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अगला पड़ाव चांद पर

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान ‘इसरो’ ने फिर इतिहास रच दिया है। सोमवार दोपहर दो बजकर तैंतालिस मिनट पर जब जीएसएलवी मार्क-3 रॉकेट के जरिए चंद्रयान-2 ने श्रीहरिकोटा से उड़ान भरी, तो भारत ने...

अगला पड़ाव चांद पर
हिन्दुस्तानMon, 22 Jul 2019 10:08 PM
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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान ‘इसरो’ ने फिर इतिहास रच दिया है। सोमवार दोपहर दो बजकर तैंतालिस मिनट पर जब जीएसएलवी मार्क-3 रॉकेट के जरिए चंद्रयान-2 ने श्रीहरिकोटा से उड़ान भरी, तो भारत ने एक बार फिर कामयाबी के सातवें आसमान को छू लिया। तमाम तरह की बाधाएं पार करते हुए हर बार कामयाबी की नई कहानी लिखना इसरो की पुरानी फितरत रही है। इस रॉकेट में वही क्रायोजेनिक इंजन इस्तेमाल हुआ है, जिसकी तकनीक भारत को देने पर अमेरिका ने कई बरस पहले ही पाबंदी लगा दी थी। खुद तो उसने यह तकनीक नहीं ही दी, दुनिया के तमाम देशों को भी इससे रोक दिया। असफलताओं के तमाम चरणों से गुजरते हुए भारत ने न सिर्फ इस तकनीक को विकसित किया और साधा, बल्कि अब इसकी तीसरी पीढ़ी के रॉकेट को तैयार कर उसके प्रक्षेपण में भी सफलता हासिल कर ली है। हो सकता है कि पाबंदी न होती, तो भारत यह कामयाबी कुछ समय पहले ही हासिल कर लेता, लेकिन तब स्वदेशी तकनीक विकसित करने का वह गौरव इसके साथ न जुड़ता, जो अब हर भारतीय का मस्तक ऊंचा कर रहा है।

लगभग छह सप्ताह के बाद गौरव का एक और क्षण हमारे लिए तब आएगा, जब चंद्रयान-2 पहले धरती और फिर चंद्रमा का चक्कर लगाते हुए उसके पास पहुंचेगा। तब चंद्रयान-2 से विक्रम नाम का लैंडर निकलकर चांद की सतह को छुएगा। इसके साथ ही भारत चांद की सतह पर यान उतारने वाला दुनिया का चौथा देश बन जाएगा। लेकिन पूरा प्रयोग यहीं खत्म नहीं होगा। इसके बाद इस लैंडर से प्रज्ञान नाम का एक रोवर यानी वाहन अलग होगा, जो नीचे लगे पहियों की मदद से न सिर्फ चांद की सतह पर घूम सकेगा, बल्कि उसमें लगे विभिन्न उपकरण चांद की जमीन और मिट्टी पर कई तरह के वैज्ञानिक परीक्षण करेंगे। भारत ने यह लैंडर चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतारा है, जो बड़े-बड़े गड्ढों वाला बीहड़ इलाका है और सूरज की रोशनी भी नहीं पहुंचती। यानी चांद का वह क्षेत्र, जो हम धरती से कभी नहीं देख सकते। यही वह क्षेत्र है, जहां पानी और बर्फ पाए जाने की सबसे ज्यादा संभावना है। यह बताता है कि इसरो प्रयोगों के उस सिलसिले को आगे ले जाना चाहता है, जो उसने चंद्रयान-1 से शुरू किया था। तब इसने पहली बार चांद की सतह पर पानी होने के प्रमाण खोजे थे।

इस कामयाबी के साथ इसरो ने हमें गर्व करने का एक कारण ही नहीं दिया, बल्कि भविष्य की एक बहुत बड़ी उम्मीद बंधाई है। वैसे तो मानव ने आधी सदी पहले ही चांद पर कदम रख दिए थे, लेकिन एक प्रतीकात्मक सफलता और एक बड़ी वैज्ञानिक उपलब्धि के अलावा उस समय चंद्र अभियान से ऐसी बड़ी उम्मीदें नहीं बांधी गई थीं कि इस प्रयोग में आगे बड़ा निवेश किया जाता। लेकिन पिछले कुछ साल से दुनिया ने चांद से बड़ी उम्मीदें बांधनी शुरू कर दी हैं। एक तो अब यह माना जाने लगा है कि हमारे बहुत सारे खनिज संसाधनों की जरूरत अंतरिक्ष से पूरी हो सकती है। ऐसा हुआ, तो यह तय है कि चांद इसका शुरुआती बिंदु होगा। दूसरे, अगर यह होड़ चांद से आगे भी जाती है, तो चांद ऐसी यात्राओं का पहला पड़ाव भी बन सकता है। यह पहला मौका है, जब भारत भविष्य की किसी तकनीक को समय रहते साध रहा है। इसरो की सबसे बड़ी कामयाबी यही है।

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