मतदान का दूसरा चरण
पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में मतदान का दूसरा चरण भी संपन्न हो गया। शुक्रवार को मध्य प्रदेश की सभी 230 सीटों पर एक साथ और छत्तीसगढ़ में दूसरे चरण की 70 सीटों पर मतदान हुआ। इसके बाद अब राजस्थान...

पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में मतदान का दूसरा चरण भी संपन्न हो गया। शुक्रवार को मध्य प्रदेश की सभी 230 सीटों पर एक साथ और छत्तीसगढ़ में दूसरे चरण की 70 सीटों पर मतदान हुआ। इसके बाद अब राजस्थान में 25 नवंबर को और तेलंगाना में 30 नवंबर को मतदान शेष है, 3 दिसंबर को जनता का फैसला सामने आ जाएगा। बहरहाल, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में 7.20 करोड़ से अधिक लोगों ने कुल 300 सीटों के लिए मतदान किया है। छत्तीसगढ़ में 7 नवंबर को पहले चरण के मतदान में 70 प्रतिशत से ज्यादा मतदान हुआ था और शुक्रवार को भी अंतिम मतदान प्रतिशत उसके ज्यादा दूर नहीं रहेगा। मध्य प्रदेश में तो मतदाताओं के उत्साह का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दोपहर तीन बजे तक 60 प्रतिशत से ज्यादा मतदान हो चुका था। उम्मीद है, दोनों ही राज्यों में मतदान में सुधार का सुखद का अनुभव होगा। वैसे, मध्य प्रदेश में कहीं-कहीं हिंसा दुखद है। ऐसे इलाकों में भविष्य में सावधानी बरतना जरूरी है।
मध्य प्रदेश के साथ ही छत्तीसगढ़ में भी भाजपा और कांग्रेस के बीच ही मुख्य मुकाबला है। मध्य प्रदेश में भाजपा अपनी सरकार बचाने की कोशिश में है, तो छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सत्ता अपने पास बनाए रखने के लिए प्रयासरत है। मध्य प्रदेश के साथ ही छत्तीसगढ़ भी एक ऐसा प्रदेश है, जहां भाजपा और कांग्रेस के मतदान प्रतिशत के बीच ज्यादा अंतर नहीं रहता है और अनेक बार तो सीटों का अंतर भी बहुत कम होता है। जमीनी आधार पर अगर देखें, तो जितनी मजबूत भाजपा है, लगभग उतनी ही मजबूत कांग्रेस है। मतदान प्रतिशत में थोड़ा भी अगर इधर-उधर हुआ, तो सीटों में बड़ा अंतर दिख सकता है। राजस्थान में भी पिछली बार सीटों का अंतर ज्यादा नहीं था। खैर, अगर राजस्थान, मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का वर्चस्व दिखा, तो इससे विपक्षी गठबंधन को मजबूती मिलेगी और इसका फायदा कांग्रेस के साथ पूरे विपक्षी गठबंधन को अन्य राज्यों में भी होगा। अगर भाजपा मध्य प्रदेश में फिर जीत जाए और कांग्रेस से एक राज्य भी छीन ले, तो यह विपक्षी गठबंधन के लिए बुरा संकेत होगा। विधानसभा चुनाव के चाहे जो नतीजे हों, लोकसभा चुनाव में तीखा मुकाबला तय है। भाजपा ने इन विधानसभा चुनावों में पूरा जोर लगा रखा है, क्योंकि उसे पता है कि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में जीतना कितना महत्वपूर्ण है।
आमतौर पर कहीं भी भारी मतदान की स्थिति नहीं है, और भारी मतदान की स्थिति में यह सामान्य आकलन किया जाता है कि सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ लोग नाराज हैं। वास्तव में, चुनावों के प्रति लोगों को जितना स्वाभाविक लगाव होना चाहिए, उतना नहीं है। मतदान के लिए खूब प्रेरित करने के बावजूद मतदान 80 प्रतिशत को नहीं छू पा रहा है। लोक-लुभावन घोषणाओं की भरमार भी एक संकेत है कि जीत के प्रति कोई भी दल आश्वस्त नहीं है और इसीलिए मतदाताओं को रिझाने का कोई भी प्रयास हाथ से जाने नहीं देना चाहता। खास बात यह भी है कि इन चुनावों में घोषणा की जगह गारंटी शब्द का इस्तेमाल ज्यादा हुआ है। शुक्रवार को तेलंगाना में कांग्रेस ने चुनावी घोषणापत्र जारी करते हुए कहा है कि सभी छह गारंटी को पहली कैबिनेट बैठक में ही लागू कर दिया जाएगा। निस्संदेह, हमारी राजनीति अब कोरे कागजी वादों-आश्वासनों से आगे निकलकर ठोस गारंटी तक पहुंच गई है। अब लोगों ने किस पर विश्वास किया, यह तो 3 दिसंबर को पता चलेगा, सबको इंतजार है।
