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मालदीव की मुश्किल

मालदीव का राजनीतिक संकट तेजी से गहराता जा रहा है। लोकतांत्रिक प्रक्रिया और नागरिक प्रशासन को धता बताते हुए राष्ट्रपति अब्दुल्ला यमीन ने न सिर्फ विपक्षी नेताओं की रिहाई पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश मानने...

मालदीव की मुश्किल
हिन्दुस्तानMon, 05 Feb 2018 09:20 PM
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मालदीव का राजनीतिक संकट तेजी से गहराता जा रहा है। लोकतांत्रिक प्रक्रिया और नागरिक प्रशासन को धता बताते हुए राष्ट्रपति अब्दुल्ला यमीन ने न सिर्फ विपक्षी नेताओं की रिहाई पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश मानने से इंकार कर दिया है, बल्कि संसद को भी एक तरह से सील कर उसे विपक्ष की पहुंच से दूर कर दिया है। असुरक्षा-बोध से घिरे यमीन विपक्षियों की रिहाई को रोकने के लिए किसी भी हद तक जाने को उतारू हैं। सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी और महाभियोग की आशंका ने उन्हें इस कदर बेचैन कर रखा है कि वह सेना को अलर्ट कर जजों की गिरफ्तारी के मनसूबे बना रहे हैं। प्रधान न्यायाधीश सहित कई जजों ने फर्जी आरोपों में गिरफ्तारी की आशंका जताते हुए खुद को सुप्रीम कोर्ट परिसर में ही सुरक्षित कर लिया है। यह सब तब शुरू हुआ, जब बीते हफ्ते सुप्रीम कोर्ट ने ब्रिटेन में निर्वासित जीवन बिता रहे पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद को सभी आरोपों से बरी करते हुए नौ अन्य विपक्षी नेताओं की तत्काल रिहाई का आदेश दिया। कोर्ट ने माना कि सभी को साजिशन फंसाया गया था। 

मालदीव में लोकतंत्र की बहाली 2008 में हुई और मोहम्मद नशीद लोकतांत्रिक रूप से चुने गए देश के पहले राष्ट्रपति बने। 2013 में उन्हें भ्रष्टाचार के आरोपों में सत्ता से हटा दिया गया और राष्ट्रपति यमीन काबिज हो गए। मालदीव के असल राजनीतिक संकट की शुरुआत भी यहीं से हुई। अभिव्यक्ति की आजादी, विपक्षियों और लोकतांत्रिक प्रक्रिया व मानवाधिकार के पक्षधरों का दमन शुरू हो गया। विपक्षी जेल में ठूंसे जाने लगे और न्यायपालिका की आजादी खतरे में पड़ गई। नशीद को 13 साल जेल की सजा सुनाई गई, जिसकी अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने तीव्र निंदा की थी। बाद में जब वह एक सर्जरी के सिलसिले में ब्रिटेन गए, तो वहां की सरकार ने उन्हें राजनीतिक शरण दे दी थी। सुप्रीम कोर्ट का ताजा आदेश मालदीव में फैली इसी अराजकता पर विराम लगाने वाला है, जो यमीन के गले नहीं उतर रहा। वह जानते हैं, आदेश के क्रियान्वयन के साथ ही विपक्ष मजबूत होकर उभरेगा और उन्हें ही नहीं, हर किसी को उसकी बहुमत से वापसी साफ दिखाई दे रही है। हजारों लोगों ने जिस तरह संसद को घेरा, उसे भी यमीन खतरे के रूप में देख रहे हैं।

संकट के आसार बीते साल के अंत में दिखाई देने लगे थे, जब यमीन सरकार ने चीन के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट किया और बिना किसी बहस के इसे रिकॉर्ड एक घंटे में संसद से पारित भी करा लिया, जिसका पूर्व राष्ट्रपति नशीद के नेतृत्व वाली प्रमुख विपक्षी मालदीव डेमोक्रेटिक पार्टी विरोध कर रही थी। मालदीव और चीन का व्यापारिक लेन-देन हमेशा से चीन के पक्ष में रहा है और इसने मालदीव की अर्थव्यवस्था को खासी चोट दी है। यमीन यूं भी भारत-विरोधी माने जाते हैं और नशीद से उनके मतभेदों की कड़ी में कहीं-न-कहीं उनका भारत के प्रति झुकाव भी रहा है। ऐसे में चीन की गोद में बैठना यदि यमीन की रणनीति है, तो शायद अस्तित्व बचाने का एकमात्र तरीका भी। ऐसे में मालदीव की सुप्रीम कोर्ट और प्रमुख विपक्ष अगर भारत की ओर उम्मीद से देख रहे हैं, तो कुछ भी गलत नहीं है। दूसरे देशों के मामले में हस्तक्षेप न करना हमारी नीति रही है, लेकिन जब खतरे के संकेत दिखें, तो कुछ सोचना ही पड़ता है। वहां हालात भयावह हैं, जनता सड़कों पर है, संसद बंद पड़ी है और लोकतंत्र व न्यायपालिका सेना व सरकार के रहमोकरम पर है। 

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