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हताशा का आतंक

कश्मीर में आतंक जिस नई राह जाता दिख रहा है, उसमें अमन पसंद लोगों और आतंक के खिलाफ हो रही लामबंदी में जुटने वालों को खौफजदा करने का संदेश है। उन्हें हतोत्साहित कर अपने लक्ष्य से दूर करने की साजिश है।...

हताशा का आतंक
हिन्दुस्तानFri, 21 Sep 2018 10:02 PM
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कश्मीर में आतंक जिस नई राह जाता दिख रहा है, उसमें अमन पसंद लोगों और आतंक के खिलाफ हो रही लामबंदी में जुटने वालों को खौफजदा करने का संदेश है। उन्हें हतोत्साहित कर अपने लक्ष्य से दूर करने की साजिश है। लेकिन यह मामले का महज एक पहलू है। असल बात तो यह है कि बीते कुछ दिनों में जो कुछ आतंकवादियों की ओर से आया है, वह उनकी हताशा का प्रतीक है और बता रहा है कि सामने कुछ भी साफ न देख, अब वे अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं और भय उनका नया, लेकिन कायराना हथियार है।

शोपियां में आतंकवादियों ने शुक्रवार को जिस तरह तीन पुलिसकर्मियों को अगवा किया और गांव वालों के बार-बार समझाने के बावजूद उन्हें गोली मार दी, वह दुर्भाग्यपूर्ण है। पिछले दिनों ही आतंकी संगठन हिज्बुल मुजाहिदीन ने पुलिसकर्मियों को सरकारी नौकरी से इस्तीफा देने या मरने को तैयार रहने की धमकी दी थी। हिज्बुल ने डराने के लिए गांव-गांव में ऐसे धमकाने वाले पोस्टर भी लगाए थे और सोशल मीडिया का सहारा लिया था। आतंकियों ने अगस्त महीने में भी कश्मीर के अलग-अलग इलाकों से पुलिसकर्मियों के 11 परिजनों को अगवा किया था, जिसके बाद चर्चाएं उठीं कि इन्हें छुड़ाने के वास्ते प्रशासन को पूछताछ के लिए धरे गए कुछ आतंकियों के मददगारों को छोड़ना पड़ा था। ईद के दिन भी पुलिसकर्मियों को निशाना बनाया गया था। शुक्रवार की घटना में तीन पुलिसवालों की हत्या के बाद कम से कम छह एसपीओ के इस्तीफे की सूचना है। इस्तीफों का सच जो भी हो, लेकिन इन्हें सोशल मीडिया पर जमकर प्रचारित किया जा रहा है, जो आतंकियों के इरादे को दर्शाता है।

पूरे घटनाक्रम पर राजनीति भी शुरू हो गई है, लेकिन इन अपहरण-हत्याओं और इस्तीफों को एक दुर्भाग्यपूर्ण पहलू मानकर देखना ही उचित होगा। बीते कुछ महीनों से घाटी में सक्रिय आतंकियों ने जिस तरह बार-बार अपने पैंतरे बदले, उस पर गौर करने की जरूरत है। यह तमाम पड़ावों से गुजर चुके आतंकवाद का एक नया पड़ाव मात्र है, जिसे हताशा का पड़ाव कहना ही उचित होगा। शक नहीं कि घाटी के आतंकवाद ने नए-नए रूप लेने के बाद भी जिस तरह मुंह की खाई, उसके बाद इसने सॉफ्ट टारगेट बनाने शुरू कर दिए हैं। ताजा संकट की सुनगुन तो पिछले साल गृह मंत्रालय की पहल पर राज्य में छेडे़ गए स्पेशल पुलिस अफसरों की भर्ती अभियान के साथ ही शुरू हो गई थी, जब तमाम धमकियां दरकिनार कर घाटी के हजारों युवक इसका हिस्सा बनने लगे। आतंकवादियों ने इसे अपनी जड़ों पर चोट माना और इसी के बाद हिज्बुल कमांडर रियाज नाईक ने सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर एक वीडियो अपील के जरिए ‘एसपीओ न बनने या फिर मरने के लिए तैयार रहने’ जैसे संदेश जारी किए। घाटी के युवकों को रोजगार और समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के ऐसे अभियानों का ही असर था कि आतंकवादियों का स्थानीय सपोर्ट सिस्टम ध्वस्त होने लगा, वे अलग-थलग पड़ने लगे। ताजा कोशिशें इसी चोट से बाहर निकलने की एक हताश कोशिश है। घाटी जैसे-जैसे स्थानीय निकाय और पंचायत चुनावों की ओर बढ़ रही है, ऐसी वारदात अस्वाभाविक नहीं हैं। यही वक्त है, जब आतंक की जड़ों पर गहरी चोट करके स्थानीय पुलिस व सुरक्षा बलों के खोए मनोबल को वापस लाने में सफलता मिल सकती है। 

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