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शिंजो आबे की जीत

यह जीत लगभग तय ही थी। जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने कुछ समय पहले जब मध्यावधि चुनाव की घोषणा की थी, तभी से यह माना जा रहा था कि उनकी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी अच्छे-खासे बहुमत से यह चुनाव जीत...

शिंजो आबे की जीत
हिन्दुस्तानMon, 23 Oct 2017 10:42 PM
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यह जीत लगभग तय ही थी। जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने कुछ समय पहले जब मध्यावधि चुनाव की घोषणा की थी, तभी से यह माना जा रहा था कि उनकी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी अच्छे-खासे बहुमत से यह चुनाव जीत लेगी। हालांकि विपक्षी दावे कुछ और ही थे, लेकिन वह लोकतंत्र ही क्या, जिसमें हर कोई अपनी जीत का दावा न करे? आबे ने ये चुनाव करवाए ही इसलिए थे कि इस समय मौका पूरी तरह से उनके अनुकूल था। आबे की गिनती आक्रामक राष्ट्रवादी राजनीति करने वाले नेताओं में होती है और जापान में इस समय जो माहौल है, उसमें यह तकरीबन सभी मान रहे थे कि जापान की जनता ऐसे ही नेता को पसंद करेगी। इस समय जापान जिन दो समस्याओं में उलझा हुआ है, उनमें से कोई भी जापान की भीतरी समस्या नहीं है। एक तो उत्तर कोरिया का बढ़ता हुआ युद्धोन्माद है, जिसमें यह माना जा रहा है कि किसी भी समय उस क्षेत्र में युद्ध छिड़ सकता है। हालांकि लड़ाई मुख्य रूप से उत्तर कोरिया और अमेरिका के बीच होने की ही आशंका है, लेकिन माना जा रहा है कि उत्तर कोरिया के उन्माद का पहला निशाना दक्षिण कोरिया और जापान ही होंगे। दूसरी समस्या चीन का लगातार बढ़ता विस्तारवाद है, जो जापान को खासा परेशान कर रहा है। ऐसी स्थिति में फंसे किसी भी मुल्क को शिंजो आबे जैसे आक्रामक राष्ट्रवादी नेता ही पसंद आते हैं। शिंजो आबे जानते थे कि हालात बदलें, इससे पहले उन्हें माहौल का राजनीतिक फायदा उठा लेना चाहिए और उन्होंने यह काम बड़ी चतुराई से किया है।

आबे की इस जीत के साथ जापान के संविधान का अनुच्छेद-नौ भी चर्चा में आ गया है। यह अनुच्छेद कहता है कि जापान किसी भी अंतरराष्ट्रीय विवाद में युद्ध का सहारा नहीं लेगा। आबे दूसरे विश्व युद्ध के बाद बने संविधान के इस अनुच्छेद को बदलना चाहते हैं। वह मानते हैं कि जो स्थितियां बन रही हैं, उनमें समय रहते इसे हटा देने में ही भलाई है। लेकिन उनके सियासी विरोधी, खासकर वामपंथी दल इसका विरोध कर रहे हैं। अभी तक आबे के पास इतना बहुमत नहीं था कि वह संविधान संशोधन करा पाते। ताजा जीत ने उन्हें संविधान संशोधन के लिए जरूरी बहुमत दे दिया है। हालांकि यह भी कहा जाता है कि आबे की पार्टी को भारी मतों से जिताने वाले मतदाताओं का एक हिस्सा भी संविधान संशोधन के पक्ष में नहीं है। जापान दुनिया का अकेला ऐसा देश है, जिसने परमाणु हमले ही नहीं, इसकी तकलीफों को दशकों तक झेला है। इतिहास का वह दर्दनाक अध्याय अभी भी जापान के जनमानस पर अंकित है। इसलिए चुनाव जीतना जितना आसान था, हो सकता है कि संविधान संशोधन करना आबे के लिए उतना आसान न हो।

कुछ भी हो, भारत के लिए यह एक अच्छी खबर है। शिंजो आबे के प्रधानमंत्री बनने के बाद से भारत और जापान के संबंध नई ऊंचाई पर पहुंचे हैं। 1998 में पोखरण-2 के बाद ये संबंध बहुत निचले स्तर पर पहुंच गए थे, जो शिंजो आबे के प्रधानमंत्री बनने के बाद ही पटरी पर आए। परमाणु संयंत्र से लेकर इन्फ्रास्ट्रक्चर से जुड़ी कई दूसरी परियोजनाओं में जापान भारत को सक्रिय सहयोग दे रहा है। हाल ही में शुरू हुई बुलेट ट्रेन परियोजना भी इसका एक अच्छा उदाहरण है। इसके अलावा, अंतरराष्ट्रीय राजनय में भी भारत और जापान कई मुद्दों पर साथ खड़े हुए हैं। खासकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार के मुद्दे पर। चीन की बढ़ती आक्रामकता ने भी भारत और जानाप को साथ लाने में खासी भूमिका निभाई है। शायद इसीलिए जीत के बाद शिंजो आबे को सबसे पहले बधाई देने वाले विश्व नेताओं में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी थे।

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