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बजट पर सियासत

केंद्रीय बजट 2024 पर भेदभाव का आरोप लगना चिंताजनक और विचारणीय है। बजट घोषणाओं के गुण-दोष पर चर्चा से पहले ही इसके आवंटन को भेदभावपूर्ण ठहराया जा रहा है। विपक्षी गठबंधन के नेताओं ने आज संसद भवन...

बजट पर सियासत
Pankaj Tomarहिन्दुस्तानWed, 24 Jul 2024 10:35 PM
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केंद्रीय बजट 2024 पर भेदभाव का आरोप लगना चिंताजनक और विचारणीय है। बजट घोषणाओं के गुण-दोष पर चर्चा से पहले ही इसके आवंटन को भेदभावपूर्ण ठहराया जा रहा है। विपक्षी गठबंधन के नेताओं ने आज संसद भवन परिसर के अंदर विरोध प्रदर्शन किया और सभी राज्यों के लिए समान व्यवहार की मांग की। इतना ही नहीं, विपक्ष ने सरकार पर बिहार और आंध्र प्रदेश का पक्ष लेने का आरोप लगाया और यह भी कहा गया है कि इन दोनों राज्यों को एक तरह से फिरौती दी गई है। चूंकि केंद्र सरकार बिहार में सत्तारूढ़ जनता दल यूनाइटेड और आंध्र प्रदेश में सत्तारूढ़ तेलुगु देशम पार्टी जैसे घटकों के समर्थन पर निर्भर है, इसीलिए इन दोनों राज्यों पर ज्यादा कृपा की गई है। क्या वाकई दूसरे राज्यों की उपेक्षा की जा रही है? क्या बजट को ऐसे देखने का सियासी नजरिया बिल्कुल सही है? इसमें कोई शक नहीं कि पिछले बजटों में कुछ राज्यों को साल-दर-साल सिलसिलेवार ढंग से ज्यादा निवेश प्राप्त हुआ है और ऐसे राज्यों के नेता अगर अब अपने सूबे से भेदभाव का आरोप लगा रहे हैं, तो दुखद ही कहा जाएगा।
खासतौर पर बिहार के प्रति जो दुर्लभ सदाशयता दिखाई गई है, उसे निशाना बनाना दुखद ही नहीं, चिंताजनक है। बिहार विकास के सबसे निचले पायदान पर रहा है, वहां पर विकास योजनाओं और कल-कारखानों का अभाव है, तो बिहार से युवाओं को रोजी-रोटी के लिए दशकों से पलायन करना पड़ रहा है। अगर पहले के बजटों में समान व्यवहार हुआ होता, तो कर्नाटक राज्य बिहार की तुलना में पांच गुना से ज्यादा अमीर कैसे हो जाता? बेशक, पलायन रोकने का एकमात्र उपाय है कि पिछडे़ राज्यों में बड़े पैमाने पर निवेश किया जाए। ऐसा भी नहीं है कि सबसे पिछड़े राज्य को ही सब कुछ दे दिया गया हो। अगर इस राज्य को तमाम परियोजनाओं के लिए 59 हजार करोड़ रुपये मिले हैं, तो इस राज्य से लगभग चार गुना अमीर महाराष्ट्र को अकेले एक बंदरगाह परियोजना के लिए 76 हजार करोड़ रुपये दिए गए हैं। आंध्र प्रदेश के लिए अलग राजधानी का विकास जरूरी है, यह बात पूरा देश जानता है, अत: इस राज्य को 15 हजार करोड़ रुपये देकर कतई गलती नहीं की गई है। वैसे, यह कोई पहली बार नहीं है कि बजट आवंटन में सियासत झलक रही है। गौर कीजिए, अनेक राज्यों ने बहुत लड़कर केंद्र सरकार से बहुत कुछ लिया है और जो राज्य लड़ नहीं पाए, वे पिछड़ गए हैं। हां, भेदभाव का आरोप तब पुख्ता होता, जब तमाम भाजपा शासित राज्यों को ज्यादा आवंटन मिलता और अन्य राज्य वंचित रह जाते। 
बुधवार को संसद में विपक्ष के हमले से जहां केंद्र सरकार को सबक लेने की जरूरत है, वहीं बिहार और आंध्र प्रदेश राज्य के नेताओं को भी कुछ सीखना और संभलना होगा। किसी राज्य के पिछड़ेपन के लिए वहां की स्थानीय राजनीति प्राथमिक रूप से जिम्मेदार होती है। केंद्र सरकार को जहां समग्रता में सभी राज्यों के प्रति न्याय करते हुए अपने बजट को तार्किक ठहराना चाहिए, वहीं निशाने पर आए राज्यों की सरकारों को जान लेना चाहिए कि बजट और ऐसी तरजीह के मौके बार-बार हाथ नहीं आते हैं। बजट में मिली पाई-पाई का उपयोग अपने राज्य को चमकाने में करना होगा। साफ तौर पर तेज तरक्की करते हुए दिखना और हर स्तर पर अपने बजट को बढ़ाने-बचाने के लिए लड़ना कतई गलत बात नहीं है। किसी भी पिछड़े राज्य के नेताओं को यह काम पूरी तैयारी और मुखरता के साथ करना चाहिए।  

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