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सत्तानायक के 75 साल

सत्तानायक के 75 साल

संक्षेप: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज तक समाज की निचली सीढ़ी पर खड़े लोगों के लिए नई योजनाएं बनाने और उनके सरल क्रियान्वयन के तरीकों की खोज में जी-जान एक करते हैं। यही वजह उनकी लोकप्रियता को सदाबहार बनाए रखती है…

Sat, 13 Sep 2025 08:26 PMShashi Shekhar लाइव हिन्दुस्तान
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले हफ्ते अपने जीवन के 75 वर्ष पूरे करने जा रहे हैं। यह एक ऐसी शख्सियत की हीरक जयंती होगी, जिसने शुरू के साल गुमनामी में, बीच का समय संगठन में और पिछले 24 वर्ष गांधी नगर से दिल्ली तक के सत्ता-शिखर पर गुजारे हैं।

सिर्फ कुछ हफ्ते पहले तक 17 सितंबर को उनका जन्मदिन नहीं, बल्कि ‘सियासी सस्पेंस थ्रिलर’ का निर्णायक मुकाम माना जा रहा था। सवाल सुलग रहा था, क्या नरेंद्र मोदी इस्तीफा देंगे? शंकार्थियों को इसका उत्तर पांच हफ्ते पहले ही मिल गया। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने 8 अगस्त को नई दिल्ली में स्थिति साफ करते हुए कहा- ‘मैंने कभी नहीं कहा कि मैं रिटायर हो जाऊंगा, या किसी को रिटायर हो जाना चाहिए।’ प्रधानमंत्री ने भी 11 सितंबर को भागवत की 75वीं वर्षगांठ पर अखबारों में लेख लिख उन्हें भावभीनी बधाई दी।

यह अकारण पैदा की गई पहेली का तार्किक उपसंहार था।

राजनीति में रिटायरमेंट की आयु सीमा देश-दुनिया की किसी पार्टी में लागू नहीं है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के सुप्रीमो शरद पवार 84 वर्ष और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे 83 साल के हैं। केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन 80 वर्ष की आयु पार कर चुके हैं। यही नहीं, संसार के सर्वाधिक शक्तिशाली राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जीवन का 80वां बसंत जी रहे हैं। अन्य महाबली राष्ट्राध्यक्ष शी जिनपिंग और व्लादिमीर पुतिन भी उम्र की सात दहाइयां पार कर चुके हैं।

यहां आप पूछ सकते हैं कि फिर लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और शांता कुमार को भला किस बिना पर आकारहीन मार्गदर्शक मंडल का सदस्य बना दिया गया था कि इन्होंने 75 साल पूरे कर लिए हैं। भाजपा के ये वरिष्ठ नेता नरेंद्र मोदी की तरह न तो शारीरिक तौर पर चुस्त-दुरुस्त थे और तमाम पुरुषार्थ के बावजूद कभी उतने लोकप्रिय भी नहीं रहे, जितने मोदी। याद रखें, राजनीति से विदाई के लिए कभी-कभी सम्मानजनक जुमले भी गढ़े जाते हैं।

सियासत का यह दांव पुराना है।

मोदी जानते हैं कि सत्ता तभी चिर-स्थायी हो सकती है, जब उसका समाज से सीधा जुड़ाव हो। यही वजह है कि उन्होंने हुकूमत को सदैव सामाजिक आंदोलन बनाने की कोशिश की। शासन सम्हालते ही उन्होंने स्वच्छ भारत, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, अनुच्छेद-370 और तीन तलाक जैसे तमाम अहम विषयों पर न केवल फैसले लिए, बल्कि जन-जागरण की कोशिश भी की। वे सिर्फ लोक-लुभावन काम नहीं करते। भरोसा न हो, तो दूसरे कार्यकाल के दौरान दिया गया उनका वह बयान याद कर लीजिए। उन्होंने कहा था, देश के मध्यवर्ग को राष्ट्रीय हित के लिए कुछ दिन दर्द तो सहना होगा।

मोदी ने पिछले 11 वर्षों में देश के 80 करोड़ लोगों को नि:शुल्क अनाज मुहैया कराने, इन्फ्रास्ट्रक्चर के चौतरफा विकास और सरकारी सुस्ती दूर करने के लिए नौकरशाही में ताजगी लाने के तमाम उपाय किए। यह उनका पुराना शगल है। एक वाकया बताता हूं। गांधी नगर में एक बार मोदी ने वरिष्ठ नौकरशाहों से पूछा कि एक 70 वर्षीय ग्रामीण महिला यदि आपसे पूछे कि मैं सरकार की किन योजनाओं के लाभ उठा सकती हूं? उन्हें पाने के लिए मुझे क्या करना होगा? कृपया उन योजनाओं के नाम और उनका लाभ पाने के लिए कितने फॉर्म भरने होंगे, एक कागज पर लिख डालें। अधिकांश अफसर इस अचानक आ पड़े इम्तिहान में संतोषजनक उत्तर नहीं दे सके थे।

प्रधानमंत्री आज तक समाज की निचली सीढ़ी पर खड़े लोगों के लिए नई योजनाएं बनाने और उनके सरल क्रियान्वयन के तरीकों की खोज में जी-जान एक करते हैं। यही वजह उनकी लोकप्रियता को सदाबहार बनाए रखती है।

इसके लिए मोदी ने अपनी मान्यताओं और आग्रहों से कभी समझौता नहीं किया। मसलन, अल्पसंख्यकों के एक कार्यक्रम में उन्हें मजहबी टोपी से नवाजने की कोशिश की गई। उन्होंने विनम्रता से इनकार कर दिया। प्रधानमंत्री आवास पर होने वाली इफ्तार पार्टियां भी रोक दी गईं। उनके विरोधियों ने आरोप लगाया कि वह बहुसंख्यकवादी हैं। क्या वाकई ऐसा है?

