फोटो गैलरी

Hindi News ओपिनियन संपादकीयराजस्थान का सत्ता संग्राम

राजस्थान का सत्ता संग्राम

देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस जिन राज्यों से अपने वर्तमान के लिए थोड़ी सांत्वना और भविष्य की खातिर कुछ राजनीतिक साहस बटोर सकती थी, वहां भी संगठन और सरकार के भीतर की खींचतान उसकी उम्मीदों पर पानी...

राजस्थान का सत्ता संग्राम
हिन्दुस्तान Tue, 14 Jul 2020 10:28 PM
ऐप पर पढ़ें

देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस जिन राज्यों से अपने वर्तमान के लिए थोड़ी सांत्वना और भविष्य की खातिर कुछ राजनीतिक साहस बटोर सकती थी, वहां भी संगठन और सरकार के भीतर की खींचतान उसकी उम्मीदों पर पानी फेरती दिख रही है। मध्य प्रदेश के बाद अब राजस्थान में भी पार्टी की अंदरूनी कलह अपने चरम पर है। वहां भी एक युवा नेता की बगावत ने उसकी राज्य सरकार के भविष्य पर फिलहाल सवाल खड़ा कर दिया है। गहलोत सरकार का क्या होगा, यह तो राजभवन और आगे के घटनाक्रमों पर निर्भर करेगा, मगर कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने जिन शब्दों में सचिन पायलट के खिलाफ कार्रवाई का एलान किया, उससे यह बिल्कुल साफ हो गया है कि सचिन के प्रति पार्टी नेतृत्व की सहानुभूति खत्म हो चुकी है और अब गेंद पूरी तरह से उनके ही पाले में धकेल दी गई है। सचिन के साथ उनके दो बेहद करीबी मंत्रियों को भी सरकार से बाहर कर दिया गया है।

मध्य प्रदेश और राजस्थान, दोनों जगहों पर चुनाव परिणाम के बाद मुख्यमंत्री के चयन में कांग्रेस नेतृत्व को खासी मशक्कत करनी पड़ी थी। तब कमलनाथ और अशोक गहलोत में भरोसा जताकर पार्टी ने यह संदेश देने की कोशिश की थी कि लोकसभा चुनाव सामने है, और ये दोनों अनुभवी नेता पार्टी के लिए उपयोगी साबित होंगे। मगर दोनों ही राज्यों में ये नेता इस कसौटी पर खरा नहीं उतरे। ऐसे में, युवा नेताओं की महत्वाकांक्षाओं का फिर से जोर मारना लाजिमी था। मगर आम चुनाव में मिली हार से निराश युवा नेताओं को सही दिशा देने की बजाय पार्टी शीर्ष स्तर पर खुद ही दिशाहीन नजर आने लगी। राहुल गांधी के पार्टी अध्यक्ष पद छोड़ने का भी इन युवा नेताओं में अच्छा संदेश नहीं गया। कर्नाटक और मध्य प्रदेश में सरकार गंवाने के बाद पार्टी नेतृत्व को अधिक सक्रियता के साथ संगठन की कमजोर कड़ियों को कसने की जरूरत थी। मगर राजस्थान का ताजा घटनाक्रम बता रहा है कि अभी भी विभिन्न स्तरों पर पार्टी में संवादहीनता की स्थिति है।    

कांग्रेस के भीतर जो संकट आज दिख रहा है, वह दरअसल भारतीय लोकतंत्र का संकट बन चुका है। लगभग सभी बडे़ राजनीतिक दलों में विधायकों की पसंद के ऊपर अब आलाकमान की इच्छा को तरजीह मिलने लगी है। जब तक आलाकमान मजबूत स्थिति में हो, तब तक क्षत्रप अपनी महत्वाकांक्षाओं को दबाए-छिपाए रखते हैं, पर उसके कमजोर पड़ते ही सब ताल ठोकने लग जाते हैं। इस हालत के लिए भी कांग्रेस किसी अन्य दल को दोष नहीं दे सकती। इसके नौजवान जमीनी नेता जिस तरह पार्टी से एक-एक कर किनारा करते जा रहे हैं, या फिर राजनीतिक रूप से हाशिये पर धकेले जा रहे हैं, क्या इसके बावजूद वह बेहतर कल के सपने देख सकती है? और वह भी तब, जब उसके सामने नरेंद्र मोदी की भाजपा है? कांग्रेस को अपना घर दुरुस्त करने की जरूरत है। एक ऐसे वक्त में, जब राजस्थान की जनता को अपनी सरकार से चरम प्रशासनिक सक्रियता की दरकार है, वह रिजॉर्ट और राजभवन के बीच परेड कर रही है। वहां की जनता के प्रति सबसे अधिक जवाबदेही कांग्रेस पार्टी की बनती है, आखिरकार उसने सत्ता उसे ही सौंपी है। लेकिन सत्ता के इर्द-गिर्द डोलती राजनीति या राजनेता अब कहां इन बातों का बहुत ख्याल करते हैं?

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें
अगला लेख पढ़ें