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एक सदी के प्रयास

पुरस्कार चाहे जितना भी बड़ा हो, लेकिन काल के इतने सारे संयोग शायद ही कभी एक साथ जुटते हों, जितने इस बार भौतिक विज्ञान के लिए दिए गए नोबेल पुरस्कार में जुटे हैं। इस पुरस्कार का नाता पिछले दो साल की कुछ...

एक सदी के प्रयास
हिन्दुस्तानWed, 04 Oct 2017 10:51 PM
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पुरस्कार चाहे जितना भी बड़ा हो, लेकिन काल के इतने सारे संयोग शायद ही कभी एक साथ जुटते हों, जितने इस बार भौतिक विज्ञान के लिए दिए गए नोबेल पुरस्कार में जुटे हैं। इस पुरस्कार का नाता पिछले दो साल की कुछ घटनाओं से भी है, और उसके पीछे चल रहे 30 साल के प्रयासों से भी, साथ ही यह सौ साल पहले हुई एक भविष्यवाणी से भी जुड़ा है और अरबों-खरबों साल पहले की उस घटना से भी, जब दो ब्लैक होल आपस में टकराए थे और इस सृष्टि का जन्म हुआ था। 

तकरीबन सौ साल पहले जब अल्बर्ट आइंस्टीन ने सापेक्षता का सिद्धांत दिया था, तो उन्होंने इसके साथ ही कई सारी और परिकल्पनाएं भी दी थीं। इन्हीं में से एक परिकल्पना थी, गुरुत्वाकर्षण तरंगों यानी ग्रेवीटेशनल वेव्स की। आइंस्टीन मानते थे कि जल्द ही ऐसी तरंगों को खोज लेंगे। गुरुत्वाकर्षण तरंगों की परिकल्पना सैद्धांतिक तौर पर भी साबित होती थी, इसलिए इस पर आगे काम शुरू हुआ। कुछ वैज्ञानिक इस पर आगे जुटे और उन्होंने गुरुत्वाकर्षण तरंगों को पकड़ने व मापने के तरीके विकसित किए। वाशिंगटन के लुईसुआना में लेजर इन्फ्रोमीटर ग्रेवीटेशनल वेव्स ऑब्जर्वेटरी यानी लिगो की परियोजना शुरू की गई, दुनिया भर में इसके केंद्र खोले गए, जिनमें तरह-तरह के संवेदनशील उपकरण लगाए गए, लेकिन हुआ कुछ नहीं। 27-28 साल बीत गए, तो कहा जाने लगा कि गुरुत्वाकर्षण तरंग जैसा कुछ होता ही नहीं। कुछ लोग धन की बरबादी का सवाल भी उठाने लगे। फिर 14 सितंबर, 2015 की सुबह इन उपकरणों ने पहली बार गुरुत्वाकर्षण तरंग को रिकॉर्ड किया। अगले दो साल में तीन और ऐसे मौके आए, जब गुरुत्वाकर्षण तरंगें हमारी दुनिया से टकराईं और हर बार उन्होंने अपनी उपस्थिति इन केंद्रों पर दर्ज कराई। आइंस्टीन ने जो कहा था, वह महज परिकल्पना नहीं रही, बल्कि सृष्टि के यथार्थ के रूप में किताबों में दर्ज हो गई। 2017 का भौतिक विज्ञान का पुरस्कार इसी परियोजना को शुरू करने वाले वैज्ञानिकों राइनर वाइस, बैरी बैरिश और किप थोर्ने को मिला है।

ये गुरुत्वाकर्षण तरंगें आती कहां से हैं? इसकी भी एक परिकल्पना है। वैज्ञानिक मानते हैं कि कई खरब साल पहले जब इस सृष्टि की शुरुआत भी नहीं हुई थी, तो दो विशालकाय ब्लैक होल आपस में टकराए थे। उनकी टक्कर से बड़ी मात्रा में ऊर्जा निकली थी। इतनी ऊर्जा कि हजारों सूर्य की ऊर्जा भी मिला दें, तो उसके सामने फीकी पड़ जाए। इसी के साथ ही कई तरंगें भी पैदा हुईं और पूरे ब्रह्मांड में फैल गईं। इन्हीं तरंगों को गुरुत्वाकर्षण तरंग कहा जाता है और माना जाता है कि ये तरंगें आज भी भटक रही हैं, जो अक्सर हमसे और हमारी धरती से टकराती हैं, पर असर इतना कम होता है कि हम इन्हें महसूस नहीं कर पाते, इन्हें सिर्फ अति-संवेदनशील उपकरणों के जरिये ही पकड़ा जा सकता है। माना जाता है कि गुरुत्वाकर्षण तरंगें क्योंकि सृष्टि के आरंभ से जुड़ी हैं, इसलिए हम सृष्टि की शुरुआत के बहुत से रहस्यों को समझ सकते हैं। कहा जाता है कि उस ‘डार्क मैटर’ को समझने की कुंजी भी गुरुत्वाकर्षण तरंगों में छिपी है, जो हमारे अस्तित्व का एक बड़ा हिस्सा हैं, लेकिन उन्हें हम जान, समझ और देख नहीं पाए हैं।

लिगो परियोजना के वैज्ञानिकों को नोबेल पुरस्कार दिया जाना उन प्रयासों का सम्मान है, जो पिछली एक सदी से दुनिया भर के वैज्ञानिक इस सृष्टि की शुरुआत और हमारे अपने अस्तित्व को जानने-समझने के लिए कर रहे हैं। तकरीबन एक सदी से चल रहे ये प्रयास यह भी बताते हैं कि कैसे छोटे-छोटे रहस्यों को जानने के लिए वैज्ञानिकों को कई पीढ़ी तक प्रयास करने पड़ते हैं। ज्ञान और विज्ञान के रास्ते कभी आसान नहीं रहे।

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