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पुतिन और मध्यस्थता

जब रूस और यूक्रेन भयानक युद्ध की आग में झुलस रहे हों, तब शांति का एक हल्का सा झोंका भी खुशी व उम्मीद से भर देता है। समाचार एजेंसी रॉयटर्स  की रिपोर्ट के अनुसार, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन...

पुतिन और मध्यस्थता
Pankaj Tomarहिन्दुस्तानThu, 05 Sep 2024 10:21 PM
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जब रूस और यूक्रेन भयानक युद्ध की आग में झुलस रहे हों, तब शांति का एक हल्का सा झोंका भी खुशी व उम्मीद से भर देता है। समाचार एजेंसी रॉयटर्स  की रिपोर्ट के अनुसार, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने गुरुवार को कहा कि भारत, चीन और ब्राजील संभावित शांति-वार्ता में मध्यस्थ के रूप में काम कर सकते हैं। रूसी राष्ट्रपति ने इस मौके पर यह भी याद दिलाया कि युद्ध के शुरुआती हफ्तों में इस्तांबुल में हुई वार्ता में रूसी और यूक्रेनी वार्ताकारों के बीच एक शुरुआती समझौता हुआ था, जिसे कभी लागू नहीं किया गया, वही छूटा हुआ समझौता आगे शांति-वार्ता के लिए जमीन तैयार कर सकता है। पुतिन अगर वाकई युद्ध से अलग कुछ सोच रहे हैं, तो उनकी प्रशंसा होनी चाहिए। वास्तव में, यह ऐसा युद्ध है, जो मानो दो भाइयों के बीच हो रहा है और इसके नतीजे कभी सुखद नहीं होंगे। अंतत: वार्ता की मेज पर अमन-चैन की राह तैयार करनी पड़ेगी, यह समझ जितनी जल्दी जाग जाए, दुनिया के लिए उतना ही अच्छा है। इस युद्ध में हार-जीत बहुत मुश्किल है। रूस हार नहीं सकता और यूक्रेन को अमेरिका हारने नहीं देगा। 
अब पहला सवाल तो यही उठता है कि क्या वाकई रूस शांति चाहता है? क्या भारत, चीन या ब्राजील को आगे करते हुए पुतिन शांति-वार्ता के लिए लालायित हैं? क्या शांति-वार्ता या मध्यस्थता की चर्चा छेड़ना रूस की युद्ध रणनीति का नतीजा है? पुतिन ने युद्ध में जैसी निर्ममता का परिचय दिया है, उसे जल्दी भुलाया नहीं जा सकता। एक दशक पहले तक उनकी छवि बहुत अच्छी थी, पर धीरे-धीरे उनकी उग्रता बढ़ती गई और दूसरे देशों के प्रति बैर-भाव भी बढ़ता चला गया। साल 2022 से ही युद्ध जारी है और ढाई वर्ष से ज्यादा समय बीत चुका है, अब भी युद्ध का अंत नहीं दिख रहा है, तो इसके लिए सर्वाधिक जिम्मेदारी पुतिन के खाते में ही दर्ज है। पुतिन ने ही पहले हमला किया और कायदे से उन्हें ही पहले हथियार पीछे करने चाहिए। क्या ब्राजील की बात रूस मानेगा? क्या चीन खुलकर युद्ध के खिलाफ कुछ कहेगा? अकेला भारत ही है, जो शुरू से ही कह रहा है कि वह युद्ध नहीं चाहता। चीन को ज्यादातर रूस के करीबी सहयोगी के रूप में देखा गया है और धीरे-धीरे रूस की चीन पर निर्भरता बहुत बढ़ती गई है, इसके बावजूद अगर चीन आगे बढ़कर युद्ध को खत्म कराने के लिए काम करता है, तो यह एक अच्छी खबर होगी। हो सकता है, चीन कभी न चाहे कि भारत एक मध्यस्थ के रूप में सफल हो। अगर ऐसा है, तो भी चीन ही आगे बढ़कर पहल करे, तो दुनिया के लिए ज्यादा अच्छा है, इससे चीन की साम्राज्यवादी मंसूबे वाली छवि भी सुधरेगी। 
यह चिंता की बात है कि रूस-यूक्रेन युद्ध में रोज औसतन 200 से ज्यादा लोग काल के गाल में समा रहे हैं। मरने वालों का निश्चित आंकड़ा तो नहीं है, पर यह माना जा रहा है कि समग्रता में चार लाख से ज्यादा मौतें हुई हैं। रूस के पास धन की कमी नहीं है, पर उसकी वैज्ञानिक तरक्की सबसे ज्यादा प्रभावित हुई है। वैज्ञानिक रूप से रूस का पिछड़ना दुनिया में संतुलन के प्रतिकूल है। उसके शोध-विज्ञान खर्च में बहुत कटौती हुई है। रूस में संस्कृति और कला क्षेत्र पर गहरा असर हुआ है। देश की एक जो उज्ज्वल छवि थी, उसे सर्वाधिक नुकसान पहुंचा है। दूसरी ओर, यूक्रेन के प्रति दुनिया में धीरे-धीरे सहानुभूति बढ़ी है, अत: यूक्रेन की ओर से भी अब वार्ता के पक्ष और युद्ध के विपक्ष में कोई संदेश आना चाहिए।  

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