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आधी आबादी के लिए जो जरूरी है

महिला सशक्तीकरण युगीन आवश्यकता है, पर यह आवश्यक प्रक्रिया तब तक अपेक्षित रफ्तार नहीं पकड़ेगी, जब तक विधान मंडलों में आधी आबादी की आनुपातिक मौजूदगी न हो। इन मंडलों को कानून बनाने का हक होता है। इस हक...

आधी आबादी के लिए जो जरूरी है
Shashi Shekharशशि शेखरSat, 11 Mar 2023 09:24 PM
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पिछले दिनों आईपीएल की तर्ज पर होने वाले डब्ल्यूपीएल (वीमेन्स प्रीमियर लीग) की बोली के दौरान उम्मीदों की नई कोंपलें फूटती दिखीं। इस दौरान पेशेवर क्रिकेट खेलने वाली 20 लड़कियां करोड़पति क्लब में शामिल हो गईं। इनमें स्मृति मंधाना को सबसे ज्यादा 3.4 करोड़ की रकम पाने का हक हासिल हुआ। आईपीएल खेलने वाले तमाम नौजवानों को इतनी रकम नहीं मिल पाती। पड़ोसी पाकिस्तान पीएसएल के लिए कप्तान बाबर आजम तक को इतनी राशि नहीं दे पाता। यकीनन, शुरुआती संकेत शुभ हैं। 
महिलाओं की ऊंची छलांग के लिए अन्य क्षेत्रों में भी तमाम अवसर उपज रहे हैं। वे खुद इसके लिए कितनी लालायित हैं? इस सवाल का जवाब इसी महीने प्रकाशित हुए एक शोध से मिलता है। इसके अनुसार, दस में से आठ शहरी महिलाएं किसी न किसी तरह इंटरनेट का उपयोग करती हैं। 21वीं शती में बिना इंटरनेट आप आगे नहीं बढ़ सकते। ग्रामीण क्षेत्रों में हालात अभी बहुत अच्छे नहीं हैं, पर एक तरक्कीपसंद मुल्क के नाते हमें गिलास को आधा खाली नहीं, आधा भरा देखने की आदत डाल लेनी चाहिए। 
हमारे देश में आधी आबादी को उसका हक राजनीति में बराबरी की हिस्सेदारी के बिना नहीं मिल सकता। नगालैंड में पिछले दिनों हुआ चुनाव इस मामले में मिसाल साबित होने जा रहा है। वहां पहली बार दो महिलाएं विधानसभा के लिए चुनी गई हैं। सौभाग्य के इस सिलसिले को शुरू करने वाली नवनिर्वाचित विधायकों के नाम हैं- हेकानी जखालू और एस. क्रुसे। कबीलाई परंपराओं को सहेजकर रखने वाले इस सूबे में अब तक सिर्फ बीस महिलाओं ने चुनाव लड़ा था। हालांकि, 1977 में निर्वाचित हुई छठी लोकसभा के लिए रानो एम शाइजा विजयी हुई थीं। 
तब से अब तक दोयांग नदी में अरबों गैलन जल बह गया, पर राजनीति में महिलाओं का कारवां आशा के अनुरूप आगे नहीं बढ़ सका है। क्यों? नगालैंड के शक्तिशाली कबीले पितृसत्तात्मक समाज को दृढ़ता से पालते-पोसते आए हैं, पर हालात पिछले साल से बदलने शुरू हुए, जब भाजपा ने पहली बार नगालैंड से एक महिला एस फांगनोन को राज्यसभा में नुमाइंदगी के लिए भेजा। अब क्रुसे और जखालू इस सिलसिले की अगली कड़ी साबित हो रही हैं। 
जो नहीं जानते, उन्हें बता दूं कि पड़ोसी सूबे मेघालय में मातृसत्तात्मक व्यवस्था है। यहां खासी और गारो जैसे बडे़ जनजातीय समूहों में वंश परंपरा मां के नाम से आगे बढ़ती है और परंपरानुसार परिवार की सबसे छोटी लड़की को संपत्ति का वारिस बनने का हक हासिल होता है। यही वजह है कि मेघालय में बरसों से महिलाएं राजनीति में खासी हैसियत रखती आई हैं, लेकिन एक विरोधाभास इन चुनावों में देखने को मिला। मेघालय से मात्र तीन महिला विधायक चुनी जा सकीं, जबकि त्रिपुरा में नौ महिलाओं को यह सौभाग्य हासिल हुआ। 
पिछड़े माने जाने वाले हिंदी और पूर्वी भारत के प्रदेशों की राजनीति में महिलाएं इतनी पीछे नहीं हैं। मौजूदा लोकसभा में कुल जमा 82 महिलाएं आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करती हैं। इनमें से उत्तर प्रदेश और बंगाल से 22 महिलाएं सर्वोच्च पंचायत में चुनकर आई हैं। पिछली बार कांग्रेस ने सर्वाधिक 54 और भाजपा ने भी लगभग इतनी ही, यानी 53 महिलाओं को टिकट दिया था। उम्मीद है, अगली लोकसभा आबादी के अनुपात के इस अंतर को और कम करने वाली साबित होगी। 
