बुलडोजर से आगे
कार्यपालिका और न्यायपालिका, दूसरे शब्दों में कहें, तो प्रशासन और न्यायपालिका में कुछ तनाव हमेशा से रहते आए हैं। प्रशासन मानता है कि व्यवस्था की कुछ ऐसी प्रक्रियाएं हैं, जो डर पैदा करके ही आगे बढ़ाई...
कार्यपालिका और न्यायपालिका, दूसरे शब्दों में कहें, तो प्रशासन और न्यायपालिका में कुछ तनाव हमेशा से रहते आए हैं। प्रशासन मानता है कि व्यवस्था की कुछ ऐसी प्रक्रियाएं हैं, जो डर पैदा करके ही आगे बढ़ाई जा सकती हैं। जबकि, न्यायपालिका मानती है कि जो कुछ भी हो, कानून की प्रक्रिया के तहत ही हो। कई बार प्रशासन ऐसे काम करता है, जिसे तत्काल न्याय कहा जाता है। न्यायपालिका का कहना है कि न्याय करने का काम उसका है, नागरिक प्रशासन का नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को ‘बुलडोजर न्याय’ पर जो टिप्पणियां की हैं, उनमें इसी तनाव की झलक देखी जा सकती है।
अदालत ने इस तरीके को अपनाने की कड़ी निंदा की है। अदालत का कहना है कि कोई किसी जघन्य मामले का आरोपी या दोषी ही क्यों न हो, उसे कानून के दायरे में दंडित करने के दूसरे तरीके हो सकते हैं, लेकिन उसके घर को सिर्फ इसीलिए गिरा दिया जाना किसी भी तरह से वाजिब नहीं कहा जा सकता। हालांकि, सरकारी वकील ने कहा कि ऐसी ही संपत्तियां गिराई गई हैं, जो गैर-कानूनी हैं। दूसरी तरफ, उत्तर प्रदेश सरकार ने शपथ पत्र देकर कहा है कि उसने जो भी अचल संपत्तियां हटाई हैं, वे सब कानून की प्रक्रिया का पालन करते हुए हटाई गई हैं। दरअसल, कई बार ऐसे मामलों में गड़बड़ी किसी और तरह से होती है। गैर-कानूनी अचल संपत्ति तो पूरी तरह कानून की प्रक्रिया का पालन करते हुए हटाई जाती है, लेकिन प्रशासन अपनी पीठ थपथपाने के लिए यह कहता है कि उसने आरोपी को मजा चखा दिया। ऐसे मामलों की मीडिया में भी यही कहानियां चलती हैं। इसी से यह छवि बनती है कि ‘बुलडोजर न्याय’ किया जा रहा है। जरूरी यह है कि ऐसी कार्रवाई करने के लिए सबसे पहले यह बताया जाए कि ढहाई जा रही संपत्ति किस तरह से गैर-कानूनी है और उसके साथ ही, यह भी साफ कर दिया जाए कि संपत्ति को गिराने के लिए किस तरह से कानून की प्रक्रिया का पालन किया गया? अदालत के सामने राजस्थान के उदयपुर का वह मामला भी लाया गया, जिसमें एक स्कूल में छुरेबाजी की घटना हुई और बाद में उस मकान को ढहा दिया गया, जहां वह लड़का रहता था। विडंबना यह कि लड़के के पिता ने वह मकान किराये पर ले रखा था। जस्टिस केवी विश्वनाथ ने कहा कि अगर वह लड़का गलत भी था, तो भी सीधे किसी का घर गिरा देना सही तरीका नहीं है।
भारत सरकार के सॉलिसिटर जनरल के तर्कों और उत्तर प्रदेश सरकार के शपथ पत्र को देखते हुए अदालत ने यह भी कहा कि गैर-कानूनी निर्माण को गिराने या हटाने की प्रक्रिया के लिए देश स्तर पर कुछ स्पष्ट दिशा-निर्देश होने चाहिए। सुप्रीम कोर्ट यदि ऐसे दिशा-निर्देश तैयार करती है, तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए। इससे अभी तक ऐसी कार्रवाई से जो विवाद खड़े होते हैं, वे खत्म किए जा सकेंगे। ठीक यहीं पर एक और मसले को भी उठाया जाना चाहिए। यह बहुत जरूरी है कि तत्काल न्याय के तरीकों को खत्म किया जाए और सभी को अपराध की सजा अदालत की प्रक्रिया से ही मिले, लेकिन हमारी अदालतों में मामले इतने लंबे समय तक चलते हैं और अंतिम फैसला आने में इतनी देरी हो जाती है कि जनता का तबका तत्काल न्याय को ठीक मानने लगता है। इस पर भी कुछ किया जाना जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट की सोमवार की टिप्पणियां उम्मीद हैं। जब बुलडोजर न्याय मामले में अंतिम फैसला आएगा, तब बहुत सारी धुंध साफ हो सकेगी।