कश्मीर से पैगाम
जम्मू-कश्मीर में पहले चरण का शानदार मतदान कीर्तिमान होने के साथ ही, दुनिया को एक खुशनुमा पैगाम भी है। घाटी के जो इलाके कभी आतंकियों के मजबूत ठिकाने हुआ करते थे, वहां 61 प्रतिशत से ज्यादा मतदान...
जम्मू-कश्मीर में पहले चरण का शानदार मतदान कीर्तिमान होने के साथ ही, दुनिया को एक खुशनुमा पैगाम भी है। घाटी के जो इलाके कभी आतंकियों के मजबूत ठिकाने हुआ करते थे, वहां 61 प्रतिशत से ज्यादा मतदान भारतीय लोकतंत्र की बड़ी विजय है। उन तमाम आम और खास हस्तियों को इसके लिए धन्यवाद देना चाहिए, जिन्होंने इस चुनाव और ऐसे मतदान को मुमकिन बनाया। आज से कुछ साल पहले डोडा, किश्तवाड़, अनंतनाग, कुलगाम, रामबन, शोपियां इत्यादि संवेदनशील क्षेत्रों में ऐसे चुनाव के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था। केवल पुलवामा में अपेक्षाकृत कम 46 प्रतिशत मतदान हुआ है, बाकी सभी प्रभावित क्षेत्रों में 55 प्रतिशत से ज्यादा मतदान किसी खुशखबरी से कम नहीं है। किश्तवाड़ तो 80.14 प्रतिशत के मतदान के साथ एक मिसाल है। दस साल में पहली बार जम्मू-कश्मीर के लोगों को विधानसभा चुनाव में मतदान का मौका मिला है और लोगों ने ऐसे बढ़-चढ़कर भाग लिया है कि कश्मीर घाटी की एक अलग ही छवि उभरने लगी है। बड़ी संख्या में महिलाओं ने घर से निकलकर मतदान किया है। जाहिर है, लोग सुरक्षित और विकसित भविष्य के लिए लालायित हैं। उन्हें मशीनगन नहीं, बल्कि मतदान पर ज्यादा भरोसा है।
बीते पांच वर्ष में कश्मीर घाटी में जो स्थितियां बनी हैं, उसके लिए सरकार को अवश्य श्रेय देना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को श्रीनगर की चुनावी रैली में विपक्षी दलों पर निशाना साधते हुए कहा कि वे जम्मू-कश्मीर के युवाओं के हाथों में पत्थर थमाते थे, उनका भविष्य बर्बाद करते थे। वाकई, आज घाटी में भी स्कूल, कॉलेज खुल रहे हैं और पढ़ाई के लिए युवाओं में लालसा बढ़ी है। जम्मू-कश्मीर के खिलाफ काम कर रही ताकतों को मुंहतोड़ जवाब मिलना समय की असली मांग है। यह जम्मू-कश्मीर के लोगों के साथ खड़े होने का समय है और प्रधानमंत्री ने वहां के युवाओं के लिए रोजगार का इरादा, वादा जाहिर करके बिल्कुल सही संकेत दिया है। जम्मू-कश्मीर के लोगों का दिल जीतना जरूरी है और इसके लिए उनकी बेहतरी हेतु हर संभव कदम उठाने ही चाहिए। एक समय था, जब कश्मीर के लाल चौक पर तिरंगा फहराने में भी दिक्कत होती थी, खुद वहां दिग्गज नेता दूसरों को चुनौती देते थे कि लाल चौक पर तिरंगा फहराकर दिखाओ, पर आज जज्बात और हालात, दोनों बदल गए हैं। जिन चीजों के बारे में सोचा जाता था कि ऐसा कश्मीर में कभी नहीं होगा, वैसा अब होने लगा है। गौर कीजिए, जिन इलाकों में अनुच्छेद-370 को हटाने का सबसे ज्यादा विरोध हुआ था, उन इलाकों ने भारी मतदान करके अपना नया इरादा जता दिया है। अब उम्मीद बढ़ गई है कि मतदान के अगले दो चरणों में और ज्यादा संख्या में लोग घरों से निकलकर मतदान करेंगे, जिसका पैगाम दुनिया में जाएगा।
पहले चरण के अच्छे मतदान के लिए सबसे ज्यादा श्रेय आम लोगों को देना चाहिए, जिन्होंने अपने मताधिकार को साकार किया है। इसके बाद सुरक्षा और रक्षा बलों की सबसे ज्यादा तारीफ होनी चाहिए। एक समय था, जब आतंकी मारे जाते थे, तो घाटी में खूब चर्चा होती थी, पर किसी सुरक्षा या रक्षाकर्मी का जब खून बहता था, तब खामोशी-सी छा जाती थी। इसके बावजूद पुलिस के जवानों और फौजियों ने आतंकवाद का पुरजोर मुकाबला किया, जिसके सुखद नतीजे आज मतदान के रूप में दुनिया देख रही है। कश्मीर को अलगाववाद और हिंसा की अंधी गलियों से हमेशा के लिए बाहर निकल आना चाहिए।