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घर ही दफ्तर

दो सप्ताह पहले गुड़गांव में पेटीएम का एक कर्मचारी जब इटली से लौटा, तो कुछ ही समय में पता चल गया कि वह कोरोना वायरस से संक्रमित है। अचानक ही संक्रमण का डर पैदा हुआ और कंपनी ने तुरंत ही कार्यालय को बंद...

घर ही दफ्तर
हिन्दुस्तानSun, 22 Mar 2020 11:54 PM
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दो सप्ताह पहले गुड़गांव में पेटीएम का एक कर्मचारी जब इटली से लौटा, तो कुछ ही समय में पता चल गया कि वह कोरोना वायरस से संक्रमित है। अचानक ही संक्रमण का डर पैदा हुआ और कंपनी ने तुरंत ही कार्यालय को बंद करके ज्यादातर कर्मचारियों से कहा कि वे ऑफिस आने की बजाय अपने घर से ही ऑनलाइन काम करें। लेकिन पेटीएम ऐसा करने वाली अकेली ऐसी कंपनी नहीं है। अचानक ही पूरी दुनिया में ऐसा होने लग गया है। भारत में भी बहुत सारी कंपनियां यही कर रही हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस चलन को अपनाने पर जोर दिया है। घर से ही काम करने यानी वर्क फ्रॉम होम की अवधारणा कोई नई नहीं है। सूचना तकनीक का प्रसार होने और ब्राडबैंड के घर-घर पहंुचने के बाद इसकी चर्चा अक्सर ही होती रही है। उत्पादकता बढ़ने और प्रदूषण से लेकर ट्रैफिक जाम कम होने तक इसके कईंं फायदे भी गिनाए जाते रहे हैं। कुछ एक छोटे मोटे प्रयोग भले ही हुए हों लेकिन इसे बड़े पैमाने पर कभी नहीं अपनाया गया। कोरोना वायरस के दबाव में अब जब इसे अपनाया गया है तो यह माना जाने लगा है कि अब इसका व्यवहारिक पक्ष जल्द ही कंपनियों को समझ में आएगा और वे इसकी संस्कृति को सीखेंगी। उद्योगपति आनंद महिंद्रा का कहना है इससे घर से काम करने के चलन में तेजी आएगी।

वर्क फ्रॉम होम के अब तक जो अध्ययन हुए हैं, वे कईं दिलचस्प बाते बताते हैं। स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर निकोलस ब्लूम ने चीन की एक ऐसी ट्रैवल एजेंसी की कार्य संस्कृति को करीब से परखा जिसके ज्यादातर कर्मचारी घर से ही काम करते हैं। उन्होंने पाया कि घर से काम करने वाले कर्मचारियों की कुशलता दफ्तर जाकर काम करने वाले कर्मचारियों के मुकाबले 13 फीसदी अधिक पाई गई। लेकिन अध्ययन ने यह भी बताया कि घर से काम करने के मामले में सब कुछ अच्छा नहीं है। रचनात्मकता और इनोवेशन के मामले मेंं ऐसे कर्मचारी दफ्तर जाने वाले कर्मचारियों से पिछड़ते दिखते हैं। इससे एक नतीजा यह भी निकला कि जब लोग एक ही कमरे में काम करते हैं तो समस्याओं का समाधान वे ज्यादा अच्छी तरह निकाल पाते हैं। मशहूर तकनीकी कंपनी एपल के संस्थापक स्टीव जॉब इसके विरोधी थे। उनका कहना था कि नई चीजें तब इजाद होती हैं जब आप अचानक किसी की सीट पर पहंुच जाते हैं और पूछते हैं कि तुम क्या कर रहे हो?

एक और बात यह भी मानी जाती है कि अक्सर कार्यस्थल ही वह जगह होती है जहां हम एक सामाजिक नेटवर्क का हिस्सा बनते हैं। आधुनिक मुहल्लों में अब ऐसे नेटवर्क नहीं बनते और एकल परिवार होने की वजह से रिश्तेदारी वाली समाजिकता भी लगातार कम होती जा रही है। लेकिन ये सब सामान्य स्थितियों के तर्क हैं, किसी महामारी के दौरान इन पर नहीं सोचा जा सकता। और अभी यह दावा भी नहीं किया जा सकता कि महामारी के दबाव में जो कार्यशैली अपनाई जा रही है वह बाद में स्थिति सामान्या होने पर भी इसी तरह जारी रहेगी। पर यह उम्मीद जरूर है कि कोरोना वायरस का खतरा हमारी कार्य संस्कृति को एक नई उदारता जरूर दे सकता है, और बहुत से परंपरागत दबावों से मुक्ति भी। इससे हमारे कार्यालयों की सदियों से चली आ रही संस्कृति तो कुछ हद तक बदल ही सकती है।

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