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कनाडा में कठिनाई 

अलगाववादियों का एक समूह कनाडा में लगातार भारतीयों की चिंता की बड़ी वजह बना हुआ है। वैंकूवर में भारतीय वाणिज्य दूतावास ने एक शिविर का आयोजन किया था। इस शिविर में कनाडा में रह रहे अवकाश प्राप्त...

कनाडा में कठिनाई 
Pankaj Tomarहिन्दुस्तानThu, 16 Nov 2023 10:49 PM
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अलगाववादियों का एक समूह कनाडा में लगातार भारतीयों की चिंता की बड़ी वजह बना हुआ है। वैंकूवर में भारतीय वाणिज्य दूतावास ने एक शिविर का आयोजन किया था। इस शिविर में कनाडा में रह रहे अवकाश प्राप्त भारतीयों को जीवन प्रमाणपत्र दिया जा रहा था, मगर खालिस्तान समर्थक तत्वों ने इस शिविर के खिलाफ जो विरोध प्रदर्शन किया है, उसकी जितनी निंदा की जाए, कम होगी। भारत में शासकीय सेवाओं में रहे बहुत से लोग सेवानिवृत्त होने के बाद कनाडा में रह रहे हैं। जीवन प्रमाणपत्र हासिल करने के लिए उनका भारत आना आसान नहीं है, ऐसे में, भारतीय दूतावास शुरू से ही ऐसे शिविरों का आयोजन करता आया है, ताकि विदेश में रह रहे बुजुर्गों को किसी परेशानी का सामना न करना पड़े। खास बात यह है कि यह शिविर ब्रिटिश कोलंबिया के एबॉट्सफोर्ड में खालसा दीवान सोसायटी के गुरुद्वारे में आयोजित था। शिविर की सूचना जैसे ही फैली, वहां सिखों का एक समूह जुट गया और भारतीय दूतावास के अधिकारियों के लिए मुसीबत खड़ी हो गई। खैर, किसी तरह से वहां से दूतावास के अधिकारियों को पुलिस सुरक्षा में निकाल लिया गया, पर ऐसा कोई भी घटनाक्रम बहुत अफसोसनाक है। 

भारतीय दूतावास की ओर से पहले भी यह चिंता जताई गई थी कि प्रदर्शनकारी सामान्य कामकाज में भी बाधा पहुंचाने लगे हैं। यह ज्यादा चिंता की बात है कि कनाडा सरकार अलगाववादियों के प्रति जरूरत से ज्यादा उदार है। इसका नतीजा यह है कि खालिस्तान समर्थक तत्वों ने भविष्य में भी ऐसी गतिविधियों को बाधित करने की धमकी दी है। अलगाववादी समूह ‘सिख फॉर जस्टिस’ ने पूरे दुस्साहस के साथ कहा है कि जहां भी भारत के अधिकारी जाएंगे, खालिस्तान समर्थक तत्व उन्हें जवाबदेह ठहराने की कोशिश करेंगे। भारतीय अफसरों को घेरने की यह साजिश वास्तव में भारत के खिलाफ किया जा रहा एक गंभीर अपराध है। ऐसे दिग्भ्रमित भारत-शत्रुओं की पहचान करना जरूरी है, ताकि कनाडा सरकार पर कदम उठाने के लिए पर्याप्त दबाव बनाया जा सके। दरअसल, अलगाववादियों की यह कोशिश है कि भारतीय राजनयिकों का स्थानीय लोगों के साथ संपर्क टूट जाए। जब संपर्क टूट जाएगा, तब कनाडा में उनकी जमीन मजबूत हो जाएगी। 

अलगाववादियों की यह साजिश न सिर्फमुर्खतापूर्ण, बल्कि इतिहास व वर्तमान के विरुद्ध है। आज दुनिया का शायद ही कोई ऐसा बड़ा देश है, जो भारत से न जुड़ा हो। जिस देश में भारतीय मूल के लाखों लोग रहते हों, वह देश भला भारत से संपर्क कैसे तोड़ सकता है? कुल मिलाकर, जिस तरह से नई दिल्ली पर दबाव बढ़ाया जा रहा है, उससे दिग्भ्रमित लोगों को कोई लाभ नहीं होगा। ये लोग भारत और इसके राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करके खुद के लिए ही मुसीबतें बढ़ा रहे हैं। अपने विरुद्ध ऐसी अलगाववादी और नफरती सोच को कोई भी देश स्वीकार नहीं कर सकता। अत: कनाडा को भी जमीनी सच्चाइयों की पृष्ठभूमि में तार्किक ढंग से सोचना चाहिए। अगर वहां की सरकार अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर भारत-विरोध को हवा देना चाहती है, तो हमें हरसंभव तरीके से अपना विरोध जताना चाहिए। यहां सवाल कनाडा की आंतरिक राजनीति का नहीं है, बल्कि भारत की संप्रभुता व सम्मान पर प्रहार का है। कनाडा में रह रहे भारतीयों को भी सजग रहना चाहिए। चंद अलगाववादी माहौल खराब करना चाहते हैं, तो स्वयं कनाडा सरकार को समय रहते यथोचित पहल करनी चाहिए।  

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