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विवाद और अमन

सरहद से ज्यादा जरूरी होता है, अपनी हद को समझना। बुधवार को लद्दाख की पेगांग झील के पास भारत और चीन की नियंत्रण रेखा पर जो हुआ, उसे दो देशों की परिपक्वता की एक मिसाल कहा जा सकता है। 604 वर्ग किलोमीटर...

विवाद और अमन
हिन्दुस्तान Fri, 13 Sep 2019 02:19 AM
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सरहद से ज्यादा जरूरी होता है, अपनी हद को समझना। बुधवार को लद्दाख की पेगांग झील के पास भारत और चीन की नियंत्रण रेखा पर जो हुआ, उसे दो देशों की परिपक्वता की एक मिसाल कहा जा सकता है। 604 वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैली, समुद्र की सतह से 4,350 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस झील के एक तरफ भारत है और दूसरी तरफ चीन। जिसे हम दोनों देशों के बीच की वास्तविक नियंत्रण रेखा कहते हैं, नक्शे पर वह इस झील के पानी के बीच से गुजरती है। नियंत्रण और इस रेखा को लेकर कई तरह के दावे-प्रतिदावे हैं, जो अक्सर दोनों तरफ तैनात फौज को उलझने का कारण मुहैया कराते रहते हैं। बुधवार को भी ऐसा ही हुआ। भारतीय फौज की एक टुकड़ी इस झील के किनारे गश्त लगा रही थी। चीन की फौज ने इस पर आपत्ति की। उसे लगा कि यह टुकड़ी उसके इलाके में पहुंच गई है। हालांकि खबरों में यही बताया गया है कि भारतीय सेना अपने ही इलाके में थी, मगर नियंत्रण रेखाओं पर इस तरह के बहुत सारे तनाव शक के आधार पर ही बन जाते हैं और कई तो बहुत बढ़ भी जाते हैं। पेगांग झील जिसे चीनी भाषा में पिन्यिन कहा जाता है, दुनिया की सबसे ज्यादा ऊंचाई पर स्थित खारे पानी की झील है, लेकिन बुधवार को दोनों देशों की सेनाओं ने जो परिपक्वता दिखाई, उससे दोनों फौजी टुकड़ियों में बीच आया यह खारापन ज्यादा टिक नहीं पाया और शाम होने से पहले ही दोनों फौजों के प्रतिनिधियों ने आपस में बातचीत कर मसला सुलझा लिया।

भारत और चीन की नियंत्रण रेखा पर ऐसा अक्सर होता रहा है, लेकिन इस बार यह सब जिन परिस्थितियों के बीच हुआ है, वह काफी महत्वपूर्ण है। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने का पाकिस्तान के साथ ही चीन ने भी विरोध किया था। चीन खासकर लद्दाख को केंद्र शासित क्षेत्र बनाने का भी विरोध कर रहा है। इतना ही नहीं, इस मसले पर दुनिया के तमाम मंचों पर वह पाकिस्तान का साथ दे रहा है। इसके बाद से दोनों देशों के रिश्तों में जो खट्टापन आया है, उसकी गंभीरता को इससे भी समझा जा सकता है कि दोनों देशों के बीच सीमा समस्या का हल खोजने के लिए चल रही विशेष प्रतिनिधियों की वार्ता का पिछले सप्ताह 22वां चक्र शुरू होना था, लेकिन तनाव को देखते हुए इसे स्थगित कर दिया गया। वैसे दोनों देशों के प्रतिनिधि 1960 के बाद से अभी तक विभिन्न स्तरों पर कुल 45 बार वार्ता की मेज पर बैठ चुके हैं और कोई भी सहमति निकलती नहीं दिखाई दी।

इस सबको देखते हुए बुधवार को जो हुआ, वह संतोषजनक बात है। दोनों देशों के बीच 3,488 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा को लेकर चाहे कितने ही विवाद हों, दोनों की एक समान प्रतिबद्धता तो है कि किसी भी विवाद को बेवजह बढ़ने न दिया जाए। दो साल पहले दोनों सेनाओं के बीच एक विवाद उस क्षेत्र या ट्राईजंक्शन पर हुआ था, जहां भारत, भूटान और चीन आमने-सामने हैं। वह विवाद कई दिनों तक खिंचा, लेकिन इसी प्रतिबद्धता के चलते डोका ला का वह मसला भी सुलझा लिया गया था। ऐसा इसलिए संभव हुआ कि विवादों के बावजूद दोनों तरफ विश्वास भी बना हुआ है। किसी भी तरफ से घुसपैठिए या आतंकवादी भेजने की कोई शिकायत नहीं है। क्या इससे पड़ोस के बाकी देश भी सबक लेंगे?

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