Hindi Newsओपिनियन ब्लॉगHindustan Editorial Column 08 October 2025

हरित पटाखों की पैरवी

संक्षेप: पिछले कई वर्षों से दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी का दाग ढोने वाली दिल्ली और इसके बाशिंदों के लिए यह वाकई चिंता की बात है कि खुद दिल्ली सरकार ने ग्रीन पटाखों की इजाजत हासिल करने के लिए सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला किया है…

Tue, 7 Oct 2025 10:46 PMHindustan लाइव हिन्दुस्तान
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हरित पटाखों की पैरवी

पिछले कई वर्षों से दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी का दाग ढोने वाली दिल्ली और इसके बाशिंदों के लिए यह वाकई चिंता की बात है कि खुद दिल्ली सरकार ने ग्रीन पटाखों की इजाजत हासिल करने के लिए सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला किया है। सूबे की मुख्यमंत्री ने पर्यावरण और पर्व, दोनों को जरूरी करार देते हुए सोमवार को एलान किया कि उनकी सरकार जन-भावनाओं का ख्याल करते हुए इस अनुमति के लिए प्रयास करेगी, ताकि लोग पूरे उल्लास से दीपावली मना सकें। दीपावली के आस-पास दिल्ली में वायु गुणवत्ता का क्या हाल रहता है, इसको बताने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। इसके लिए अक्सर पड़ोसी प्रदेशों के किसानों को दोषी ठहराया जाता है कि उनके पराली जलाने की वजह से दिल्ली वालों की सांसें फूल रही हैं। अभी बहुत दिन नहीं बीते, जब इससे संबंधित मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार को फटकार लगाई थी कि वह नियमों के खिलाफ जाकर पराली जलाने वाले किसानों को गिरफ्तार नहीं कर रही। अदालत ने पंजाब सरकार के नुमाइंदे से पूछा था, अगर पर्यावरण संरक्षण का आपका इरादा सच्चा है, तो कार्रवाई से पीछे क्यों हट रहे हैं?

निस्संदेह, सर्दियों की शुरुआत में दिल्ली में गहराते प्रदूषण का एक बड़ा कारक पंजाब, हरियाणा, राजस्थान में किसानों द्वारा अपने खेतों में पराली जलाने को माना जाता है। इस समस्या के निदान के लिए वहां की सरकारें अपने किसानों को मशीनें और सब्सिडी तक दे रही हैं, ताकि दिल्ली का दर्द कुछ कम हो सके, मगर यहां दिल्ली सरकार ही पटाखे की पैरवी कर रही है! ग्रीन या हरित पटाखों को पर्यावरण के अनुकूल बताया जाता है, मगर ये पूर्णतया प्रदूषण मुक्त नहीं होते। ज्यादातर ग्रीन पटाखों में बोरियम नाइट्रेट नहीं होता, जो पारंपरिक पटाखों का सबसे खतरनाक घटक होता है। मगर तब भी विशेषज्ञों का दावा है कि ये सामान्य पटाखों के मुकाबले 30 प्रतिशत की ही राहत देते हैं। इसी तरह, आम पटाखे जहां 160 से 200 डेसिबल तक आवाज पैदा करते हैं, जबकि हरित पटाखों की ध्वनि-सीमा 100 से 130 डेसिबल तक सीमित होती है। जाहिर है, ग्रीन पटाखे भी प्रदूषण फैलाते हैं। ऐसे में, दिल्ली सरकार अपनी मांग को अदालत में कैसे उचित ठहराएगी?

निस्संदेह, हमारे जीवन में पर्व-त्योहारों का काफी महत्व है और इनके उल्लास में कमी नहीं आनी चाहिए, मगर पटाखों से उपजे प्रदूषण का असर जब एक-एक नागरिक की तकलीफें बढ़ाने वाला हो, तब एक जिम्मेदार शहरी के नाते क्या हमारा यह दायित्व नहीं हो जाता कि उल्लास जाहिर करने के हम दूसरे अनुकूल तरीके अपनाएं? तमाम कोशिशों के बावजूद राजधानी में सामान्य पटाखों की बिक्री पर ही पूर्ण शिकंजा नहीं कसा जा सका है, तब दिल्ली सरकार का यह रुख इसकी चोर-बाजारी करने वालों का हौसला ही बढ़ाएगा। ग्रीन पटाखे वैसे भी आम पटाखों के मुकाबले महंगे होते हैं। इसलिए बेहतर तो यही होगा कि सरकार किसी किस्म के पटाखे के उपयोग को हतोत्साहित करने के लिए लोगों को प्रेरित करे। हमारे त्योहारों को बाजार ने अधिक आडंबरयुक्त बनाया है और इसके कारण उनके मूल संदेश को क्षति पहुंची है। दीपावली हर अंधियारे कोने को रोशन करने का त्योहार है, अंधाधुंध आतिशबाजी के शोर-शराबे से बच्चों-बूढ़ों को बीमार करने का अवसर नहीं। इसलिए हमारी सरकारों को जन-भावनाओं का ख्याल करते हुए कोई अविवेकी कदम उठाने से बचना चाहिए।