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पड़ोस से सबक

बांग्लादेश के घटनाक्रम पर भारत की सतर्कता और समझदारी की सराहना करनी चाहिए। सरकार ने संसद में कोई बयान देने से पहले बांग्लादेश के विषय पर जिस तरह सर्वदलीय बैठक का आयोजन किया है, वह अनुकरणीय है...

पड़ोस से सबक
Pankaj Tomarहिन्दुस्तानTue, 06 Aug 2024 09:59 PM
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बांग्लादेश के घटनाक्रम पर भारत की सतर्कता और समझदारी की सराहना करनी चाहिए। सरकार ने संसद में कोई बयान देने से पहले बांग्लादेश के विषय पर जिस तरह सर्वदलीय बैठक का आयोजन किया है, वह अनुकरणीय है। विपक्ष के लगभग सभी महत्वपूर्ण नेताओं की भी प्रशंसा करनी चाहिए कि सभी ने बैठक में भाग लिया और अपनी-अपनी बात रखी। किसी भी विवादित विषय पर कोई निर्णय लेने से पहले सर्वसम्मति बनाने की चेष्टा सजीव लोकतंत्र का वही गुण है, जिसका अभाव बांग्लादेश में अक्सर उभरता रहा है। किसी भी लोकतांत्रिक देश को ऐसी स्थिति में कतई नहीं फंसना चाहिए, जहां सियासी पार्टियों के बीच दूरियां इस कदर बढ़ जाएं कि फौज दखल देने को मजबूर हो जाए। वाकई अगर बांग्लादेश में सत्ता पक्ष और विपक्ष को अपनी-अपनी सीमाओं का अंदाजा होता, तो यह नौबत नहीं आती। अब ऐसी नौबत आ ही गई है, तो कोशिश होनी चाहिए कि कम से कम खूनखराबा न हो। बहुत अफसोस की बात है कि शेख हसीना के देश से पलायन के बावजूद वहां हिंसा थमी नहीं है और कथित रूप से 100 से ज्यादा लोग मारे गए हैं। 
यह एक बड़ा सवाल है कि वहां छात्रों को अब क्या नाराजगी है? क्या बांग्लादेश में छात्रों के नाम पर असामाजिक तत्वों ने फिर फन फैला लिया है? भारत ने ही नहीं, संयुक्त राष्ट्र ने भी स्पष्ट कहा है कि हिंसा तत्काल रुकनी चाहिए और जल्द से जल्द अंतरिम सरकार का गठन होना चाहिए। सरकार का एक व्यवस्थित ढांचा जब सामने आएगा, तभी उपद्रवियों पर लगाम लगेगी। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने राज्यसभा में बताया है कि  कई जगहों पर अल्पसंख्यकों के व्यवसायों और मंदिरों पर हमले की रिपोर्ट के बाद भारत सरकार बांग्लादेश के अल्पसंख्यक समुदायों की स्थिति को लेकर बहुत चिंतित है। हालांकि, अफवाहों से भी सावधान रहने की जरूरत है। ऐसे अनेक तत्व होंगे, जो इस प्रकरण को सांप्रदायिक रूप देना चाहेंगे। जैसे, एक अफवाह उड़ी थी कि वहां की क्रिकेट टीम के सदस्य लिटन दास के घर पर उपद्रवियों ने हमला बोल दिया है। वास्तव में, बांग्लादेश से आ रही खबरों को दो-तीन बार परख लेने की जरूरत है। अनेक स्थानों पर बांग्लादेशी नागरिक ही अल्पसंख्यकों की रक्षा के लिए खडे़ हो गए हैं। भारतीय विदेश मंत्री ने भी बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए विभिन्न समूहों और संगठनों की पहल का स्वागत किया है।
बेशक, भारत ने शेख हसीना को बांग्लादेश से निकलने में मदद की है, पर विदेश मंत्री ने यह भी बता दिया है कि भारत ने शेख हसीना को संयम बरतने की सलाह बार-बार दी थी और आग्रह किया था कि हालात को बातचीत से सुलझा लें। अफसोस, हसीना ने सलाह पर गौर नहीं किया और अब यूरोप में शरण खोज रही हैं। यूरोपीय देश भी शरण देने से पहले चिंतित हैं, क्योंकि अब उनके यहां भी कट्टरता पैठ गई है। शेख हसीना का पतन वास्तव में उन सभी नेताओं के लिए सबक है, जो विपक्ष या विरोधियों के लिए जगह नहीं छोड़ते हैं। जो लोकतंत्र और चुनाव की इज्जत नहीं करते हैं। आज के समय में सत्ता में बने रहने से ज्यादा जरूरी है- प्रतिकूल परिवेश न बनने देना। इसके बावजूद अगर हालात खिलाफ हो जाएं, तो समय रहते सत्ता से अलग हो जाना ही बड़प्पन की निशानी है। ऐसे बड़प्पन से ही लोकतंत्र की ताकत बढ़ती है और अराजकता पर अंकुश रहता है।  

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