चार राज्यों का संदेश
लोकसभा चुनाव नतीजों का धूम-धड़ाका इतना बड़ा था कि इसमें उन चार राज्यों की विधानसभाओं के नतीजों की आवाज मंद पड़ गई। इनमें भी आंध्र प्रदेश और ओडिशा के नतीजे काफी कुछ ऐसा कह गए, जिसे सुना जाना जरूरी है। ये...
लोकसभा चुनाव नतीजों का धूम-धड़ाका इतना बड़ा था कि इसमें उन चार राज्यों की विधानसभाओं के नतीजों की आवाज मंद पड़ गई। इनमें भी आंध्र प्रदेश और ओडिशा के नतीजे काफी कुछ ऐसा कह गए, जिसे सुना जाना जरूरी है। ये दोनों ऐसे राज्य थे, जहां नरेंद्र मोदी का विजय रथ रुक गया। आंध्र प्रदेश में तो जैसे उसे प्रवेश का मौका ही नहीं मिला।ेकेंद्र में एक बार फिर सरकार बनाने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने जो लड़ाई लड़ी, उसकी कई तरह से व्याख्या की जाती है। उसमें एक व्याख्या यह है कि पार्टी ने वंशवाद को ध्वस्त कर दिया। लेकिन ठीक इसी दौरान इन दोनों प्रदेशों में सत्ता वंशजों के ही हाथ लगी
ओडिशा में पांचवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने की तैयारी कर रहे नवीन पटनायक उड़िया राजनीति के पितामह कहलाने वाले बीजू पटनायक के बेटे हैं। दूसरी तरफ, आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू को शिकस्त देने वाले जगनमोहन रेड्डी के पिता राजशेखर रेड्डी भी उस समय आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं, जब तेलंगाना भी उसका हिस्सा था। दिलचस्प यह है कि चंद्रबाबू नायडू की राजनीति को भी वंश परंपरा का ही हिस्सा माना जाता है। वह तेलुगू राजनीति की दिशा बदलने वाले नंदमूरि तारक रामाराव के दामाद हैं। उन्होंने सत्ता रामाराव का तख्ता पलटकर ही हासिल की थी।
नवीन पटनायक ने अपने पिता के निधन के चार साल बाद साल 2000 में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। शुरू में कहा जाता था कि उनकी पारी ज्यादा लंबी नहीं चलने वाली, लेकिन उन्होंने राज्य में सभी चुनौतियों को खत्म ही नहीं किया, बल्कि ओडिशा को एक ऐसा राज्य बना दिया, जहां एंटी इनकंबेन्सी प्रवेश करने से भी घबराती है। इस बार हालांकि भाजपा ने इस प्रदेश से काफी उम्मीदें बांधी थीं, लेकिन उसके मनसूबे ज्यादा कामयाब नहीं हुए, न विधानसभा की सीटों पर और न लोकसभा की सीटों पर। राज्य की 147 सदस्यीय विधानसभा में उसने 112 सीटें आसानी से जीत लीं, जबकि भाजपा को महज 23 सीटों से ही संतोष करना पड़ा। ओडिशा विधानसभा नतीजों में एक रुझान जरूर ऐसा था, जो आम चुनाव के नतीजों से मेल खाता था, वह था कांग्रेस की करारी पराजय, जिसे सिर्फ नौ सीटें मिलीं।
लेकिन आंध्र प्रदेश में 47 वर्षीय जगनमोहन रेड्डी के लिए जीत इतनी आसान नहीं थी, उन्हें इसके लिए पूरे दस साल तक संघर्ष करना पड़ा। दस साल पहले जब मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए उनके पिता का निधन हुआ, तो जगनमोहन ने उसी समय अपनी दावेदारी ठोक दी थी। पर कांग्रेस पार्टी ने यह दावा स्वीकार नहीं किया और उन्हें न सिर्फ अपनी अलग पार्टी बनानी पड़ी, बल्कि जेल भी जाना पड़ा। अब जब उन्होंने भारी जीत हासिल की है, तो कांग्रेस खाता खोलने में भी कामयाब नहीं रही। सिर्फ अरुणाचल है, जहां भाजपा सत्ता हासिल करने में कामयाब रही, जबकि सिक्किम विधानसभा के संघर्ष में तो खैर वह थी ही नहीं।
भारत को विविधताओं का देश माना जाता है। इसके भूगोल और संस्कृति में ही नहीं, राजनीति में भी ढेर सारी विविधताएं हैं। हर जगह की राजनीति के अपने-अपने सच हैं। पूरा देश जब अपने लिए सरकार चुनने के महायज्ञ में था, इन चारों राज्यों ने भी अपने-अपने सच पर मोहर लगा दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव नतीजों को भारत की जीत बताया है, यह उसकी विविधता की जीत भी है।