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मुफ्त का फोन

रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड की जियो मोबाइल सेवा ने देश के संचार क्षेत्र को एक नई खलबली दे दी है। कंपनी ने अपनी जो नई योजना बाजार में पेश की है, उसके तहत वह अपने ग्राहकों को मुफ्त का फोन यानी हैंडसेट...

मुफ्त का फोन
हिन्दुस्तानFri, 21 Jul 2017 10:25 PM
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रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड की जियो मोबाइल सेवा ने देश के संचार क्षेत्र को एक नई खलबली दे दी है। कंपनी ने अपनी जो नई योजना बाजार में पेश की है, उसके तहत वह अपने ग्राहकों को मुफ्त का फोन यानी हैंडसेट देगी। हालांकि व्यापारिक योजना के तहत दिया जाने वाला यह फोन किसी के हाथ पूरी तरह मुफ्त नहीं आएगा, लेकिन दीर्घकाल में ग्राहक को इसके लिए जो प्रभावी कीमत अदा करनी होगी, लगभग शून्य ही होगी। रिलायंस की जियो सेवा पहले ही अपनी सस्ती दरों से बाजार में काफी उथल-पुथल मचा चुकी है और यह माना जा रहा है कि उसकी यह योजना स्पद्र्धी कंपनियों के लिए नई परेशानी खड़ी करने जा रही है। जियो की पिछली रणनीति ने भले ही बाजार में काफी उलट-पुलट की हो, लेकिन यह बहुत जल्द ही अपने चरम पर पहंुच गई। जियो ने जिस तकनीक के साथ अपनी सेवा बाजार में उतारी थी, वह 4-जी सुविधा वाले आधुनिक स्मार्टफोन में ही चल सकती थी। 

दिक्कत यह है कि देश में अभी भी ज्यादातर लोग महंगे स्मार्टफोन नहीं, पुराने किस्म के सस्ते फीचर फोन ही इस्तेमाल करते हैं और ज्यादातर फीचर फोन अभी 2-जी के युग में ही अटके हुए हैं। इस बाधा से पार पाने के लिए जियो 4-जी तकनीक से चलने वाले आधुनिक किस्म के, लेकिन सस्ते फीचर फोन लाई है। ये लगभग मुफ्त दिए जा रहे हैं, ताकि ग्राहकों को इन्हें अपनाने और अपनी पुरानी सेवा को बदलने में कोई आर्थिक कठिनाई आडे़ न आए। कंपनी को उम्मीद है कि यह नई रणनीति जियो को जमीन और आसमान, दोनों में नया विस्तार देगी। लेकिन क्या यह इतना आसान होगा?

भारत के संचार बाजार के बारे में यह माना जाता है कि इसमें आगे विस्तार की संभावनाएं काफी सीमित हो चुकी हैं। देश में इस समय एक अरब से ज्यादा मोबाइल फोन कनेक्शन हैं। यानी औसतन हर वयस्क के पास एक मोबाइल फोन है। ऐसे बाजार में अगर कोई नई कंपनी आती है, तो उसके पास पांव जमाने का एक ही विकल्प हो सकता है कि वह लुभावनी योजनाओं के जरिये बाजार में कुछ ऐसी खलबली मचाए कि ग्राहक नई सेवा लेने को आतुर हो जाएं। जियो ने पहले भी यही किया और अब भी यही कर रही है। इसके दबाव में मजबूरन स्पद्र्धी कंपनियों को भी अपनी दरें कम करनी पड़ीं और अपने प्लान बदलने पड़े। बाजार की उथल-पुथल सिर्फ इतने तक सीमित नहीं रही, उसके कई समीकरण भी बदल गए। इसके कारण कई बड़े स्तर के विलय भी देखने को मिले। आइडिया जैसी बड़ी कंपनी का वोडाफोन में विलय इसी दबाव का परिणाम था। यह दबाव अब और बढ़ेगा।

ऐसे विलय बाजार के गतिविज्ञान का ही हिस्सा होते हैं, इसलिए उन्हें लेकर कोई आपत्ति नहीं हो सकती। दिक्कत सिर्फ यह है कि ये सब उस समय हो रहा है कि जब संचार क्षेत्र के वित्तीय संकट चर्चा में हैं। संचार कंपनियों के कर्ज खतरनाक स्तर तक पहंुच गए हैं और पिछले दिनों इसे लेकर स्टेट बैंक की अध्यक्ष को बाकायदा चेतावनी तक जारी करनी पड़ी। अनुमान है कि संचार कंपनियों की बैंकों और वित्तीय संस्थानों की देनदारी चार लाख करोड़ रुपये तक पहंुच चुकी है। इसे लेकर ये कंपनियां सरकार से मदद और रियायतों की गुहार भी कर रही हैं। बेशक इसका एक कारण इन कंपनियों द्वारा स्पेक्ट्रम नीलामी में खर्च की गई भारी रकम भी है और लाइसेंस फीस भी। डर यह है कि बाजार की नई स्पद्र्धा से संचार क्षेत्र का यह संकट और गहरा सकता है। ऐसी स्पद्र्धा का फायदा आखिर में सभी ग्राहकों को मिलता है और इस बार भी यही उम्मीद है। लेकिन इसके साथ ही संचार क्षेत्र के संकट की भी अनदेखी नहीं की जा सकती। 

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