फोटो गैलरी

Hindi News ओपिनियन संपादकीयकब संभलेगी रेल

कब संभलेगी रेल

एक और ट्रेन हादसा हुआ। तब, जबकि अभी कुहासे की शुरुआत नहीं हुई है। इसलिए यह तो तय है कि कारण दृश्यता नहीं थी कि अचानक कुछ सामने आया हो, ब्रेक लगे हों और ट्रेन पटरी से उतर गई। सच तो यह है कि भारतीय रेल...

कब संभलेगी रेल
हिन्दुस्तानFri, 24 Nov 2017 08:00 PM
ऐप पर पढ़ें

एक और ट्रेन हादसा हुआ। तब, जबकि अभी कुहासे की शुरुआत नहीं हुई है। इसलिए यह तो तय है कि कारण दृश्यता नहीं थी कि अचानक कुछ सामने आया हो, ब्रेक लगे हों और ट्रेन पटरी से उतर गई। सच तो यह है कि भारतीय रेल काफी दिनों से पटरी से उतरी हुई है और इसे वापस पटरी पर लाने के न तो प्रयास, न ही आसार दिखते हैं। पटना जा रही वास्कोडिगामा एक्सप्रेस किन हालात में पटरी से उतरी, यह तो जांच का मुद्दा है, लेकिन किसी भी ट्रेन का इस तरह बेपटरी होना चिंता बढ़ाता है। यह इसलिए भी चिंता का विषय है कि नवंबर से फरवरी तक का समय यूं भी मौसम के लिहाज से भारतीय रेल और यात्रियों पर भारी गुजरता रहा है। 

अगस्त में जब मुजफ्फरनगर के खतौली के पास पुरी-हरिद्वार-कलिंग एक्सपे्रस के 14 डिब्बे पटरी से उतरे और 23 लोगों की जान गई थी, तब हाय-तौबा मचने पर रेलवे ने दावा किया था कि बीते तीन साल में रेल दुर्घटनाएं कम हुई हैं। इसे नई सरकार में लिए गए सुरक्षा इंतजामों का नतीजा माना गया था। दरअसल, रेल हादसे हों या किसी और तरह के हादसे, हमें आंकड़ों में फेल-पास के गणित से बाहर आना होगा। मान लेते हैं कि रेल हादसों में पहले की अपेक्षा कमी आई और आधुनिक होती भारतीय रेल ने अपनी कमियों पर किसी हद तक काबू भी पाया है, लेकिन यह भी सच है कि बीते चंद वर्षों में जैसी रेल दुर्घटनाएं सामने आई हैं, वे कमियों की बनिस्बत लापरवाही का बयान ज्यादा हैं। तकनीकी आंकडे़बाजी में बडे़ हादसे शायद कम हुए हों, लेकिन पटरी टूटने, पटरी चटकने, कोहरे के कारण ट्रेनों के जहां-तहां अटकने, अकारण घंटों लेट होने के साथ-साथ बेपटरी होने की जैसी-जैसी घटनाएं सामने आई हैं, उसने बुलेट ट्रेन की रेस में कूद चुके विश्व के इस चौथे सबसे बडे़ रेल नेटवर्क की संरक्षा, सुरक्षा और समयबद्धता पर सवाल तो उठाए ही हैं। ऐसी घटनाएं भी हैं, जब रात के अंधेरे में टूटी हुई पटरी से कई ट्रेनें गुजर गईं और इसकी जानकारी भी रेलवे को बाद में स्थानीय लोगों से मिली। बावजूद इसके कि रेलवे ने स्थानीय लोगों से संवाद का कोई औपचारिक तंत्र विकसित नहीं किया है। 

बीते दिनों रेलों की रफ्तार बढ़ाने के खूब दावे हुए, कुछ ट्रेनों के ठहराव कम करके तकनीकी रूप से यह कर भी दिखाया गया, लेकिन सच है कि ठोस कुछ नहीं हुआ। लोग न सिर्फ ट्रेनों की गति से परेशान हैं, ट्रेनों-रेलवे स्टेशनों पर मिलने वाली सुविधाओं-खानपान की बदहाली से भी त्रस्त हैं। सोशल मीडिया की सक्रियता भी उन्हें संतोषजनक जवाब नहीं दिला पा रही। समय सारिणी की जानकारी तो ठीक से मिल नहीं पाती। दरअसल, बातें बहुत हुईं, लेकिन रेल और रेल यात्री की संरक्षा-सुरक्षा-सुविधा पर एकीकृत, दूरगामी और आश्वस्त करने वाला नजरिया अब तक सामने नहीं आया। यह सब इसलिए नहीं हो पाया कि सख्त संदेश देने वाली कोई नजीर सामने नहीं आई। न तो दुर्घटनाओं पर, न भोजन पैकेट में छिपकली या कॉक्रोच निकलने पर और न ही बिना किसी स्पष्ट कारण के ट्रेनों के घंटों लेट होने पर। यह सब करने के पहले शायद रेलवे को अपनी ढांचागत कमियों, मानव संसाधनों के संकट से निपटना होगा। एक बात नहीं भूलनी चाहिए कि इस तेज रफ्तार युग में अगर अब भी रेल महकमा न चेता और ढांचागत सुधार नहीं अपनाए गए, तो वह दिन दूर नहीं, जब सुरक्षित जानकर रेल में सफर करने वाला मानस समय पर पहुंचने के लिए सड़क  मार्ग का विकल्प चुनने को बाध्य होगा। यदि ऐसा हुआ, तो प्रदूषण की समस्या से जूझ रहे इस महादेश की दशा-दिशा क्या होगी? नियामकों को इस सवाल का आकलन भी अच्छी तरह कर लेना चाहिए।

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें
अगला लेख पढ़ें