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हमारे छह पदक

पेरिस ओलंपिक 2024 के मीठेे-खट्टे अनुभवों को भारत एक सबक की तरह हमेशा याद रखेगा। छह पदकों (एक रजत, पांच कांस्य) के साथ ओलंपिक 2024 में भारत के सफर का समापन हो गया। यह याद आना स्वाभाविक है कि पिछले...

हमारे छह पदक
Pankaj Tomarहिन्दुस्तानSun, 11 Aug 2024 11:05 PM
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पेरिस ओलंपिक 2024 के मीठेे-खट्टे अनुभवों को भारत एक सबक की तरह हमेशा याद रखेगा। छह पदकों (एक रजत, पांच कांस्य) के साथ ओलंपिक 2024 में भारत के सफर का समापन हो गया। यह याद आना स्वाभाविक है कि पिछले टोक्यो ओलंपिक में हमने सात पदकों (एक स्वर्ण, दो रजत, चार कांस्य) के साथ इससे बेहतर प्रदर्शन किया था। यह कहने में कोई हर्ज नहीं कि अगर पहलवान विनेश फोगाट की अयोग्यता का मामला न होता, तो भारत अपने प्रदर्शन को दोहराने में सफल हो जाता। यह भी याद किया जाएगा कि विनेश फोगाट के मामले ने देश में बड़ा राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया। ऐसा नहीं होना चाहिए था, लेकिन जिस देश में राजनीति और खेल संघों को अलग-अलग न किया जा सके, वहां ऐसे विवाद स्वाभाविक हैं। यह 100 ग्राम से उपजी सियासत भी सुबूत है कि हम खेलों व खिलाड़ियों के प्रति पूरी तरह पेशेवर या समर्पित नहीं हैं। विनेश प्रकरण के अनेक परत हैं, जिन पर हमें गौर करना होगा। फिर भी प्रशंसा करनी चाहिए कि हमने ओलंपिक की खेल अदालत में विनेश की शिकायत को पुरजोर ढंग से उठाया है और मुमकिन है कि 13 अगस्त को एक और रजत पदक हमारी झोली में आ जाए। 
सबसे बड़ी खुशी राष्ट्रीय खेल हॉकी को लेकर है कि हमने लगातार दूसरी बार कांस्य पदक जीता है। इससे निस्संदेह भावी खिलाड़ियों का मनोबल बढे़गा, हम लगातार अपने खेल को सुधारते और पदक जीतते चले जाएंगे। इस ओलंपिक को नीरज चोपड़ा के रजत पदक और उनके साथी पाकिस्तानी अरशद नदीम के स्वर्ण पदक के लिए भी याद किया जाएगा। नीरज और नदीम की मां के उद्गार भी याद आएंगे। लंबे समय बाद पाकिस्तान की झोली में एक पदक, वह भी स्वर्ण आया है और पाकिस्तानियों को चर्चा के लिए एक सकारात्मक विषय मिला है। नदीम वहां प्रेरणास्रोत बनें, तो इसमें दक्षिण एशिया का हित है। यह ओलंपिक निशानेबाज मनु भाकर के लिए भी याद किया जाएगा। उन्होंने एक कांस्य पदक व्यक्तिगत शूटिंग में और दूसरा सरबजोत के साथ मिश्रित टीम में जीता है। निशानेबाज स्वप्निल कुसाले और पहलवान अमन सहरावत ने भी कांस्य जीतकर भारत का नाम रोशन किया है। यह ओलंपिक हॉकी गोलकीपर पी आर श्रीजेश की शानदार विदाई के लिए भी याद किया जाएगा। ये खिलाड़ी अब प्रेरणा-स्रोत बनकर भारतीय खेल इतिहास में दर्ज हो गए हैं। 
अब यहां से खेल प्रबंधकों-निर्णायकों के लिए काम शुरू हो जाता है। क्या सोचा गया था और क्या हुआ है? आगे क्या सुधार करना है? किससे क्या सीखना है? खेल निर्णायकों को युद्ध स्तर पर काम करना होगा, तभी उनकी सार्थकता है, वरना पदक तालिका तो अभी कहीं उत्साह से दिखाने लायक भी नहीं है। सबसे ज्यादा पदक अमेरिका ने जीते हैं, पर चीनी खिलाड़ियों ने रणनीति के तहत स्वर्ण पर निशाना साधा है। जापान, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, नीदरलैंड, ग्रेट ब्रिटेन, दक्षिण कोरिया, जर्मनी, इटली इत्यादि के पदक गिनने के बजाय हमारा जोर अपने प्रदर्शन को सुधारने पर होना चाहिए। हमें सोचना होगा कि हमारा ध्यान किधर ज्यादा है? मुक्केबाजी और भारोत्तोलन में क्यों हमारी अवनति हुई है? खैर, यह पदक जीतने वाले खिलाड़ियों के सत्कार का समय है। हम जब खिलाड़ियों के साथ मजबूती से खड़े होने लगेंगे, तो खेलों में सुधार की प्रक्रिया तेज हो जाएगी। हॉकी के पुनरोत्थान और ओडिशा सरकार के सहयोग से भी सीखना चाहिए।  

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