फोटो गैलरी

Hindi News ओपिनियन संपादकीयसामुदायिक संक्रमण

सामुदायिक संक्रमण

भारत में केंद्र सरकार ने अंतत: कम्युनिटी ट्रांसमिशन को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया। सरकार का कहना है कि पूरे देश में नहीं, पर कुछ जिलों में कम्युनिटी ट्रांसमिशन की स्थिति है। वैसे यह विवाद पुराना...

सामुदायिक संक्रमण
हिन्दुस्तान Mon, 19 Oct 2020 10:54 PM
ऐप पर पढ़ें

भारत में केंद्र सरकार ने अंतत: कम्युनिटी ट्रांसमिशन को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया। सरकार का कहना है कि पूरे देश में नहीं, पर कुछ जिलों में कम्युनिटी ट्रांसमिशन की स्थिति है। वैसे यह विवाद पुराना है। जून की शुरुआत में ही दिल्ली में यह बात सामने आ गई थी कि कोरोना के 50 प्रतिशत से ज्यादा मामलों में स्रोत का पता नहीं चल रहा है। दिल्ली सरकार ने तब एक तरह से कोरोना के कम्युनिटी ट्रांसमिशन की घोषणा कर दी थी, लेकिन कायदे से यह काम केंद्र सरकार का है और केंद्र ने तब इससे इनकार कर दिया था। अब इस मोड़ पर आंशिक रूप से सामुदायिक संक्रमण को स्वीकार करने का कोई खास मतलब नहीं रह गया है। कोरोना का डर, खतरा भले ही थोड़ा कम हुआ है, लेकिन उसका फैलाव इतना बढ़ गया है कि ज्यादातर मामलों में स्रोत का पता लगाना अब आसान नहीं। अब कोई अगर यह माने कि संक्रमण केवल बाहर से आने वालों को या बाहर से आने वालों से हो रहा है, तो शायद स्वीकार करने में दिक्कत आएगी। 
दिल्ली सरकार के बाद केरल और हाल ही में पश्चिम बंगाल सरकार ने भी सामुदायिक संक्रमण को माना है, शायद इसी दबाव में केंद्र सरकार को भी आंशिक रूप से मानना पड़ा है। हालांकि इस सच को पूरी तरह से स्वीकार करने में कोई हर्ज नहीं। हां, यह सही है, देश के अनेक इलाकों में संक्रमण तेज नहीं है और लोग खतरा महसूस नहीं कर रहे हैं, न फिजिकल डिस्टेंसिंग की पालना हो रही है और न कोई मास्क पहन रहा है, लेकिन वैसे इलाकों में भी कभी न कभी कोरोना का कोई न कोई मामला पहुंचा ही है। किसी को भी यह लग सकता है, पूरे देश में कोरोना का कहर समान रूप से नहीं है, इसलिए संभव है, सामुदायिक संक्रमण की बात तकनीकी स्तर पर न मानी जाए। अव्वल तो अब सरकार या डॉक्टर भी कोरोना संक्रमण की शृंखला नहीं देख रहे। जिन इलाकों में ज्यादा मरीज हैं, वहां इस शृंखला की पड़ताल और उसे तोड़ने की कोशिश अब पहले जैसी नहीं हो रही है। एक समय था, जब कहीं एक भी मामला सामने आता था, तब उसकी शृंखला खोजी जाती थी। शृंखला खोजने की बाध्यता से हम शायद मई महीने में ही निकल आए। अनेक मंत्रियों और नेताओं की कोरोना की वजह से मौत हुई है या अनेक बीमार भी हुए हैं, पर शायद उनके मामले में भी कोरोना स्रोत या शृंखला की खोज नहीं हो रही है। ऐसे में, सामुदायिक संक्रमण की आंशिक घोषणा औपचारिकता मात्र है। वह न भी हो, तब भी इतिहास में यही लिखा जाएगा कि भारत में कोरोना महामारी फैली थी और अक्तूबर महीने तक ही 75 लाख से ज्यादा लोग कोविड-19 वायरस से संक्रमित हो गए थे। 
दुनिया के दूसरे देशों में भी इस बार सामुदायिक संक्रमण पर ज्यादा जोर न देते हुए वायरस के प्रसार को रोकने और इलाज तेज करने की कोशिश हुई है और भारत में भी यही हो रहा है। सरकारें अगर नहीं चाहतीं कि लोगों में कोई दहशत फैले, तो यह गलत भी नहीं है। सरकार के दूसरे कदमों से ही लोगों को महामारी की गंभीरता का अंदाजा लगाना चाहिए। कोरोना से बचने के दिशा-निर्देश एकदम स्पष्ट हैं। हर किसी को इतनी सावधानी तो सुनिश्चित करनी ही चाहिए कि किसी भी सूरत में कोरोना न हो और यह मानकर अपना बचाव करना चाहिए कि कोरोना कहीं भी हो सकता है।

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें
अगला लेख पढ़ें