जीवन से खिलवाड़
आत्महत्या की हर घटना झकझोर जाती है, पर जब कोई प्रतिभावान युवा अपनी जान लेता है, तो यह न केवल त्रासद, बल्कि पूरे देश-समाज के लिए नुकसानदायक बात है। बड़े दुख की बात है कि दिल्ली में मौलाना आजाद मेडिकल...
आत्महत्या की हर घटना झकझोर जाती है, पर जब कोई प्रतिभावान युवा अपनी जान लेता है, तो यह न केवल त्रासद, बल्कि पूरे देश-समाज के लिए नुकसानदायक बात है। बड़े दुख की बात है कि दिल्ली में मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज के 25 वर्षीय स्नातकोत्तर मेडिकल छात्र को उसके कमरे में मृत पाया गया। प्रथम दृष्टया, ऐसा लग रहा है कि छात्र ने फांसी लगाकर आत्महत्या की है, लेकिन पुलिस को व्यापकता में जांच करनी चाहिए और हर आशंका को परखना चाहिए। जानना जरूरी है कि आखिर एक टॉपर छात्र ऐसे मुकाम पर कैसे पहुंच गया? वह रेडियोलॉजी का द्वितीय वर्ष का छात्र था और उसे बेहतरीन विशेषज्ञ डॉक्टर बनना था। लोग यह भूले नहीं थे कि पंजाब का यह छात्र साल 2017 में राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (एनईईटी या नीट) का टॉपर था। उसके पिता सरकारी स्कूल के प्रिंसिपल हैं और छोटा भाई भी मेडिकल की पढ़ाई कर रहा है। जिस परिवार ने अपना होनहार खोया है, उसके साथ सबकी संवेदना होनी चाहिए।
ऐसी घटनाएं समाज को विचलित कर देती हैं। समाज विज्ञानियों और चिकित्सकों को मिलकर अध्ययन करना चाहिए। ध्यान रहे, दिल्ली में ही 27 अगस्त को ओल्ड रेजिडेंट डॉक्टर हॉस्टल में एक 20 वर्षीय मेडिकल छात्र का शव मिला था। छात्रों के बीच भी यह सवाल बार-बार उठ रहा होगा। क्या निराशा इतनी बढ़ गई है कि अपनी जीवन में पढ़ाई के झंडे गाड़ने वाले छात्रों को भी अपना भविष्य स्याह लग रहा है? इस साल फरवरी के महीने में यह आंकड़ा सामने आया था कि पिछले पांच वर्षों में कम से कम 122 मेडिकल छात्रों ने आत्महत्या की है, जिनमें से 64 एमबीबीएस में और 58 स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों अध्ययनरत थे। यह संख्या कम नहीं है। एक भावी चिकित्सक को ऊर्जा और उत्साह से भरपूर होना चाहिए, क्योंकि उसे लोगों की सेवा के लिए समर्पित होना है। उसे चिकित्सक बनने का मौका मिला है और अच्छे चिकित्सकों को लोग भगवान की तरह आदर देते हैं। सम्मानजनक जिंदगी की ओर जा रहे छात्रों के दिलोदिमाग में निराशा का एक कतरा नहीं होना चाहिए, पर हर महीने औसतन दो मेडिकल छात्र आत्महत्या कर लेते हैं?
राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग ने इस साल फरवरी में यह भी बताया था कि पांच साल में 1,270 मेडिकल छात्रों ने बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी। एक और तथ्य गौरतलब है कि पढ़ाई छोड़ने वालों में से 153 विद्यार्थी एमबीबीएस कर रहे थे और 1,117 ने स्नातकोत्तर के दौरान पढ़ना छोड़ दिया। मतलब, विशेषज्ञ चिकित्सक बनने का मौका भी हाथ से निकलने दिया जा रहा है? क्या चिकित्सा शिक्षा का ध्यान रखने वाली जिम्मेदार संस्थाओं ने इन तथ्यों पर गहराई से गौर किया है? बेशक, छात्रों पर विशेष ध्यान देने की जरूरत बढ़ती जा रही है। यह होनहार सिख छात्र भी शायद आत्महत्या न करता, अगर उसके पास संस्थान के होस्टल की सुविधा होती। वह अलग कमरा लेकर रह रहा था, तो हो सकता है, अकेलेपन की वजह से अवसाद में चला गया हो। आज छात्रों के सामने समस्याओं का अंबार है। ज्यादातर शिक्षा संस्थान छात्रों की मूलभूत सुविधाओं और मनोदशा से अंजान बने रहते हैं। ऐसे में, छात्रों को अपनी छोटी-छोटी जरूरतों को पूरा करने के साथ ही अपनी मनोदशा को भी मजबूत रखना पड़ता है। आज शिक्षा संस्थानों के लिए ही नहीं, यह सरकार और समाज के लिए भी विशेष रूप से अपने घर-परिवार से दूर अकेले रहने वाले छात्रों की फिक्र का समय है।