अब नतीजों का इंतजार
अगले आम चुनावों का सेमीफाइनल माने जा रहे पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों की बैटिंग-बॉलिंग यानी आरोप-प्रत्यारोप का दौर ही नहीं थमा, उसके असर-बेअसर में हुए मतदान का दौर भी खत्म हो चुका है।...
अगले आम चुनावों का सेमीफाइनल माने जा रहे पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों की बैटिंग-बॉलिंग यानी आरोप-प्रत्यारोप का दौर ही नहीं थमा, उसके असर-बेअसर में हुए मतदान का दौर भी खत्म हो चुका है। इंतजार बस नतीजों का है। अंतर सिर्फ इतना है कि क्रिकेट के खेल में नतीजा खेल के थमने के साथ ही आ जाता है, लेकिन लोकतंत्र के इस खेल में खेल पूरा हो जाने के बाद भी नतीजों की अपनी एक प्रक्रिया है। यहां खेल थमने से नतीजे आने के बीच एग्जिट पोल की भी एक ईनिंग होती है, जो बस अभी-अभी खत्म हुई है। एग्जिट पोल से निकली तरह-तरह की धुनों ने तमाम लोगों की धुकधुकी नए सिरे से बढ़ा दी है। इतिहास बताता है कि एग्जिट पोल शायद ही किसी के हुए हों। ये असल नतीजों से पहले की बौद्धिक जुगाली का सामान जरूर दे जाते हैं।
पांच राज्यों के ये चुनाव अगर इसलिए महत्वपूर्ण हो गए कि इनके नतीजे भारतीय राजनीति को उसकी दशा-दिशा का एक आईना दिखाने जा रहे हैं, तो इन्हें इसलिए भी याद रखा जाएगा कि लंबे समय से चली आ रही कई बहसों-विवादों को इस बार भी विराम नहीं मिला, बल्कि वे अपने नए-नए रूपों में दिखाई पडे़। यह शायद पहली बार हुआ कि मध्य प्रदेश के कुछ इलाकों की ईवीएम मशीनें अपने गंतव्य तक निर्धारित समय से 48 घंटे विलंब से पहुंचीं और इस विवाद का कोई तार्किक पटाक्षेप होता नहीं दिखाई दिया। पांचों राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, मिजोरम, राजस्थान और तेलंगाना के तमाम इलाकों में ईवीएम खराबी की पारंपरिक शिकायतें जिस तरह बनी रहीं, उसके बाद कहना लाजिमी होगा कि ईवीएम का मुद्दा अब भी हमारे लिए चुनौती बना हुआ है और लोकतंत्र पर जनता का भरोसा बनाए रखने के लिए इसका स्थाई हल निकाला जाना जरूरी है। हालांकि यह चुनाव खासकर छत्तीसगढ़ के उन कुछ इलाकों में हुई जबर्दस्त पोलिंग के लिए याद रखा जाएगा, जो आश्वस्त करता है कि जरा सा भरोसा मिले, तो जनता नक्सलवादियों ही नहीं, बड़ी से बड़ी आतंकी चुनौती को धता बताते हुए मतदान के लिए आगे आकर लोकतंत्र को मजबूत बनाने को तत्पर है।
इन चुनावों से कई भविष्य सीधे जुड़े हुए हैं। इनके नतीजे लंबे समय से चुनावी बिसात हारती आ रही कांग्रेस की गाड़ी को पटरी पर लौटने का अवसर दे सकते हैं, तो भाजपा के लिए अपनी जीत की लय बनाए रखने की बड़ी चुनौती हैं। पांचों राज्यों के चुनाव नतीजे आने में अभी चंद रोज बाकी हैं, लेकिन इसने मौजूदा नतीजों के आकलन के साथ-साथ अगले साल के फाइनल की तस्वीर अपने-अपने कैनवास पर बनाने-बिगाड़ने का मौका तो दे ही दिया है। जाहिर है, 2019 का इंतजार और-और रोचक होता जा रहा है। यूपी के बाद कई राज्यों के चुनावों, और यूपी में फूलपुर और गोरखपुर उप-चुनावों के नतीजों ने बार-बार बताया है कि राजनीति में हवाएं हमेशा एक दिशा में नहीं बहतीं। हवाएं अपना मौसम और दिशा खुद तय करती हैं। इस बार की हवाओं ने कौन सा रुख किया, यह तो 11 दिसंबर के नतीजे ही बताएंगे, लेकिन जिस तरह अंतिम वोट पड़ने के बाद भी इतने दिन तक नतीजों का इंतजार करना पड़ रहा है, वह चुनावी मोड में आने के बाद लगातार लंबी खिंचती गई चुनाव प्रक्रिया पर एक बार फिर से सोचने का अवसर दे रहा है। अत्याधुनिक संचार वाले इस ईवीएम दौर में तो और भी ज्यादा।