फोटो गैलरी

Hindi News ओपिनियन आजकलजब सबके हाथ खून से सने हों

जब सबके हाथ खून से सने हों

इस मुद्दे पर रूस, चीन, अमेरिका, ब्रिटेन जैसे ताकतवर मुल्कों के बीच विभेद साफ दिख रहा है। कोरी शाब्दिक बयानबाजी के बजाय क्यों न ये ताकतवर मुल्क इजरायल के भीतर और बाहर पसरे क्रंदन, कंपकंपाहट और...

जब सबके हाथ खून से सने हों
Pankaj Tomarशशि शेखरSat, 14 Oct 2023 08:32 PM
ऐप पर पढ़ें

आज उस सरजमीं की बात, जिसका तीन पैगंबरों और धर्मों से सीधा नाता है। इसके बावजूद यहां जन्मे लोग पीढ़ी-दर-पीढ़ी संताप भुगतने के लिए अभिशप्त हैं। ऐसा लगता है, अम्न-ओ-अमान के ख्वाब यहां खिलने से पहले मुरझा जाते हैं। भरोसा न हो, तो इजरायल और उससे सटे इलाकों में पिछले हफ्ते से जारी खूंरेजी पर गौर फरमा लीजिए। 
गुजरी 7 अक्तूबर को हमास के हत्यारों ने जिस वहशियाना हरकत को अंजाम दिया, वह इंसानियत के इतिहास में काले अध्याय के तौर पर दर्ज की जाएगी। इजरायल ने इसे अपने ऊपर थोपी जंग माना और अपनी समूची सैन्य शक्ति को हमास के समूल नाश के लिए खुला छोड़ दिया। नतीजतन, पहले छह दिनों में ही उसकी सेना गाजा पर छह हजार से ज्यादा बम बरसा चुकी है। यही नहीं, तेल अवीव ने उत्तरी गाजा के लगभग 11 लाख लोगों को महज चौबीस घंटे में अपना घर-द्वार छोड़कर दक्षिण की ओर रवानगी का हुक्म सुनाया, ताकि वह थल सेना को ‘निर्णायक कार्रवाई’ का आदेश दे सके। उसने हल्की जमीनी कार्रवाई शुरू भी कर दी है, पर बडे़ ऑपरेशन के लिए बेताब उसके टैंक सीमा पर धड़धड़ा रहे हैं। इससे दुनिया के अमन पसंदों की धड़कनें बढ़ गई हैं। इन पंक्तियों के लिखे जाते वक्त वह समय-सीमा समाप्त हो चुकी है। दूसरी तरफ, गाजा में दक्षिण की ओर जाने वाले राजमार्ग पर भयभीत गाजावासियों से उफनते वाहनों का तांता लगा हुआ है। इजरायल की हुकूमत जानती है कि उनके द्वारा दी गई समय-सीमा और अंतिम छह घंटे का ‘सेफ पैसेज’ कितना निरर्थक है। 
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरस के अनुसार, इस काम को पूरा करने के लिए चौबीस तो क्या, बहत्तर घंटे भी नाकाफी हैं। उधर, हमास गाजापट्टी वासियों को रोके रखने की हरसंभव कोशिश कर रहा है। उसका नेतृत्व जानता है कि इन लोगों के रहते इजरायल को दुनिया लंबे समय तक गोले बरसाने की इजाजत नहीं देगी। यह अपने लोगों को ‘ह्यूमन शील्ड’ के तौर पर इस्तेमाल करना नहीं, तो और क्या कहलाएगा! इसके अलावा, उनके पास अभी भी 120 इजरायली बंधक मौजूद हैं। हमास प्रवक्ता उनके ‘वीडियो जारी’ करने की धमकी के साथ शेखी बघारता है कि हम इजरायल को जमीनी जंग में हराने की कुव्वत रखते हैं। इजरायल नहीं रुका, तो हम और हिंसक कार्रवाई के लिए मजबूर होंगे। उधर, तेल अवीव का दावा है कि हमले का नेतृत्व करने वाले हमास कमांडर को मार गिराया गया है।  
हमास ने जुमे के पवित्र दिन कुछ इजरायली बंधकों को मारने की धमकी दी थी। शायद यह ‘बैक डोर डिप्लोमेसी’ का नतीजा है कि इसे अमली-जामा नहीं पहनाया गया। हमास जानता है कि निरीह बंधकों की हत्या से वह इस्लामिक जगत में पनप रहा समर्थन खो बैठेगा। गाजा में बमबारी के खिलाफ अधिकांश अरब देशों में जुमे की नमाज के बाद लाखों लोग सड़कों पर उतर आए। सिर्फ अरब ही क्यों, दुनिया के कई हिस्सों में इस तरह के प्रदर्शन हुए। न्यूयॉर्क भी इनमें से एक है। अगर इजरायल का कोप कुछ दिन और बरसता रहा, तो गाजा वासियों के प्रति सहानुभूति बढ़ सकती है। इजरायल पर वैसे भी ‘सीजफायर’ का दबाव बढ़ रहा है।