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निर्माण का संकल्प

करोड़ों भारतीयों की आस्था के प्रतीक मर्यादा पुरुषोत्तम राम के जन्मस्थल पर भव्य मंदिर का सपना सदियों पुराना था, और अब जब वह साकार रूप लेने लगा है, तो स्वाभाविक ही तमाम आस्थावान लोगों के लिए यह खुशी का...

निर्माण का संकल्प
हिन्दुस्तान Wed, 05 Aug 2020 11:09 PM
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करोड़ों भारतीयों की आस्था के प्रतीक मर्यादा पुरुषोत्तम राम के जन्मस्थल पर भव्य मंदिर का सपना सदियों पुराना था, और अब जब वह साकार रूप लेने लगा है, तो स्वाभाविक ही तमाम आस्थावान लोगों के लिए यह खुशी का एक अवसर है। अयोध्या में मंदिर-निर्माण का शुभारंभ करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कल एक सूत्र वाक्य दोहराया कि ‘राम सबके हैं और सब राम के हैं।’ इस वाक्य के गहरे निहितार्थ हैं। यह एक समरस समाज का आधार वाक्य है। निर्माण की प्रस्तावना है। यह प्रस्तावना धर्म के दायरे से आगे जाकर राष्ट्र-निर्माण से जुड़ती है। जाहिर है, राष्ट्र का निर्माण कभी थमता नहीं, वह हर पल आकार लेता रहता है। अपने नागरिकों में, अपनी संस्थाओं के जरिए। और किसी भी समाज में संस्थाओं का निर्माण होता है, उनमें जनता के अटूट विश्वास से। इसलिए मंदिर-निर्माण का यह अवसर याद दिला रहा है कि हमें अपनी राष्ट्रीय संस्थाओं की मर्यादा को भी कमतर नहीं करना चाहिए। 
एक ऐसे दौर में, जब हम कुदरती व मानवीय विध्वंसों से लोहा ले रहे हैं, निर्माण का महत्व कहीं अधिक शिद्दत से महसूस होना चाहिए। हमें कितना कुछ गढ़ना अभी शेष है, यह महामारी हमें बता रही है और देश की सरहदें भी इसके संकेत कर रही हैं। गौर कीजिए, देश में कोविड-19 से मरने वालों की तादाद 40 हजार तक पहुंच गई है और उनमें से कई सारे लोगों की जान हम इसलिए नहीं बचा सके, क्योंकि हमारे पास उनके इलाज की माकूल व्यवस्था नहीं थी। लाखों भारतीय हर साल बाढ़ की चपेट में आकर महीनों खानाबदोश जिंदगी जीते हैं। ऐसे में, एक सशक्त भारत रचने के लिए न सिर्फ हमें अभी बहुत सारे अस्पतालों व स्कूलों की दरकार है, बल्कि अनगिनत पुलों, पनाहगाहों, ताल-तलैयों और सीमाओं पर सड़कों-बंकरों के जाल की भी आवश्यकता है। जाहिर है, इनके लिए बहुत सारे संसाधनों की जरूरत है। और यह कोई बाहर वाला हमें नहीं देगा। इस देश के नागरिकों को अपने कर्म से अर्जित करने पड़ेंगे। राष्ट्र-निर्माण के लिए उनमें भाईचारे की कमी नहीं पड़नी चाहिए।
अयोध्या में कारसेवकों की कमी न पहले थी और न भविष्य में पडे़गी। कभी किसी धर्म के आयोजन में लोग अपनी श्रद्धा से न धन की कमी पड़ने देते हैं और न श्रम-बल की। आज भारत-निर्माण को भी उसी भाव की जरूरत है। खासकर कोरोना काल में देश को अपने नागरिकों की श्रद्धा युक्त समझदारी की बहुत जरूरत है। धीरोदात्त राम ने अपने जीवन में धीरज के साथ विकट संकटों का सामना किया, तभी वह जीत का पथ निर्माण कर सके थे। अयोध्या में प्रधानमंत्री का संयम के साथ कोरोना के मुकाबले का आह्वान राम के इसी रूप से प्रेरित था। धैर्य के साथ सरकार के दिशा-निर्देशों का पालन करके ही हम इस महामारी से अपने देश को मुक्ति दिला सकते हैं। एक लंबे विवाद और ध्वंस के पटाक्षेप के बाद अयोध्या की फिजाओं ने खुशियों की खुनक महसूस की है। और इस दिन की पटकथा लिखने में पूरे भारत के नागरिक समाज ने अपने धैर्य, उत्साह, संतोष और समझदारी की रोशनाई मिलाई है। भारत-निर्माण के लिए इसी भाव को स्थाई रूप देने की जरूरत है। बहुलतावादी भारत में बन रहा भव्य राम मंदिर हमारे सामाजिक-सामुदायिक भाईचारे और शांति का संदेश पूरी दुनिया को दे सके, यह पूरा देश चाहेगा। आखिरकार राम सबके हैं और सब राम के हैं।

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