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महंगा होता तेल

वैसे मुहावरा तो तेल की धार देखने का है, लेकिन हमारे यहां अक्सर तेल की मार ही देखी जाती है। शुक्रवार को भारतीय बाजारों में पेट्रोल की कीमत पिछले 55 महीने के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गई। इस समय देश भर...

महंगा होता तेल
हिन्दुस्तानSat, 21 Apr 2018 12:34 AM
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वैसे मुहावरा तो तेल की धार देखने का है, लेकिन हमारे यहां अक्सर तेल की मार ही देखी जाती है। शुक्रवार को भारतीय बाजारों में पेट्रोल की कीमत पिछले 55 महीने के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गई। इस समय देश भर के पेट्रोल पंप पर आपको जिस कीमत पर पेट्रोल मिल रहा है, वह इसकी ऐतिहासिक बुलंदी से थोड़ा सा ही नीचे है। या यूं कहें कि यह इतिहास की दूसरी सबसे ऊंची बुलंदी है। लेकिन डीजल की कीमतों ने तो शुक्रवार को इतिहास ही बना दिया। इस समय जिस कीमत पर बाजार में डीजल मिल रहा है, उस कीमत पर वह इससे पहले कभी नहीं मिला। कीमत बढ़ने का सीधा दोष हम सरकार को नहीं दे सकते हैं। बहुत साल पहले जब केंद्र में यूपीए की सरकार थी, यह तभी तय हो गया था कि पेट्रोल की कीमतें अब अंतरराष्ट्रीय बाजार से जुड़ जाएंगी। जब वहां कच्चा तेल महंगा होगा, तो हमारे बाजार में पेट्रोल महंगा हो जाएगा और जब वहां यह सस्ता होगा, तो हमारे यहां सस्ता मिलने लगेगा। मौजूदा एनडीए सरकार भी उसी नीति को आगे बढ़ा रही है। इस सरकार ने बस इतना ही किया है कि उसने साप्ताहिक या मासिक निर्धारण की बजाय पेट्रोल की कीमत का अंतरराष्ट्रीय बाजार के हिसाब से दैनिक निर्धारण शुरू कर दिया है। इसलिए अब हर रोज हमें पेट्रोल अलग दाम पर मिलता है। जहां तक अंतरराष्ट्रीय बाजार की बात है, तो शुक्रवार को कच्चे तेल की कीमत 75 डॉलर प्रति बैरल पहुंच गई है। यह पिछले चार साल का सबसे ऊंचा स्तर है। इस समय ओपेक देशों ने जिस तरह कच्चे तेल की आपूर्ति घटा दी है, उससे आने वाले दिनों में यह कीमत और ऊंची जाने की आशंका है। यानी हमारे बाजार में भी कीमतें बढ़ना लगभग तय है।
आम जनता की नजर से देखें, तो आपत्ति यही है कि जब दुनिया के बाजारों में कच्चे तेलों की कीमत बहुत कम थी, तो इसका लाभ भारतीय उपभोक्ताओं को बहुत ज्यादा नहीं मिला। शुरू में कुछ दाम भले ही घटे हों, लेकिन बाद में दुनिया के बाजार में इसकी कीमत भले ही जितनी भी नीचे आई हो, हमारे यहां इस पर कर भार बढ़ाकर पेट्रोल और डीजल के दाम को जस का तस रहने दिया। यानी फायदा तो नहीं मिला, लेकिन अब जब दाम बढ़ रहे हैं, तो इसका घाटा जरूर भारतीय उपभोक्ताओं को झेलना पड़ रहा है। एक उम्मीद यह बनी थी कि अगर पेट्रोल जीएसटी के दायरे में आ जाता, तो इस लगने वाले तरह-तरह के टैक्स खत्म हो जाएंगे और फायदा उपभोक्ताओं को मिलेगा। लेकिन केंद्र और राज्यों की सरकारें अभी इसके लिए तैयार नहीं दिख रहीं। दुनिया के बाजार में कीमतें अगर इसी तरह बढ़ती रहीं, तो हमारी परेशानियों का बढ़ना लगभग तय है। पेट्रोल और डीजल के दाम जब बढ़ते हैं, तो सिर्फ आवागमन महंगा नहीं होता, इससे किराया भाड़ा भी बढ़ता है और तकरीबन हर चीज के दाम ऊपर की ओर जाने लगते हैं। किसानों के लिए सिंचाई भी महंगी हो जाती है और बहुत सी चीजों की लागत भी बढ़ जाती है। उर्वरक समेत वे सारी चीजें महंगी होने लगती हैं, जिनके उत्पादन में पेट्रोलियम पदार्थों का इस्तेमाल कच्चे माल के तौर पर होता है। पेट्रोलियम पदार्थों की वजह से बढ़ने वाली मुद्रास्फीति ने देश को कई बार परेशान किया है। यह फिर न हो इसके लिए केंद्र और सरकारों को पेट्रोलियम पदार्थों पर लागू कर संरचना को बदलना होगा। जीएसटी के जमाने में पेट्रोल पुराने तरीके से नहीं चलना चाहिए।

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