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प्रदूषण जागरूकता

प्रदूषण निवारण की दिशा में हमारा सफर अभी बहुत लंबा है। दीपावली की सुबह बहुत अच्छी थी, राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में साफ आसमान और खिली धूप के साथ वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) सुबह 7 बजे महज 202 पर...

प्रदूषण जागरूकता
Pankaj Tomarहिन्दुस्तानMon, 13 Nov 2023 11:24 PM
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प्रदूषण निवारण की दिशा में हमारा सफर अभी बहुत लंबा है। दीपावली की सुबह बहुत अच्छी थी, राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में साफ आसमान और खिली धूप के साथ वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) सुबह 7 बजे महज 202 पर था, मगा रविवार बीतते सूचकांक महानगर के अनेक इलाकों में लगभग 500 अंक तक चढ़ गया। यह स्थिति जितनी दुखद है, उतनी ही चिंताजनक भी। अभी 7 नवंबर को ही देश की सर्वोच्च अदालत ने इशारा किया था कि बेरियम युक्त पटाखों पर प्रतिबंध लगाने का उसका आदेश हर राज्य को कदम उठाने को बाध्य करता है और यह आदेश सिर्फ दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र तक सीमित नहीं है। दुर्भाग्य, आदेश की पालना पूरी तरह से नहीं हो सकी। आम लोगों को भी सोचना चाहिए कि आखिर आदेश, निर्देश, चेतावनी, खतरे के बावजूद प्रदूषण जानलेवा स्तर पर कैसे पहुंच गया? अब सर्वोच्च अदालत का रुख क्या रहेगा, यह देखने वाली बात होगी? शायद फिर नाराजगी का इजहार और सरकारों को नोटिस देने की नौबत आएगी, पर वास्तव में यह विषय आम लोगों से जुड़ा है। 
अफसोस, सोमवार को दिल्ली बहुत प्रदूषित रही और पटना ने भी मुकाबला किया। अनेक लोग होंगे, जो प्रदूषण के लिए पटाखों को जिम्मेदार ठहराएंगे, पर सच्चाई यह है कि पटाखे अवसर विशेष से जुड़े हैं और जब पटाखे नहीं होते हैं, तब भी प्रदूषण का हाल बहुत बुरा रहता है। अत: पटाखों को धर्म विशेष से जोड़कर देखना अनुचित है। हमें व्यापकता में सोचना चाहिए। कभी पराली, तो कभी वाहनों को, कभी पटाखों को जिम्मेदार ठहरा देने से काम नहीं चलेगा। हमारी सरकारों को राजनीति से ऊपर उठकर प्रदूषण का उपचार करना चाहिए। विगत दस वर्षों से एक-दूजे को सरकारें बचकाने ढंग से जिम्मेदार ठहराती आ रही हैं। यह जिम्मेदारी से बचने का नहीं, आगे बढ़कर जिम्मेदारी लेने का समय है। विशेषज्ञों की मदद से समग्र नीति बनाकर प्रदूषित राज्यों व शहरों को मार्ग दिखाना होगा। अगर यह राष्ट्रीय राजधानी की बड़ी समस्या भी है, तो समाधान की दिशा में जिम्मेदारी का एहसास भी राष्ट्रीय होना चाहिए। प्रदूषण को सिर्फ दिल्ली की समस्या मानने से समाधान नहीं होगा। यह महानगर एक ही जगह लाखों लोगों को रोजगार देता है, यहां देश भर से लोग आते हैं, तो क्या देश भर के लोगों को इसके बारे में नहीं सोचना चाहिए? 
हालांकि, स्थानीय स्तर पर शासन-प्रशासन से जुड़े निकाय अगर वैज्ञानिक आधार पर काम कर सकें, तो प्रदूषण का खतरा टल सकता है। यदि कोई शहर आबादी का बोझ नहीं संभाल पा रहा है, तो उसके भार को हल्का करने के बारे में सोचना चाहिए। यह सुनने में कैसा लगता है कि तेज बढ़ते भारत की राजधानी दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर है? दो-तीन दिन पहले अगर बारिश न हुई होती, तो दिल्ली प्रदूषण का कैसा खतरनाक कीर्तिमान बनाती, यह सोचकर ही किसी भी संवेदनशील नागरिक को बेचैनी होगी। यह समय दोषारोपण का कतई नहीं है। ऑड-इवन पर अब विवाद है, पर दिल्ली सरकार 14 नवंबर से 14 दिसंबर तक खुले में कुछ भी जलाने पर पाबंदी लगाने जा रही है, तो यह स्वागतयोग्य है। ऐसे ही, व्यापक कदम उठाकर हम प्रदूषण से लड़ पाएंगे। प्रदूषण के खिलाफ जन-जागरूकता अभियान भी ठीक उसी तरह से चलाना पड़ेगा, जैसे स्वच्छता के लिए चलाया गया। प्रदूषण के खिलाफ जन-भागीदारी को प्रोत्साहित करना पड़ेगा, तभी लोग प्रदूषण के खिलाफ नवाचार के साथ आगे आएंगे। 

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