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दाता दरबार में धमाका

पाकिस्तान में जिस स्तर पर आतंकवादी वारदात होती रही हैं, बुधवार की घटना उस मुकाबले में उतनी बड़ी भी नहीं लग सकती है। लेकिन आतंकवादी वारदात की गंभीरता को उसके शिकार बने निरपराध लोगों की संख्या से नहीं,...

दाता दरबार में धमाका
हिन्दुस्तानThu, 09 May 2019 01:28 AM
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पाकिस्तान में जिस स्तर पर आतंकवादी वारदात होती रही हैं, बुधवार की घटना उस मुकाबले में उतनी बड़ी भी नहीं लग सकती है। लेकिन आतंकवादी वारदात की गंभीरता को उसके शिकार बने निरपराध लोगों की संख्या से नहीं, बल्कि समाज को गर्त में ले जाने वाली कट्टरता के उसके रुझान से आंका जाता है। इस लिहाज से लाहौर की सूफी दरगाह दाता दरबार में बुधवार को हुआ विस्फोट पाकिस्तान के बारे में काफी कुछ कहता है। सूफी पीर अबुल हसन अली हजवीरी, जिन्हें दाता बख्श गंज के नाम से भी जाना जाता है, उनकी यह दरगाह लाहौर का शायद सबसे सम्मानित धर्मस्थल है। लाहौर के लिए दाता बख्श गंज का क्या महत्व है, इसे इससे भी समझा जा सकता है कि इस शहर को दाता की नगरी के नाम से भी जाना जाता है। दाता दरबार पाकिस्तान की उन सूफी दरगाहों में से एक है, जिनकी लोकप्रियता वहां के कट्टरपंथी तत्वों को कभी बर्दाश्त नहीं हुई और उनके तमाम आतंकी संगठन हर कुछ समय बाद किसी न किसी सूफी दरगाह पर बड़ी वारदात करते रहे हैं। पिछले करीब 12 साल में इस दरगाह पर हुआ यह तीसरा बड़ा हमला है। इससे पहले साल 2010 में हमला हुआ था, जब आत्मघाती हमले में 50 से ज्यादा लोग मारे गए थे। उसके बाद से दरगाह की सुरक्षा को कड़ा कर दिया गया था, श्रद्धालुओं को सुरक्षा के कई चक्र पार करके इस दरगाह तक पहुंचना पड़ता था, लेकिन आतंकवादियों ने इस सुरक्षा घेरे में भी सेंध लगा ली।

दाता दरबार आतंकवादी हमलों की गवाह बनी अकेली दरगाह नहीं है। दो साल पहले सिंध की प्रसिद्ध दरगाह ‘लाल शाहबाज कलंदर’ पर आतंकवादियों ने आत्मघाती हमला किया था, जिसमें 100 से ज्यादा लोगों के मारे जाने की खबरें आई थीं। एक अनुमान के अनुसार, पाकिस्तान की सूफी दरगाहों पर पिछले डेढ़ दशक में 30 से ज्यादा बड़े आतंकवादी हमले हो चुके हैं, जिनमें मरने वालों की संख्या सवा दौ सौ से ज्यादा हो चुकी है। पहले पाकिस्तान की सरकारें इसका दोष सुन्नी तहरीक नाम के संगठन पर लगाती थीं। फिर ऐसी हरकतों पर तहरीके-तालिबान पाकिस्तान का नाम चस्पां किया जाने लगा। कुछ साल से जब भी कोई ऐसी वारदात होती है, तो उसका दोष इस्लामिक स्टेट के मत्थे मढ़ दिया जाता है। इस्लामिक स्टेट के उभार ने उन्हें यह बहाना दे दिया है कि इनमें पाकिस्तान का हाथ नहीं, बल्कि विदेशी षड्यंत्र है।

जबकि यह पूरी दुनिया जान चुकी है कि पाकिस्तान ने कश्मीर और भारत विरोध के नाम पर जिन आतंकवादियों को पाला है, वे अपनी कट्टरता को कई तरह से अंजाम दे रहे हैं। कश्मीर और बाकी भारत में आतंक फैलाने के अलावा यही लोग अफगानिस्तान में अमेरिकी फौजों पर हमला करने से लेकर उनके खिलाफ भर्ती अभियान चलाते हैं, इन्हीं का डर शिंजियांग प्रांत में चीन तक को सताता है, यही लोग पाकिस्तान में ईसाइयों पर कई बड़े हमले कर चुके हैं, और यही लोग आए दिन वहां सूफी दरगाहों पर हल्ला बोलते रहते हैं। जिन्हें भारत में आतंकवाद फैलाने के लिए पाला गया है, वे किसी को नहीं बख्श रहे, यहां तक कि खुद पाकिस्तान और वहां के लोगों को भी नहीं। यही मसूद अजहर के मामले में भी जाहिर हुआ था, इसीलिए पहले अमेरिका और आखिर में चीन भी उस पर पाबंदी के लिए राजी हुआ। लेकिन क्या बुधवार के दाता दरबार धमाके से पाकिस्तान कोई सबक सीखेगा?

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