इस साल के कुछ संकेत
आज साल का पहला दिन है और मैं जान-बूझकर अप्रिय मुद्दों पर चर्चा से बच रहा हूं। जब हम सकारात्मक सोच के साथ साल की शुरुआत करेंगे, तभी तो इस साल को सार्थक बनाने में अपना योगदान कर सकेंगे...
नए साल के पहले दिन कृपया मेरी शुभकामनाएं स्वीकार करें। उम्मीद है, यह साल कोरोना और रूस-यूक्रेन युद्ध के साये में उपजे अपशकुनों को सदा-सर्वदा के लिए दफ्न करने वाला साबित होगा।
ईस्वी सन 2023 भारत के लिए भी खासा अहम साबित होने जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, अगली 14 अप्रैल को भारत चीन को पीछे छोड़ सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश बन जाएगा। उस दिन भारत की आबादी एक सौ बयालिस करोड़ सत्तावन लाख पचहत्तर हजार आठ सौ पचास (1,42,57,75,850) तक पहुंच चुकी होगी। आप जानते होंगे कि इस दिन पंजाब में बैसाखी का त्योहार मनाया जाता है। देश के अन्य भागों में भी यह दिवस उत्सव और उल्लास का होता है, बस इसके नाम अलग होते हैं। इस कृषि प्रधान देश की साझी संस्कृति और सभ्यता के समान सूत्रों में इस तारीख का सदियों से खास मुकाम रहा है।
सवाल उठता है, आबादी के इस अभूतपूर्व आंकडे़ को हम उपलब्धि मानें या अवरोध?
विशाल जनसंख्या कुछ तकलीफ जरूर देती है, पर यही हमारी पूंजी भी है। हमारे पास आज संसार में सर्वाधिक स्नातक हैं। इतनी युवा और दक्ष आबादी दुनिया के किसी देश के पास नहीं है। लगभग 37 करोड़ की यह युवा-शक्ति देश के सकल घरेलू उत्पाद में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। यही वजह है कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने चीन में बरपे कोरोना कहर और रूस-यूक्रेन जंग के कारण चालू वित्त-वर्ष के लिए भारतीय विकास दर को 7.4 से घटाकर 6.9 फीसदी कर दिया है, पर हमारा शुमार संसार की सबसे तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्थाओं में होता रहेगा।
विश्वव्यापी मंदी की आहटों के बीच यह अच्छी खबर है।
दक्ष युवा आबादी की एक और खूबी होती है। नौजवान तेजी से नई तकनीक और कार्य-संस्कृति को आत्मसात कर लेते हैं। इससे उत्पादकता बढ़ती है और लागत मूल्य घटता है। दुनिया भर के निवेशक इसीलिए भारत की ओर आकर्षित हो रहे हैं। नतीजतन, हमारा विदेशी मुद्रा भंडार लगभग 564 अरब डॉलर तक पहुंच चुका है। साथ ही, भारतीय शेयर बाजार बीएसई ने अकल्पनीय 63,583 अंक का कीर्तिमान गढ़ने में सफलता हासिल की है। इससे साफ है, परदेसियों के साथ बड़ी संख्या में देशी निवेशक भी बड़ी तादाद में शेयर बाजार से जुड़ रहे हैं। यह एक प्रगतिकामी मुल्क की निशानी है।
प्रगतिकामना का एक और उदाहरण। सिस्को के मुताबिक, साल 2023 में भारतीय ‘इंटरनेट यूजर्स’ की संख्या 90 करोड़ से ऊपर पहुंच जाएगी। यानी कुल आबादी का 64 फीसदी हिस्सा इस विकासशील तकनीक का लाभ उठा रहा होगा। तय है, कोविड के हमले के बाद से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘डिजिटल इंडिया’ प्रयासों को मुकम्मल कामयाबी मिली है। 5-जी का विस्तार इस गति को तेजी प्रदान करने वाला साबित होगा। दिसंबर 2022 में भारत के 50 शहरों तक यह सेवा पहुंच चुकी है। इस साल इन्हीं दिनों में इसके 200 शहरों तक पहुंचने की उम्मीद है।
