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संभावनाओं का सर्वे

हर साल हम जब अगले साल के लिए केंद्र सरकार के सालाना बजट का इंतजार कर रहे होते हैं, तो उससे कुछ दिन पहले वर्तमान वित्तीय वर्ष का आर्थिक सर्वेक्षण दस्तक देता है। जहां बजट यह बताता है कि क्या होगा, वहीं...

संभावनाओं का सर्वे
हिन्दुस्तानMon, 29 Jan 2018 09:10 PM
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हर साल हम जब अगले साल के लिए केंद्र सरकार के सालाना बजट का इंतजार कर रहे होते हैं, तो उससे कुछ दिन पहले वर्तमान वित्तीय वर्ष का आर्थिक सर्वेक्षण दस्तक देता है। जहां बजट यह बताता है कि क्या होगा, वहीं आर्थिक सर्वे के आंकड़े यह बता रहे होते हैं कि क्या हुआ? बजट और आर्थिक सर्वे भले ही एक-दूसरे से बहुत ज्यादा जुड़े न हों, लेकिन आर्थिक सर्वे बजट के लिए भूमिका तो तैयार करता ही है। सोमवार को वित्त मंत्री अरुण जेटली ने संसद में 2017-18 का जो आर्थिक सर्वेक्षण पेश किया, वह भविष्य को लेकर ढेर सारी उम्मीदें बंधाता है। यह जरूर कहा जा सकता है कि सर्वे ने जो उम्मीदें बंधाई हैं, उनमें नया कुछ नहीं है। वह वही सब कह रहा है, जो पिछले कुछ समय से दुनिया भर में कहा जा रहा है। अगले वित्त वर्ष में भारत सबसे तेजी से विकास कर रही दुनिया की अकेली बड़ी अर्थव्यवस्था होगा, यह बात दुनिया के तमाम मंचों से भी कही जा चुकी है और दुनिया की तमाम रेटिंग एजेंसियां भी जाने कब से यह बात कह रही हैं। सर्वे ने अनुमान लगाया है कि अगले साल भारत की विकास दर सात से साढ़े सात फीसदी के बीच रहेगी। इसमें भी कुछ नया नहीं है, दुनिया भर में भारत की विकास दर को लेकर जो अनुमान लगाए गए हैं, वे भी इसके आस-पास ही हैं। आगे खतरा एक ही दिख रहा है कि कहीं अंतरराष्ट्रीय बाजार में पेट्रोलियम की बढ़ती कीमतें कोई खलल न डालें। 

पिछले वित्त वर्ष की सबसे खास बात थी देश में वस्तु व सेवा कर यानी जीएसटी की एकीकृत प्रणाली का लागू होना। हालांकि इसका संपूर्ण आकलन अभी हमारे पास नहीं है, लेकिन जो आंकड़े मिले हैं, वे काफी उम्मीद बंधाते हैं। वैसे भी, ये पूरे साल के आकलन नहीं हैं, क्योंकि जीएसटी प्रणाली वित्त वर्ष के बीच में एक तिमाही बीत जाने के बाद लागू हुई थी। लेकिन सबसे अच्छी बात जो सर्वे से सामने आई है, वह यह कि इसके बाद से देश में अप्रत्यक्ष कर जमा करने वालों की संख्या में 50 फीसदी की वृद्धि हुई है। पिछले साल ऐसा ही कमाल प्रत्यक्ष कर के मामले में नोटबंदी ने दिखाया था। करदाताओं की संख्या बढ़ना हमेशा ही एक अच्छा संकेत होता है। एक तो इससे औपचारिक अर्थव्यवस्था का आधार बढ़ता है और दूसरे करों की दर घटाने की गुंजाइश भी मिलती है। इसलिए यह उम्मीद बांधी जा रही है कि सरकार जीएसटी की दरों को और नीचे ला सकती है। हालांकि यह उम्मीद शायद ही आगामी बजट में परवान चढ़े। 

सर्वे ने यह संकेत भी दिए हैं कि सरकार कृषि क्षेत्र पर अपना ध्यान बढ़ाने जा रही है। 2019 के आम चुनाव को देखते हुए इसकी उम्मीद पहले से ही थी। भाजपा ने किसानों की आमदनी को दोगुना करने का वादा किया था। यह चुनौती बहुत बड़ी है, खासकर एक बजट या बाकी बचे एक साल को देखते हुए। लेकिन यह उम्मीद तो है ही कि सरकारी प्रयास इस दिशा में बढ़ते दिखाई देंगे। कृषि क्षेत्र की उत्पादकता में इजाफा कर और किसानों को फसलों का उचित मूल्य दिलवाकर इसे बहुत आगे नहीं ले जाया जा सकता। मुमकिन है कि सरकार ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार के अवसर पैदा करने के प्रयासों से इसकी कुछ भरपाई करे। रोजगार के नए अवसर पैदा करने की चुनौती ग्रामीण, शहरी और अद्र्ध-शहरी, सभी क्षेत्रों में एक जैसी है। मेक इन इंडिया और कौशल विकास जैसी चीजों से आर्थिक सर्वे समेत सभी उम्मीद बांध रहे हैं। 

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