याद कीजिए, मार्च 2018 में त्रिपुरा समेत पूर्वोत्तर के तीन विधानसभा चुनावों में जीत और बेहतर प्रदर्शन के बाद भारतीय जनता पार्टी के मुख्यालय में आयोजित जलसे में प्रधानमंत्री अपना वक्तव्य दे रहे थे। इसी बीच अजान की आवाज आई, उन्होंने अगला शब्द मुंह में ही रोक लिया। वह तब तक चुप रहे, जब तक अजान खत्म नहीं हो गई।

मोदी अपने धर्म की सार्वजनिक स्वीकारोक्ति के साथ दूसरे मजहब के सम्मान का भाव अक्सर प्रदर्शित करते हैं। यहां एक अन्य तथ्य पर भी नजर डालनी होगी। सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ सभी धर्मों, वर्गों और जातीय समूहों को मिला है, सिर्फ बहुसंख्यकों को नहीं।

इसके बावजूद नई दिल्ली में उनका पूरा एक सत्ता-दशक इसे सिद्ध करने में बीत गया।

इसी वर्ष उनके सामने पाकिस्तान से नई चुनौती आई। मोदी की अगुवाई में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने तीन दिन की झड़प में न केवल पड़ोसी का मानमर्दन किया, बल्कि एक ‘न्यू नॉर्मल’ भी स्थापित किया। अब आगे कोई आतंकी हमला होगा, तो उसे देश पर हमले की तरह देखा जाएगा। उन्होंने अमेरिका से उपजी एक और चुनौती से जूझने में खासी दृढ़ता का परिचय दिया है। वह इसके जोखिम जानते हैं। गई 7 अगस्त को किसानों के एक कार्यक्रम में उन्होंने इसके सार्वजनिक इजहार से संकोच नहीं किया, ‘भारत अपने किसानों के, पशुपालकों के और मछुआरे भाई-बहनों के हितों के साथ कभी भी समझौता नहीं करेगा और मैं जानता हूं कि व्यक्तिगत रूप से मुझे बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी, लेकिन मैं इसके लिए तैयार हूं।’

ऊपरी तौर पर यह अमेरिका द्वारा जनित ‘टैरिफ टेरर’ लगता है, लेकिन मामला जटिल है। 1945 से जारी मौजूदा विश्व-व्यवस्था अपने तमाम उतार-चढ़ावों के बाद अब निर्णायक मोड़ पर है। प्रधानमंत्री इस आकार लेती नई विश्व-व्यवस्था में भारत की सशक्त उपस्थिति दर्ज कराना चाहते हैं। पिछले हफ्ते बीजिंग में उनकी शी जिनपिंग और व्लादिमीर पुतिन से हुई मुलाकातें इसे जाहिर करती हैं। इसका असर भी दिखने लगा है। कल तक तोहमतें थोपने वाले ट्रंप दोस्ती की उम्मीद जताने लगे हैं। मोदी ने चतुराई से अमेरिकी राष्ट्रपति के भड़काऊ बयानों की उपेक्षा की और मैत्री अपेक्षाओं पर गर्मजोशी जताई। मोदी नरमी और गरमी के बीच संतुलन बनाना जानते हैं। संकेत स्पष्ट हैं कि अमेरिका से आज नहीं तो कल समझौता हो जाएगा, पर दुनिया दूसरे शीतयुद्ध की ओर बढ़ रही है। ऐसे में, हमें भी गुटनिरपेक्षता की नीति को नया चोला पहनाना होगा।

काम कठिन है, लेकिन नरेंद्र मोदी के लिए आसानी तो कभी नहीं रही। उनकी सत्ता ही आपात स्थिति की उपज थी। 26 जनवरी, 2001 को गुजरात के भुज में भयंकर भूकंप आया था। केशुभाई पटेल और उनकी सरकार उस आघात से लड़खड़ा गई थी। हालात बेकाबूू होते देख अटल और आडवाणी की जोड़ी ने संगठन का काम देख रहे नरेंद्र मोदी को मुख्यमंत्री बनाया था। कैसा काम हुआ? इसे जानने के लिए एक बार आपको भुज और महाराष्ट्र के लातूर में जाना होगा। लातूर में इससे आठ साल पहले भूकंप आया था, लेकिन दोनों स्थानों के इन्फ्रास्ट्रक्चर में जमीन-आसमान का अंतर है। यह फर्क उस शख्स ने गढ़ा, जो इससे पहले कभी सत्ता में नहीं रहा था।

यही फर्क नरेंद्र मोदी को औरों से अलग करता है। आने वाले जन्मदिन के लिए उन्हें हार्दिक शुभकामनाएं!

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