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बचत की दर

भारतीय स्टेट बैंक ने बचत खातों पर दी जाने वाली ब्याज दर कम कर दी है। पहले बैंक में बचत खाता रखने वालों को चार फीसदी की दर पर सालाना ब्याज दिया जाता था, अब एक करोड़ रुपये से कम की रकम वाले बचत खातों पर...

बचत की दर
हिन्दुस्तान,नई दिल्लीTue, 01 Aug 2017 12:07 AM
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भारतीय स्टेट बैंक ने बचत खातों पर दी जाने वाली ब्याज दर कम कर दी है। पहले बैंक में बचत खाता रखने वालों को चार फीसदी की दर पर सालाना ब्याज दिया जाता था, अब एक करोड़ रुपये से कम की रकम वाले बचत खातों पर साढ़े तीन फीसदी की दर से ब्याज दिया जाएगा। एक करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम वाले बचत खातों पर ब्याज दर पहले जितनी ही मिलती रहेगी। लेकिन बैंक में इतनी बड़ी रकम वाले बचत खाते दस फीसदी भी नहीं हैं, जिससे यह समझा जा सकता है कि इस फैसले का असर कितना व्यापक होगा। बैंक ने खुदरा कर्ज और होम लोन जैसे कर्जों पर ब्याज की दर जनवरी में ही कम कर दी थी और इस लिहाज से यह माना जा रहा था कि बचत खातों की ब्याज दर भी देर-सवेर नीचे आएगी ही। इस बाबत बैंक ने जो बयान जारी किया है, उसमें उसका मुख्य तर्क भी यही है। स्टेट बैंक देश का सबसे बड़ा बैंक है और तकरीबन 42 करोड़ लोगों ने इसमें तरह-तरह के खाते खोल रखे हैं। लेकिन बैंक के इस फैसले का असर इससे भी ज्यादा व्यापक होने की उम्मीद है। आम तौर पर सार्वजनिक क्षेत्र के ही नहीं, निजी क्षेत्र के बैंक भी स्टेट बैंक की राह पर ही चलते हैं, इसलिए उम्मीद यही है कि बाकी बैंक भी जल्द ही बचत खातों पर ब्याज दरें कम करने की राह पर बढ़ेंगे। कुछ तो खैर पहले ही इसे कम कर चुके हैं। इससे बैंकिंग क्षेत्र की स्थिति मजबूती की ओर बढ़ेगी। कम से कम शेयर बाजार के रुख को देखकर तो यही लगता है। सोमवार को स्टेट बैंक का यह फैसला आते ही सभी बैंकों के शेयर तेजी से ऊपर जाने लगे। स्टेट बैंक के शेयर में यह उछाल पहले दो घंटे में ही तीन फीसदी से ज्यादा था।

बैंकों की वित्तीय मजबूती से अलग करके देखें, तो यह फैसला देश के मध्य वर्ग और निम्न मध्य वर्ग को परेशाान करने वाला है। आम तौर पर इन वर्गों के लोग अपनी मेहनत की कमाई बचत खातों के हवाले कर देते हैं। इससे एक तरफ तो उनका धन सुरक्षित रहता है, साथ ही दूसरी तरफ उस पर जो ब्याज मिलता है, उससे वह मुद्रास्फीति यानी महंगाई की मार से काफी हद तक बच जाता है। वैसे बैंक अभी भी यह तर्क दे सकते हैं कि साढ़े तीन फीसदी की दर से जो ब्याज दिया जा रहा है, वह मुद्रास्फीति की तात्कालिक दर से ज्यादा है, इसलिए लोगों के जमा धन को महंगाई से सुरक्षा मिल रही है। लेकिन सच यही है कि ज्यादातर लोगों को ब्याज के रूप में मिलने वाली रकम अब कम हो जाएगी। मुमकिन है कि देर-सवेर इसका नुकसान बचत खातों की व्यवस्था को ही हो। बचत को रखने के जितने भी तरीके उपलब्ध हैं, उनमें सबसे कम आमदनी बचत खातों से ही होती है। लोग उन्हें सिर्फ इसलिए पसंद करते हैं कि बचत खातों को खोलना, उनमें रकम जमा करना, जरूरत पड़ने पर उसे निकालना सब काफी आसान होता है। इसके अलावा इसमें जोखिम भी ज्यादा नहीं होता। अब जब इन पर ब्याज दर कम हो रही है, तो मुमकिन है कि लोग बचत खातों का सहारा लेने की बजाय निवेश के दूसरे तरीकों को अपनाने की ओर बढ़ें।

सिर्फ ब्याज दर ही कम नहीं हुई, पिछले कुछ समय में बैंकों ने धन निकासी जैसी चीजों पर कई तरह के शुल्क भी लगाए हैं। देश के बैंकिंग क्षेत्र का एक सच यह है कि आज के दौर में सार्वजनिक बैंकों से भी यह उम्मीद की जाती है कि वे अपने पांवों पर खड़े हों और भारी स्पद्र्धा वाले बाजार में आगे बढ़ते रहें। दूसरा सच यह है कि डूब गए कर्ज ने इन बैंकों की कमर तोड़ दी है। सरकार की जन धन योजना ने भी बैंकों के काम को बढ़ाया है। लेकिन इस दौर में यह भी ध्यान रखने की जरूरत है कि इसका सारा भार मध्य वर्ग के लोगों पर ही न पड़े। 

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