मौजूदा हालात हैरत पैदा करते हैं, क्योंकि आजादी के साथ राजनीति में महिलाओं की दमदार दस्तक शुरू हो गई थी। सुचेता कृपलानी देश के सबसे बडे़ सूबे उत्तर प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री चुनी गईं और इंदिरा गांधी 1966 में देश की प्रधानमंत्री बन चुकी थीं। बाद में मायावती, ममता बनर्जी, राबड़ी देवी, जयललिता, वसुंधरा राजे, शीला दीक्षित आदि ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया। इस समय भारत की प्रथम नागरिक महिला हैं। इससे पूर्व प्रतिभा पाटिल को प्रथम महिला राष्ट्रपति बनने का गौरव हासिल हो चुका है। 
यहां एक सवाल सिर उठाता है। संविधान में लैंगिक समानता के अधिकार और सियासत में आधी आबादी के दखल की प्रारंभिक सामाजिक स्वीकृति के बावजूद यह सिलसिला आगे क्यों नहीं बढ़ सका? इसकी एक वजह यह भी है कि कुछ अपवादों को छोड़ दें, तो सियासत में ऊंचा मुकाम हासिल करने वाली तमाम महिलाएं किसी विशेष वंश परंपरा से ताल्लुक रखती हैं। 
बात निकली है, तो बताने में हर्ज नहीं कि आर्थिक रूप से पिछडे़ बिहार में महिला सशक्तीकरण पर खासा काम हुआ है। नीतीश कुमार ने बिहार पंचायती राज अधिनियम 2006 के जरिये महिलाओं को स्थानीय निकाय में पहले-पहल 50 प्रतिशत आरक्षण दिया। इससे क्रांतिकारी बदलाव का सूत्रपात हुआ। इसके तीन साल बाद मनमोहन सरकार ने पूरे देश में इसे लागू किया, लेकिन अब तक सिर्फ 20 राज्यों ने इसे अपनाया है। दुर्योग से नगालैंड समेत पूर्वोत्तर के कुछ राज्य अब भी इससे संकोच बरत रहे हैं। 
आज देश भर में पंचायती राज संस्थाओं में निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों की संख्या 14,53,973 है। इसका सार्थक असर सामाजिक सोच पर भी पड़ा है। नतीजतन, शिक्षा, खेल, सेना आदि क्षेत्रों में कन्याओं की भागीदारी बढ़ती जा रही है। बिहार का एक और उदाहरण देता हूं। नीतीश कुमार ने सत्ता में आते ही पढ़ने वाली लड़कियों को मुफ्त साइकिल प्रदान कर उन्हें पर खोलने के अवसर मुहैया कराए। आज बिहार की सरकारी नौकरियों में महिलाओं की दमदार मौजूदगी के तौर पर इसका सार्थक प्रभाव साफ दिखता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बतौर मुख्यमंत्री गुजरात में महिला उत्थान के तमाम फैसले किए थे। वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री की कुरसी संभालते ही उन्होंने समूचे देश में ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान की शुरुआत की। साथ ही भाजपा शासित राज्यों को आधी आबादी के लिए तमाम अभियान शुरू करने को पे्ररित किया गया। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ ने ‘मिशन शक्ति’ शुरू किया। इस अभियान की बागडोर भी उन्होंने संभाली। इसी का परिणाम है कि आज उत्तर प्रदेश को कोई ‘रेप प्रदेश’ नहीं कहता। कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर भी योगी ने खासा काम किया। अपराध महिलाओं की राह का सबसे बड़ा रोड़ा होता है। इसके साथ उत्तराखंड और झारखंड में जमीन की रजिस्ट्री में खास छूट मुहैया कर महिलाओं को सक्षम बनाने के अभियान शुरू किए गए। मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान ‘लाडली लक्ष्मी’ पहले से चला रहे थे, अब ‘लाडली बहन’ को भी लागू किया जा रहा है। अन्य राज्यों में भी आधी आबादी के उत्थान के लिए कई कार्यक्रम चल रहे हैं। यही नहीं, केंद्र ने नौसेना, सेना और सुरक्षा बलों के अब तक वर्जित माने जाने वाले क्षेत्रों में युवतियों के लिए नए दरवाजे खोल दिए हैं। वह दिन दूर नहीं, जब हम नभ, जल, थल की सुरक्षा में नवयुवतियों की सार्थक भागीदारी पाएंगे।
यकीनन, महिला सशक्तीकरण युगीन आवश्यकता है, पर यह आवश्यक प्रक्रिया तब तक अपेक्षित रफ्तार नहीं पकड़ेगी, जब तक विधान मंडलों में आधी आबादी की आनुपातिक मौजूदगी न हो। इन मंडलों को कानून बनाने का हक होता है। इस हक में आधी आबादी की हिस्सेदारी से नई और व्यावहारिक सोच की राह प्रशस्त होगी। इसके बिना महिलाओं की बराबरी की बात अर्द्धसत्य के सिवाय कुछ भी नहीं।  

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