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने इजरायल की प्रतिशोधात्मक कार्रवाई पर यह कहकर चेताया है कि जंग में भी कुछ उसूल होते हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन भी अपने इस पुराने सहयोगी से ‘लॉ ऑफ वार’ के अनुपालन का अनुरोध कर चुके हैं। ये वही बाइडन साहब हैं, जिन्होंने हमले के तत्काल बाद पेंटागन को घातक साज-ओ-सामान इजरायल भेजने की इजाजत दी थी। हथियारों की पहली खेप वहां पहुंच भी चुकी है। तेल अवीव उसे संग्रहालय में तो रखेगा नहीं। उन हथियारों का इस्तेमाल किसके खिलाफ होगा? 
अमेरिकी कूटनीति का दोमुंहापन और संयुक्त राष्ट्र संघ का खोखलापन पिछले तीन दशकों में इस धरती पर तमाम कहर ढा चुका है। इराक, सीरिया और अफगानिस्तान की बदहाली इसका जीवंत स्मारक है। 
गाजा के लोगों की दुर्गति देखिए। बरसते गोलों के बीच हमास कहता है कि आप अपने घर में बने रहिए और इजरायल उन पर निकल जाने के लिए दबाव बनाता है। पिछले लगभग एक हफ्ते से जारी नाकाबंदी के चलते उनका पानी, बिजली और समूची रसद बंद है। अस्पताल घायलों और मरीजों से पटे पड़े हैं। वहां दवाओं और चिकित्सकों का टोटा है। यही नहीं, अब तक 23 एंबुलेंस और 50 से अधिक मेडिकल सेंटर्स इजरायली बमों अथवा मिसाइलों की चपेट में आ चुके हैं। संसार के इस सबसे सघन इलाके में रहने वाले 22 लाख लोगों को अकारण आजीवन कारावास का सजायाफ्ता नहीं कहा जाता है। 
इस हमले की टाइमिंग पर गौर फरमाइए। इससे पूर्व दक्षिणपंथ के दो विपरीत ध्रुव नेतन्याहू और हमास, तेजी से अपनी लोकप्रियता खो रहे थे। दोनों की रेटिंग में पचास फीसदी से अधिक की गिरावट दर्ज की गई थी। इजरायल के नेतन्याहू को ‘मिस्टर सिक्योरिटी’ कहा जाता है, पर वह नाकाम रहे। इस हमले ने उनकी जमींदोज होती छवि को और धक्का पहुंचाया है। गाजा पर कठोरतम कार्रवाई कर क्या वह अपनी दुर्गति बचा पाएंगे? 
जहां तक 7 अक्तूबर के हमले की बात है, क्या यह सिर्फ एक आतंकवादी संगठन या हिज्बुल्लाह जैसी कुछ और तंजीमों के गठजोड़ का नतीजा था? जिस तरह से इजरायल के सुरक्षा तंत्र को भेदा गया, उससे लगता है कि कई आला सैन्य दिमागों ने मिलकर इस षड्यंत्र को अंतिम रूप दिया होगा। इसके लिए जरूरी साज-ओ-सामान और मशीनरी कैसे जुटाई गई, यह भी शोध का विषय है। यकीनन, यह महज ‘नॉन स्टेट एक्टर्स’ का कारनामा नहीं है। इतने बडे़ हमले की गुपचुप तैयारी और इजरायल के अचूक सुरक्षा कवच की दरार कुछ दहशतगर्द अकेले नहीं खोज सकते। क्या इस जघन्य करतूत से जुड़ी ताकतों का मकसद पूरा हो गया? हमले के बाद से इजरायल से लगी लेबनान और सीरिया की सीमाएं जिस तरह से धधकने लगी हैं, उसने आशंकाओं के नए बीज रोप दिए हैं। 
तेल अवीव के रवैये पर दुनिया साफ तौर से दो टुकड़ों में बंटी नजर आती है। ईरान का कहना है कि अगर इजरायल को रोका नहीं गया, तो यह लड़ाई आगे तक फैल जाएगी। इस मुद्दे पर रूस, चीन, अमेरिका, ब्रिटेन जैसे ताकतवर मुल्कों के बीच विभेद साफ दिख रहा है। कोरी शाब्दिक बयानबाजी के बजाय क्यों न ये ताकतवर मुल्क इजरायल के भीतर और बाहर पसरे क्रंदन, कंपकंपाहट और विवशताओं पर मानवीय नजर डालें और स्थायी समाधान पर सिर खपाएं! 
अगली व्यथा-कथाएं रोकने का अकेला तरीका यही है। 

@shekharkahin
@shashishekhar.journalist

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें