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विवाह पंजीकरण की जरूरत

महिलाओं के अधिकारों और उनकी सामाजिक सुरक्षा की बहस के बीच विधि आयोग का विवाह पंजीकरण अनिवार्य करने का सुझाव स्वागत योग्य है। आयोग का मानना है कि इससे न सिर्फ वैवाहिक धोखाधड़ी रोकने में मदद मिलेगी,...

विवाह पंजीकरण की जरूरत
हिन्दुस्तानWed, 05 Jul 2017 10:08 PM
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महिलाओं के अधिकारों और उनकी सामाजिक सुरक्षा की बहस के बीच विधि आयोग का विवाह पंजीकरण अनिवार्य करने का सुझाव स्वागत योग्य है। आयोग का मानना है कि इससे न सिर्फ वैवाहिक धोखाधड़ी रोकने में मदद मिलेगी, बल्कि कई अन्य मुश्किलों से निजात मिलेगी। जाहिर है, आयोग की सिफारिश के पार्श्व में वे तमाम शिकायतें भी होंगी, जहां महज कोई प्रमाण न होने के कारण कितनी ही महिलाओं को पत्नी का दर्जा न मिल पाया और वे दर-दर भटकने को मजबूर हुईं। अनगिनत मामले हैं, जब ऐसे हालात पैदा कर महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित किया गया। सामाजिक मान्यता और कानूनी सुरक्षा छीनी गई। ऐसे हालात में पंजीकरण काफी हद तक इन मुश्किलों से निजात दिला सकता है। विधि मंत्रालय को सौंपी रिपोर्ट में आयोग ने कहा है कि जन्म और मृत्यु पंजीकरण अधिनियम 1969 में विवाह के पंजीकरण के अनिवार्य प्रावधान को जोड़कर मामूली संशोधन के साथ यह काम प्रभावी तरीके से किया जा सकता है। हालांकि आधार को अनिवार्य बनाने, न बनाने की बहस के बीच विवाह पंजीकरण को आधार से जोड़ने के सुझाव पर बहस की पूरी गुंजाइश है, लेकिन इससे इनकार करने का भी कोई कारण नहीं कि आधार का बायोमेट्रिक डेटा कई तरह के फर्जीवाड़े पर लगाम लगाने में सहायक होगा। आयोग ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि विवाह से जुड़े पर्सनल लॉ में इसके लिए किसी संशोधन की जरूरत नहीं है, क्योंकि यह विवाह के बाद पंजीकरण कराने की एक व्यवस्था मात्र है।

महिला सुरक्षा और महिला अधिकारों को लेकर कुछ अंतरराष्ट्रीय संधियों के आलोक में भी यह एक आवश्यक सुधार होगा। आयोग की इस सिफारिश के पीछे वे तमाम मामले ही हैं, जो अक्सर हमारी अदालतों के सामने आते हैं। आयोग ने इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के 2006 के उस फैसले को नजीर माना है, जिसमें शीर्ष अदालत ने देश के सभी नागरिकों के लिए विवाह पंजीयन को उसी शहर या जिले या राज्य में अनिवार्य करने को कहा था, जहां विवाह होता है। इसी के बाद यूपीए सरकार ने 2012 में संसद में एक संशोधन प्रस्तुत किया था, जो राज्यसभा से जुलाई 2013 में पारित हो गया, लेकिन 2014 में लोकसभा के भंग होने के साथ ही अनिश्चय-अनिर्णय के गर्त में चला गया। 

सच तो यही है कि विवाह पंजीकरण एक अनिवार्य सुधार है, जिसका हर व्यक्ति, हर समाज, हर समूह को स्वागत करना चाहिए। लेकिन यह अभियान सफल तभी हो सकेगा, जब सभी राज्य इसे बिना किसी हीला-हवाली के लागू करेंगे। जाहिर है, यह काम अत्यंत निचले स्तर पर सरकारी संस्थाओं की जागरूकता, उनकी मुस्तैदी के बिना नहीं हो सकेगा। इसके लिए स्थानीय निकायों, नगर पालिकाओं, ग्राम पंचायतों के माध्यम से लोगों को जागरूक करने की जरूरत होगी। यह भी ध्यान देना होगा कि विवाह पंजीकरण को अनिवार्य बनाने के साथ सिर्फ जागरूकता नहीं, व्यवस्थाएं भी ऐसी बनानी होंगी कि आम नागरिक इसे एक और बोझ न समझ बैठे, सरकारी तंत्र इसे कमाई का एक और जरिया न बना ले। हमें उस सच से भी सबक लेने की जरूरत है कि जन्म-मृत्यु प्रमाणपत्र में धांधली के मामले तमाम प्रयासों के बावजूद न कम हुए, न इसके जरिये होने वाली लूट ही रुकी। हमें इस सवाल का जवाब भी तलाशना होगा कि बिल्कुल निचले स्तर पर, जहां विवाह संस्था के बार-बार ध्वस्त होने के सबसे ज्यादा मामले आते हैं, वहां इसका ज्यादा से ज्यादा लाभ कैसे पहुंचे? वहां लोगों को इससे होने वाली दिक्कतों, शोषण से कैसे बचाया जाए, ताकि यह व्यवस्था कहीं आम जन की परेशानी का एक और सबब न बन जाए।  

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