खोज से आज तक
कोरोना वायरस के संकेत मानव जाति को 1930 के दशक में ही मिलने लगे थे, लेकिन इस पर सबसे पहला अध्ययन एक महिला वैज्ञानिक डोरोथी हामरे ने किया था। इस वायरस पर उनका पहला शोध पत्र 1966 में प्रकाशित हुआ था,...
कोरोना वायरस के संकेत मानव जाति को 1930 के दशक में ही मिलने लगे थे, लेकिन इस पर सबसे पहला अध्ययन एक महिला वैज्ञानिक डोरोथी हामरे ने किया था। इस वायरस पर उनका पहला शोध पत्र 1966 में प्रकाशित हुआ था, जिसमें उन्होंने इशारा कर दिया था कि यह मनुष्य की श्वसन प्रणाली पर चोट करने वाला घातक वायरस है। डोरोथी पहली वैज्ञानिक थीं, जिन्हें कोरोना प्रजाति के वायरस को अलग करने में कामयाबी मिली थी। इसके कुछ ही दिनों बाद डेविड टायरेल और मैल्कम ब्योने ने भी ऐसी ही कामयाबी हासिल की थी। डेविड टायरेल की ही प्रयोगशाला में जून अलमेदा ने पहली बार शोध करके बताया था कि कोरोना दिखता कैसा है। इस वायरस की संरचना मोटे तौर पर माला की तरह होती है। ग्रीक शब्द ‘कोरोने’ से लातीन शब्द ‘कोरोना’ बना था। ग्रीक में ‘कोरोने’ का अर्थ होता है माला या हार। यह शब्द पहली बार 1968 में इस्तेमाल हुआ, लेकिन तब यह वायरस बहुत खतरनाक नहीं हुआ था।
कोरोना परिवार के वायरस सार्स का खतरा इसी सदी में सामने आया। सार्स सबसे पहले साल 2002-03 में 26 देशों में फैला था और मर्स 2012 में करीब 27 देशों में। यह विडंबना ही है कि जो कोरोना वायरस मर्स सबसे ताकतवर था, वह सबसे कम फैला और जो कोविड-19 सबसे कमजोर है, उसने दुनिया को तड़पा रखा है। मर्स में तीन में से एक मरीज की जान चली जाती है। सार्स से दस में से कोई एक जान गंवाता है, लेकिन कोविड-19 सौ मरीजों में से दो की भी जान नहीं ले रहा है। त्रासद यह कि अभी चिकित्सा विज्ञान के पास तीनों में से किसी का पक्का इलाज नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन अगर बार-बार कह रहा है कि संभव है, कोविड-19 की दवा या वैक्सीन कभी न मिले, तो कोई आश्चर्य नहीं। मुश्किल यह कि कोरोना ही नहीं, लगभग सभी वायरस अपनी प्रजाति बदलते रहते हैं। अमेरिका में कोविड-19 की जो प्रजाति है, ठीक वही भारत में नहीं है, इसीलिए किसी देश में ज्यादा मरीजों की मौत हो रही है और कहीं कम। अमेरिका के वैज्ञानिक भी इससे वाकिफ हैं और उन्हें इसकी दवा खोजने की सबसे ज्यादा जल्दी है।
हालांकि अभी सबसे बड़ा सवाल है, अगर इलाज नहीं मिलेगा, तो क्या होगा? विशेषज्ञों के अनुसार, या तो दवा मिल जाए या फिर इंतजार करना होगा कि दुनिया के 65 प्रतिशत लोगों को एक-एक बार कोरोना हो जाए, जब उन सबके शरीर में कोविड-19 की एंटीबॉडी तैयार हो जाएगी, जब इस वायरस को नया ठौर नहीं मिलेगा, तब संक्रमण में गिरावट आती जाएगी। बोस्टन के वैज्ञानिक डॉक्टर डेन बराउच ने यह दावा किया है कि कोविड-19 का संक्रमण एक बार ठीक होने के बाद दूसरी बार नहीं होता है। बोस्टन में ही वायरोलॉजी और वैक्सीन रिसर्च सेंटर में सात और 25 के समूह में बंदरों पर अलग-अलग किए गए अध्ययन के नतीजे सकारात्मक हैं। जाहिर है, इससे वैक्सीन खोजने वालों को भी बल मिलेगा और इसके साथ ही प्लाज्मा थेरेपी के माध्यम से हो रहा प्रयोग भी विश्वास के साथ आगे बढ़ सकेगा। कोविड-19 पर विजय के लिए महायुद्ध जारी है। खोज में लगे वैज्ञानिक यह भी उम्मीद कर रहे हैं कि इस बीच यह दुश्मन वायरस अपना स्वरूप न बदले और इंसानों के शिकंजे में आ जाए।