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प्रतिभाओं की नई मंजिल

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों का असर अब दूर तक दिखने लगा है। उनकी एच1बी वीजा नीति से खड़ी हुई समस्याओं ने भारत की इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में दस्तक दे दी है। देश भर के आईआईटी...

प्रतिभाओं की नई मंजिल
हिन्दुस्तान Thu, 08 Nov 2018 09:09 AM
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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों का असर अब दूर तक दिखने लगा है। उनकी एच1बी वीजा नीति से खड़ी हुई समस्याओं ने भारत की इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में दस्तक दे दी है। देश भर के आईआईटी में नवंबर का महीना कैंपस सलेक्शन का समय होता है। दुनिया भर की बड़ी-बड़ी कंपनियां इस समय आईआईटी में जाकर प्रतिभाशाली छात्रों की भर्ती करती हैं। वैसे तो इस कैंपस सलेक्शन में अमेरिकी कंपनियों की भूमिका पिछले कुछ साल से लगातार घट रही है। हालांकि अमेरिकी कंपनियां यहां आ रही हैं, पर पहले के मुकाबले कम भर्ती कर रही हैं। लेकिन इस साल समस्या कुछ ज्यादा गंभीर होती नजर आ रही है। एच1बी वीजा नीति के चलते ज्यादातर अमेरिकी कंपनियां यह स्पष्ट करने से कतरा रही हैं कि भर्ती होने वाले युवाओं की तैनाती कहां होगी? आईआईटी, बंबई से आई खबरों के अनुसार अमेरिकी कंपनियों में सिर्फ माइक्रोसॉफ्ट ही ऐसी है, जिसने स्पष्ट किया है कि भर्ती किए गए लोगों की तैनाती उसके मुख्यालय रेडमंड में होगी। बाकी ने अपने जॉब एनाउंसमेंट फॉर्म में इसे गोलमोल कर दिया है। माना जा रहा है कि जिन लोगों की भर्ती हो रही है, हो सकता है कि उनमें से कुछ की तैनाती शुरू में अमेरिका के बाहर कहीं की जाए। आईआईटी में इस साल बड़े पैमाने पर भर्ती करने वाली अमेरिकी कंपनियों में माइक्रोसॉफ्ट के बाद टैक्सी एग्रीगेटर उबर का नाम प्रमुख है।

दिलचस्प यह है कि जिस समय आईआईटी के कैंपस सिलेक्शन में अमेरिकी कंपनियों की भूमिका कम हो रही है, चीन की कंपनियों की भूमिका बढ़ रही है। इस साल वहां पहुंची चीनी कंपनियों में सबसे चर्चित नाम मोबाइल फोन बनाने वाली कंपनी वन प्लस का है। चीन की कंपनियों की बढ़ती भूमिका एक तरह से यह भी बता रही है कि तकनीक का करोबार का विश्व संतुलन अब किधर झुक रहा है? हालांकि चीन की कंपनियों की सक्रियता काफी तेजी से बढ़ी है, पर भारतीय आईआईटी से सबसे बड़े पैमाने पर भर्तियां जापान की कंपनियां ही कर रही हैं। वैसे हर बार की तरह इस बार यूरोप, कनाडा और सिंगापुर आदि की कंपनियां भी सलेक्शन में उतरी हैं, पर अमेरिका या जापान की तुलना में उनकी भूमिका बहुत ज्यादा नहीं है। किस देश की कौन सी कंपनी कितनी भर्ती कर रही है, इसकी पूरी जानकारी अमूमन दिसंबर में ही मिल पाती है, जब आईआईटी कैंपस सलेक्शन के आधिकारिक आंकडे़ जारी करती है। अभी जो सूचनाएं हैं, वे आमतौर पर कंपनियों या छात्रों से मिल रही हैं।

वैसे आईआईटी से भारतीय कंपनियां भी जोर-शोर से सलेक्शन में उतरती हैं और बड़े पैमाने पर भर्ती करती हैं। लेकिन उनकी चर्चा ज्यादा नहीं होती। एक तो इसलिए कि उनके नाम उतने बड़े नहीं होते, जितने कि बड़े मल्टीनेशनल कॉरपोरेशन या तकनीकी कंपनियों के होते हैं और दूसरा इसलिए भी उनके द्वारा प्रस्तावित वेतन इतने ज्यादा नहीं होते कि वे खबर बन सकें। इससे भी यह पता चलता है कि हमारा मेक इन इंडिया अभी उस स्तर पर नहीं पहुंच सका कि विदेशी कंपनियों को बड़ी चुनौती दे सके। इसलिए वह प्रतिभाओं को आकर्षित करने के मामले में भी पीछे है। लेकिन फिलहाल खबर यही है कि दुनिया भर की प्रतिभाओं को आकर्षित करने में सबसे आगे माना जाने वाला देश अमेरिका अब लगातार पिछड़ रहा है। और इसका कारण खुद वहां की नीतियां हैं।

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