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शेयर बाजार के अच्छे दिन

जब औद्योगिक उत्पादन गिर रहा हो, विकास दर नीचे जा रही हो, अर्थव्यवस्था में रोजगार के नए अवसर पैदा न हो रहे हों, तब शेयर बाजार का नई बुलंदी तक पहुंचना हैरत में डाल सकता है। वैसे शेयर बाजार के रुझान देश...

शेयर बाजार के अच्छे दिन
हिन्दुस्तानThu, 13 Jul 2017 10:15 PM
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जब औद्योगिक उत्पादन गिर रहा हो, विकास दर नीचे जा रही हो, अर्थव्यवस्था में रोजगार के नए अवसर पैदा न हो रहे हों, तब शेयर बाजार का नई बुलंदी तक पहुंचना हैरत में डाल सकता है। वैसे शेयर बाजार के रुझान देश में ज्यादातर लोगों के लिए हमेशा ही एक पहेली रहे हैं। और इस समय अर्थव्यवस्था के मुकाबले उसकी विलोम गति परेशान करने वाली है। अर्थव्यवस्था से जुड़े आंकड़ों में जिस समय अच्छी खबरें बहुत कम आ रही हैं, शेयर बाजार उछाल के सारे रिकॉर्ड तोड़ रहा है। ऐसा बहुत कम ही होता है, जब मुंबई शेयर बाजार का सेंसिटिव सूचकांक महज 11 सत्र में ही एक हजार अंक तक उछल जाए। अब जब महत्वपूर्ण शेयरों का हाल बताने वाले इस सूचकांक ने 32,000 की मनोवैज्ञानिक ऊंचाई को पार कर लिया, तो इसमें कोई संदेह नहीं बचा कि ताजा तेजी बाजार में अच्छी तरह स्थापित हो चुकी है। लेकिन इस नतीजे पर पहंुचने से पहले इस बात को ध्यान में रखना बहुत जरूरी है कि शेयर बाजार की तेजी कभी भरोसेमंद नहीं होती, वह कब मंदी में, या यहां तक कि टूटन में बदल जाए, यह कहा नहीं जा सकता। लेकिन आगे जो भी हो, 13 जुलाई की शाम तक का सच यही है कि सेंसेक्स 32,037 के अंक पर बंद हुआ। एक दिन में 232 से ज्यादा अंकों का यह उछाल निवेशकों के लिए बहुत मायने रखता है। और ऐसा भी नहीं है कि यह तेजी सिर्फ सेंसेक्स से जुड़े शेयरों या सिर्फ मंुबई के शेयर बाजार में ही आई, ज्यादातर सूचकांक और शेयर बाजारों का भी यही हाल रहा।

शेयर बाजार की गति को अक्सर हम औद्योगिक उत्पादन और विकास दर से जोड़कर देखने लग जाते हैं, पर सच यही है कि दोनों का मिजाज और रुझान अलग-अलग होता है। उत्पादन और विकास दर के हमारे आंकड़े बीत चुके दौर के होते हैं। मसलन अभी जो ताजा आंकड़े हमारे पास हैं, वे जून के आंकड़े हैं। जबकि शेयर बाजार न अतीत को देखता है और न वर्तमान को, उसका सारा खेल भविष्य की संभावनाओं और आशंकाओं के भरोसे पर होता है। और इस समय शेयर बाजार के पास भविष्य के लिए बहुत सारी उम्मीदें हैं। मसलन इस समय एक उम्मीद अच्छे मानसून की खबरें हैं, जिसे आमतौर पर ग्रामीण बाजारों की अच्छी स्थिति का आश्वासन माना जाता है। मुद्रास्फीति अभी नियंत्रण में है और आगे भी इस मोर्चे पर कोई खास खतरा नहीं दिख रहा। उम्मीद का एक कारण जीएसटी भी है। अभी भले ही इसे लेकर बाजार में कुछ असमंजस हो, लेकिन यह उम्मीद तो है ही कि इससे सरकार का राजस्व बढ़ेगा और देश का वित्तीय घाटा कम होगा। लेकिन शेयर बाजार की सबसे बड़ी उम्मीद घरेलू संभावनाओं से नहीं, अमेरिका से है। खबर यह है कि अमेरिका का फेडरल रिजर्व आने वाले दिनों में ब्याज दरें कम कर सकता है। ऐसा हुआ, तो बहुत सारे निवेशक वहां से अपना धन निकालकर उन बाजारों में लगाएंगे, जहां कमाई की संभावनाएं ज्यादा हैं। यह लगभग तय है कि इसका एक बड़ा हिस्सा भारत आएगा, क्योंकि बाकी कई देशों के मुकाबले भारत की विकास दर ठीक-ठाक है। ऐसा हुआ, तो बाजार में खरीदारों की भीड़ लगेगी, जिससे कीमतें और भी तेजी से बढ़ेंगी। यह एक बड़ी संभावना है, जिसके लिए शेयर बाजार अभी से उछलने लगा है।

शेयर बाजार के ऐसे उछाल पर बहुत भरोसा नहीं किया जा सकता, क्योंकि वे किसी हकीकत का आईना नहीं होते, बल्कि सटोरिया प्रवृत्ति का नतीजा होते हैं। जैसे अर्थव्यवस्था की गति से शेयर बाजार अक्सर दूर रहता है, उसी तरह शेयर बाजार की गति की झलक अर्थव्यवस्था में नहीं दिखती। अर्थव्यवस्था को अपने अच्छे दिनों के लिए मेहनत खुद ही करनी होगी। 

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