हम हिन्दुस्तानियों की खासियत है कि मन-मुताबिक तरक्की के बावजूद अपनी जमीन से हमारा मोह नहीं छूटता। इसीलिए स्वदेशी तकनीक और उत्पादों पर सरकार का जोर नए आकार ले रहा है। भारत में पिछले साल करीब 20 नए यूनीकॉर्न जुड़े। इसके साथ ही यूनीकॉर्न्स की संख्या बढ़कर 108 तक जा पहुंची है। हालांकि, अमेरिका और चीन के मुकाबले हम बहुत पीछे हैं। अमेरिका में 865 और चीन में 224 यूनीकॉर्न्स हैं। दूसरों की थाली में लबालब भरे व्यंजनों को देखकर हमें यह जरूर ध्यान रखना चाहिए कि पिछले कुछ सालों में हमने कितनी तेजी से अपनी थाली को भरने की सार्थक कोशिश की है। उम्मीद है, यह साल भारतीय यूनीकॉर्न और उभरते हुए ‘बिलियनेयर्स’ या ‘मिलियनेयर्स’ के लिए नए दरवाजे खोलता नजर आएगा। यहां एक सवाल सिर उठाता है, क्या ये लोग देश में पसर रही असमानता और बेरोजगारी में कमी लाने की कोशिश करेंगे? अब तक के आंकड़े उम्मीद जगाने वाले नहीं साबित हुए हैं। सरकार की प्रोत्साहन नीति का लाभ उठाकर ऊंचाई पर पहुंचने वालों को इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।
भारत ने इस वर्ष तक 125 गीगावाट सौर ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य भी रखा है। ऋग्वैदिक काल की ऋचाएं गवाह हैं कि हम हिन्दुस्तानी अपनी सभ्यता के उषाकाल से पर्यावरण का सम्मान करते आए हैं। इधर के सालों में इसमें आत्मघाती गिरावट देखी गई थी। उम्मीद है, हम पर्यावरण को नए साल में सर्वाधिक महत्व देंगे। प्रदूषण से लड़ना हमारी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। समाज और सियासत को मिलकर इसके लिए नए समीकरण गढ़ने होंगे।
यह आसान काम नहीं है। इधर कुछ वर्षों में हमारे पूर्वाग्रह दुराग्रहों में बदल गए हैं। इनके साथ कोई मुल्क आगे नहीं बढ़ सकता। क्या 2023 कुछ राहत की खबर लेकर आएगा? देश की सीमाओं की सुरक्षा के प्रति सियासी सूरमाओं को भी गंभीर नजरिया अपनाने की जरूरत है। ऐसा नहीं हुआ, तो हम लोगों की तरह आने वाली पीढ़ियां बुझे मन से कहा करेंगी कि हम हिन्दुस्तानियों को इतिहास से सबक सीखने का शऊर नहीं है।
यहां हमें दुनिया की बदलती परिस्थितियों पर भी एक नजर डालनी होगी। चीन में 2023 वैसा ही कहर भरा साबित होने जा रहा है, जैसा कि 2021 हमारे लिए हुआ था। इससे चीनी अर्थव्यवस्था पर संकट सघन होगा। इसका असर हम पर पडे़गा, लेकिन हम इस आपदा को भी अवसर में तब्दील कर सकते हैं। पिछले साल जब भारत में ‘सेमी-कंडक्टर्स’ बनाने वाली फैक्टरियों की बुनियाद रखी गई, तो शी जिनपिंग की हरकतों से नाराज पश्चिम ने इसे हाथों-हाथ लिया था। उम्मीद है, इन परिस्थितियों में हम अपनी अर्थव्यवस्था को आयात के मुकाबले अधिक से अधिक निर्यातपरक बनाने पर जोर देंगे।
यही नहीं, हमें अपने कृषि क्षेत्र पर भी गौर करना होगा। आज तक हम दालों और खाद्य तेलों का आयात करते आए हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध बंद नहीं हुआ, तो समूची दुनिया में अनाज व खाद्य तेलों का संकट और गहराने वाला है। संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों ने चेताया है कि कृषि उत्पादन में गिरावट के कारण अकेले 2023 में पश्चिम व मध्य अफ्रीका में भूख से बिलबिलाते लोगों की संख्या चार करोड़ अस्सी लाख तक पहुंच सकती है। इस खाद्यान्न संकट को मिटाने में हमारी बड़ी भूमिका हो सकती है। इसी तरह, इस साल दुनिया के अन्य हिस्सों में विज्ञान और चिकित्सा के क्षेत्र में कुछ नई उपलब्धियां गढ़ी जानी हैं। भारतीय नौजवानों को इनमें अपनी हिस्सेदारी बढ़ानी होगी।
आज साल का पहला दिन है और मैं जान-बूझकर अप्रिय मुद्दों पर चर्चा से बच रहा हूं। जब हम सकारात्मक सोच के साथ साल की शुरुआत करेंगे, तभी तो इस साल को सार्थक बनाने में अपना योगदान कर सकेंगे। एक बार फिर से मेरी शुभकामनाएं स्वीकार करें।
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