबू या राणा दग्गूबाती हमारे निजी सिने जगत का हिस्सा हैं। दक्षिण की फिल्में, मुंबइया सिनेमा को सामने से सीना चौड़ा कर ललकारती हैं। यह स्वस्थ प्रतिस्पद्र्धा अच्छे और सार्थक सिनेमा का अनिवार्य तत्व बनती जा रही है। राष्ट्रीय एकता की डोर इससे न केवल मजबूत होगी, बल्कि भौगोलिक दूरियों से उपजा अजनबीपन भी दूर हो सकेगा।
उम्मीद है, खेल, सिनेमा, साहित्य और सांस्कृतिक गतिविधियों से उपजी यह ऊर्जा नकारात्मक तत्वों को आगे भी इसी तरह अंगूठा दिखाती रहेगी।
@shekharkahin
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