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कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर नजर

प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नैतिकता सुनिश्चित करने की किसी भी कोशिश का स्वागत और अनुकरण होना चाहिए। पिछले दिनों आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) अर्थात कृत्रिम बुद्धिमत्ता के क्षेत्र में सबसे प्रतिष्ठित...

कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर नजर
हिन्दुसस्तानSun, 27 Dec 2020 09:49 PM
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प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नैतिकता सुनिश्चित करने की किसी भी कोशिश का स्वागत और अनुकरण होना चाहिए। पिछले दिनों आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) अर्थात कृत्रिम बुद्धिमत्ता के क्षेत्र में सबसे प्रतिष्ठित सम्मेलन का ऑनलाइन आयोजन हुआ है, जिसमें नैतिकता की दृष्टि से एक उदाहरण स्थापित करने की कोशिश हुई है। न्यूरल इन्फॉर्मेशन प्रोसेसिंग सिस्टम्स के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में अपनी प्रस्तुति देने वालों को अपने शोध से संबंधित यह जानकारी भी देनी थी कि उनका शोध कैसे समाज को प्रभावित करेगा। शोधकर्ताओं से यह भी पूछा गया कि क्या उनके शोध से समाज पर किसी नकारात्मक असर की आशंका है? यह एक बड़ी उपयोगी पहल है, जिसके लिए आयोजक बधाई के पात्र हैं। नेचर  पत्रिका में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, आयोजकों ने नैतिक चिंताओं से संबंधित दस्तावेजों की जांच के लिए समीक्षकों का पैनल भी गठित किया है। इसके पीछे कोशिश है कि किसी भी ऐसे शोध को हतोत्साहित किया जाए, जिसका नकारात्मक इस्तेमाल मुमकिन हो। एआई विशेषज्ञ कनाडावासी जैक पॉल्सन कहते हैं कि लोगों को इस विषय पर सोचना चाहिए, क्योंकि आज इसका बहुत महत्व है। यह जरूरी है कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता अर्थात एआई के क्षेत्र में शोध की एक सकारात्मक संस्कृति विकसित हो। अच्छे उत्पादों या अच्छी सेवाओं का विकास हो। साथ ही, यह भी सुनिश्चित किया जाए कि किसी भी एआई उत्पाद का दुरुपयोग न हो सके।
तकनीक या प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विगत वर्षों में नैतिकता संबंधी विवाद भी बढ़े हैं और चिंताएं भी। हम सब अच्छी तरह जानते हैं कि एआई की वजह से बड़ी संख्या में लोगों को परेशानी भी हो रही है और लोग शोषण के भी शिकार हो रहे हैं। सुविधा बढ़ाने की आड़ में ऐसी प्रौद्योगिकी का भी विकास किया जा रहा है, ताकि जल्दी से जल्दी लोगों के अर्ध-ज्ञान या अज्ञान का फायदा उठाकर कमाई की जा सके। इस क्षेत्र में तरक्की बहुत तेज है और दुनिया में पुलिस व्यवस्था इतनी कुशल नहीं है कि उच्च प्रौद्योगिकी के जरिए किए गए अपराधों को तत्काल पकड़ा जा सके। कई अपराध तो ऐसे भी हैं, जो विकसित देशों की पुलिस की पकड़ से भी बाहर हैं। ज्यादा चिंता प्रौद्योगिकी के उन उत्पादों या सेवाओं को लेकर है, जिनके जरिए आम लोगों को सीधे-सीधे छला जा रहा है। ऐसे में, यदि स्वयं वैज्ञानिक या शोधकर्ता ही सचेत हो जाएं, तो समस्याएं अपने आप सुलझ जाएंगी। 
लंदनवासी एआई विशेषज्ञ ईसन गैब्रियल कहते हैं, पहले ‘टेक्नो आशावाद’ का दौर था, लेकिन हाल के वर्षों में परिदृश्य बदल गया है। इसलिए नैतिकता सुनिश्चित करने की कोशिश करता यह उपयोगी सम्मेलन हर लिहाज से प्रशंसनीय है। सम्मेलन में 9,467 शोध पत्र रखे गए, जिनमें से चार शोध पत्रों को नैतिकता के आधार पर सीधे खारिज कर दिया गया। यह पूरी कवायद अच्छे भविष्य का संकेत है। इस सम्मेलन में उन प्रस्तुतियों पर भी आपत्ति की गई है, जिनमें लोगों के व्यक्तिगत डाटा, फोटो इत्यादि का उपयोग बिना मंजूरी किया गया था। भारत में भी डाटा दुरुपयोग पिछले दिनों बहुत बढ़ गया है। चूंकि भारत एआई के क्षेत्र में दुनिया के टॉप 20 देशों में गिना जाता है, और एआई शोध में तीसरे स्थान पर है, इसलिए यहां नैतिकता सुनिश्चित करने के प्रयास स्थानीय स्तर पर भी बहुत जरूरी हैं।

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