दूर गगन में बसेरा
पिछले हफ्ते यह खबर आई कि वैज्ञानिकों ने हमारी आकाशगंगा के बाहर एक ऐसे ग्रह में पानी होने का सुराग पा लिया है, जो काफी कुछ हमारी धरती की ही तरह है। पानी होने का अर्थ है, वहां जीवन होने या बसाने की...
पिछले हफ्ते यह खबर आई कि वैज्ञानिकों ने हमारी आकाशगंगा के बाहर एक ऐसे ग्रह में पानी होने का सुराग पा लिया है, जो काफी कुछ हमारी धरती की ही तरह है। पानी होने का अर्थ है, वहां जीवन होने या बसाने की संभावना, इसलिए दुनिया भर के लोगों और मीडिया ने इस खबर को हाथों-हाथ लिया। धरती के प्रदूषण, सामाजिक वैमनस्य और समस्याओं के अंबार से हम इतने त्रस्त हैं कि दूर गगन में एक नई दुनिया बसाने का सपना हमें रोमांच से भर देता है। महान वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग तक यह कल्पना करते थे कि धरती के संकट एक दिन इतने बढ़ सकते हैं कि हमें पूरे मानव समुदाय को किसी दूसरे ग्रह पर बसाने का फैसला करना पड़ सकता है। लेकिन क्या यह संभव होगा? वैज्ञानिक इस संभावना से इनकार नहीं करते, लेकिन इसका अंतिम जवाब उनके पास नहीं है। एक बात तय है कि यह कभी आसान नहीं होगा। मसलन, हम उसी ग्रह को लेते हैं, जिस पर पानी होने का ताजा प्रमाण हमें मिला है। के2-18बी नाम का यह ग्रह धरती से कई गुना बड़ा है, लेकिन कई मामलों में है धरती की तरह का ही। मगर दिक्कत यह है कि यह हमारी धरती से 124 प्रकाश वर्ष दूर है। यानी अगर हम प्रकाश की गति से भी चलें (जो असंभव है), तब भी 124 वर्ष से पहले हम वहां नहीं पहुंच पाएंगे। यानी अगर कुछ लोग यहां से प्रकाश की गति से चल पड़ें, तो उनकी तीसरी पीढ़ी ही वहां पहुंचेगी, जिसने जन्म लेने से बड़े होने तक का सारा वक्त एक अंतरिक्ष यान में ही बिताया होगा। वैसे यह ग्रह तो बहुत दूर है, लेकिन अक्सर मंगल पर जीवन बसाने की बातें होती रहती हैं, पर क्या वह भी निकट भविष्य में संभव है?
अभी तक जब भी हम संभावनाओं की बात करते हैं, तो आमतौर पर उन भौतिक स्थितियों की ओर ही ध्यान देते हैं, जो जीवन के संभव होने की मूल शर्त हैं। मसलन, वहां वायुमंडल हो, उसमें ऑक्सीजन हो, पानी उपलब्ध हो, तापमान उसी के आस-पास हो, जितना कि धरती पर होता है, वगैरह। जबकि हम यह भी जानते हैं कि जीवन सिर्फ इन्हीं परिस्थितियों का नतीजा नहीं है। वह धरती के जटिल पर्यावरण से उपजा और उसी में पला-बढ़ा है। ये सारी जटिलताएं अभी शायद पूरी तरह से समझी भी नहीं जा सकी हैं, न ही इन जटिलताओं की उपलब्धता के लिए किसी दूसरे ग्रह का विस्तृत अध्ययन ही हो सका है। बेशक इनके बगैर भी दूसरे ग्रह पर जीवन को बसाने की कोशिश हो सकती है। जैसे कि मंगल पर पेड़-पौधे लगाने या टेराफार्मिंग करने की कुछ योजनाएं बनी हैं। अगर वे सफल होती हैं, तो जीवन वहां होगा, मगर वैसा नहीं, जैसा कि हमारी धरती पर है।
हमारी धरती पर जो जीवन है, वह इस ग्रह के करोड़ों साल के इतिहास का नतीजा है। इस धरती का जीवन ही लाखों साल पुराना है। आज जो हम देख रहे हैं, बहुत लंबे दौर में धीरे-धीरे विकसित हुआ है। क्या इस विकसित जीवन को हम किसी दूसरे ग्रह पर ऐसे ही बसा सकते हैं, जिस ग्रह का धरती जैसा न तो इतिहास है और न भूगोल? इससे जुड़ा एक नैतिक सवाल भी है कि ब्रह्मांड के किसी दूसरे ग्रह और उसके वायुमंडल से छेड़छाड़ का अधिकार हमें क्यों हो? फिलहाल महत्वपूर्ण यह है कि अगले लंबे समय तक यह संभव नहीं है, इसलिए बेहतर यही है कि हम अपनी धरती को सुधारने पर ही ध्यान दें।